सोमवार, 28 दिसंबर 2009
हर शक्स यहाँ परेशान क्यों है (१)
बयान नही हो सकता । और भी बहुत कुछ है कहने के लिए अभी तो सफ़र शुरू हुआ है न जाने क्या कुछ देखना और लिखना हो सकता है ......सफ़र जारी है ....संघर्ष भी ..और कलम भी
शनिवार, 12 दिसंबर 2009
रास्तें और मंजिल
और मंजिल
मोहताज है रास्तों की
रास्तों ने अपनी अलग ही राहें निकल ली है
और वो शक्स
ख्वाबों का बोझ लिए खड़ा है
बेहद दूर कहीं
रास्तें बेदर्द है है
और मंजिल बेक़सूर
न वक़्त ही मरहम है उसका
न उम्मीद ही दवा
शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009
बुधवार, 4 नवंबर 2009
मेरे शब्द
दिखी है मुझे मेरी शक्सियत अक्सर
जिसे मेरा कहकर मगर मैंने
ख़ुद में बसाया वो शब्द सोर्फ़ मेरे नहीं थे
कभी किसी मुसाफिर की थकन में भी वाही शब्द थे
कभी किसी की शायर की कशिश को भी उन्होंने ही किया था बयाँ
किसी की दुआओं में भी भी शामिल रहे वो
और किसी की नफरत को भी होटों तक ला दिया था
किस तरह कहूँ की मेरे शब्द थे वो
अपना कहकर उन्हें मैंने ख़ुद ही को धोखा दिया था
किसी की जुबान से निकलकर
किसी के होंटों से होते हुए
किसी के कलामों में सोते हुए
मेरी कलम तक पहुचे थे वो
और मैंने कभी ख़ुद को उनमे
कभी उनको ख़ुद में कैद कर लिया था
सोमवार, 2 नवंबर 2009
तेते पाँव पसारिये जेती लम्बी सोड
जो व्यक्ति कुछ इस तरह की सोच के साथ मेहमान नवाजी की तयारी कर रहा हो उसे आप क्या कहेंगे ?? ..............मेरे ख्याल से तो वो थोड़ा सा सिरफिरा और थोड़ा सा भावुक है जो सेवा से ज्यादा यकीं दिखावे में करता है।
यकीनन अतिथि देवोभव ! मगर देव के सामने ये दिखावा कैसा ??
बिल्कुल यही सवाल कॉमनवेल्थ गेम्स की तयारी में हो रहे फालतू खर्चे पर भी उठता है । विदेशों का पता नही लेकिन भारत में जितनी चादर हो उतने ही पैर पसारने के संस्कार दिए जाते है तभी शायद आज विश्वव्यापी मंदी के बावजूद भी यहाँ ज्यादा खतरा नही मंडरा रहा । लेकिन सी डब्लू जी की मेहमान नवाजी के लिए सरकार कई जगह गैर जरुरी खर्च कर रही है और उसका बोझ जनता पर डाला जा रहा है । हाल ही में डी टी सी बसों के किराये में हुआ इजाफा इसका ताजातरीन उद्धरण है ।
आख़िर भुखमरी और कुपोषण से मरते निम्न वर्ग के लोगो और दाल आटे के बढ़ते भावों से ट्रस्ट मध्यम वर्ग के सामने विदेशी मेहमानों को लजीज व्यंजन परोसकर हमारी व्यवस्था किस झूठी शान का परिचय देना चाहती है ।
विदेश से आन एवालें मेहमान सिर्फ़ ट्रांसपोर्ट और इमारतों की साज सजावट ही नहीं देखेंगे उनके आसपास से गुजरने वालें चेहरों को पढ़ना भी उन्हें खूब आता होगा । बिना वजह के दिखावे से बेहतर होगा सरकार मेहमानों की मुलभुत अवश्यक्तायों में कोई कमी न आने दे ।
मंगलवार, 27 अक्टूबर 2009
छोटा सा सवाल
तब किस तरफ़ जाए कोई ?
?
?
?
अक्सर छोटे सवालों का जवाब बडा कठिन होता है ।
शनिवार, 24 अक्टूबर 2009
आंकडों में बसी जिंदगी
सपने कल्पना के सिवाय कुछ भी नही होते ...मगर कभी कभी सपनो से इंसान का वजूद जुड़ जाता है... अस्तित्व का आधार बन जाते है सपने ...जैसे सपनो के बगैर साँस लेना भी मुश्किल हो ..हाँ मुश्किल तो होता है मगर साँस लेना नही हर साँस के साथ सपनो के सफर में मंजिल तक पहुचना बहुत मुश्किल होता । आंकडों की दुनिया के महारथी कहते है की पुरी दुनिया में सिर्फ़ १० प्रतिशत लोग ही बेहतर जिंदगी बसर करते है बाकि ९० प्रतिशत लोग कीडे मकोडे की तरह जीते है खाते है पीते है और एक दिन मर जाते है । आंकडों की भी अपनी ही एक अलग दुनिया है जिस पर ज्यादा कुछ कहना बेकार है मगर हम जैसे लोग जो हर रोज आंकडों से ज्यादा असलियत से वाकिफ होते है उनके लिए १० या ९० प्रतिशत के हिसाब के बजाये उस ज़िन्दगी के मायने ज्यादा होते है जिसमे उनके नैनों में बसने वाली सपनो की फेहरिस्त का कोई एक अंश भी सच हो सके इसी कोशिश में वो जो दिन रात गुजारते है वो उनका संक्रमण काल होता है एक स्वर्णिम सवेरे की आशा में गुजरने वाला संक्रमण काल । येही उनके जीवन का वास्तविक सुख होता होता है आखिर कीडे मकोडे भी तो खाने की खोज करते है किसी के घर के सामान में रहने की जगह बनते है वो भी अपने हिस्से का संघर्ष करते है और इंसान भी
मंगलवार, 15 सितंबर 2009
बीच सफर से
न घर वापस लौटना
अब सपनो वाले दिन रात भी नही है
अब है सचमुच में मेरा सच से सामना
पहले दुनिया के इस शोर में
मेरी भी एक आवाज़ थी
और आजकल .......
शांत देखकर मुझे
दीवारों दर भी कहते है
इस खामोशी को मत थामना
तठस्थ हो जाने का अपराध
कर रहा है वक़्त
मगर सजा पा रही हूँ मैं
हकीक़त के करीब आ गई हूँ
और ख्वाबों से बढ़ गया है फासला
नजदीकी का तो कोई पैमाना नही होता
बढती हुई इस दूरी को चाहती हूँ नापना
लफ्जो की कोई सीमा नही है
मगर भाव जैसे सब बह गए है कही
बिन पतवार की नाव के साथ
मैं तो संग ही लेकर चली थी नाव भी पतवार भी
भूल हुई बस यही की मांझी भी मैं ही बनी थी
जबकि खिवैया है कोई और ............मैं नहीं
रविवार, 13 सितंबर 2009
तीसरी फसल
एक तरफ़ देश झुझ रहा है सुखा और बांड के जाल में और इसी तरफ़ देश की सरकार सुलग रही है इनसे फैली समस्यों की बांड और इनके समाधानों के सूखे से .....ये समस्याएँ देश के लिए नई नही है यूँ भी भारत के तकलीफदेह संघर्षो में से अधिकांश संघर्ष पानी के साथ जुड़े रहे है ...... इन तमाम संघर्षो का इतिहास तो इस तरह की समस्याओं के बढ़ने से और अधिक समरद्ध हो जाता है लेकिन समाधानों के नाम पर शतरंज जसी बिसात बिछी दिखाई देती है ......हालाँकि हम और आप जैसे लोग यहाँ दूर दिल्ली प्रदेश में बैठे रहकर सूखे या बांड को सिर्फ़ अख़बारों में पढ़ और टी वि पर देख सकते है महसूस नही कर सकते पर जिन इलाकों पर ये आपदायें आए दिन मुह बाएं खड़ी रहती है वहां के लोगो के लिए पुरी जिंदगी की लग्जरी सिर्फ़ दो वक़्त की रोटी ही होती है हमारी तरह वो बंगले गाड़ी की दुआ कभी नही मांगते ......और सबसे ख़ास बात ये की उनकी अपनी दो वक़्त की रोटी जिस चीज से नकलती है उसी से हमारा भी पेट भरता है क्योंकि वो लोग कोई और नही बल्कि हमारेवास्त्विक अन्नदाता है वो हमारे कृषि प्रधान कहे जाने वाले देश के वास्तविक राजा है वो है किसान .....हम कितने भी उन्नत क्यों न हो जाए लाख रुपये की नैनो के बाद हजार रुपये का हवाई जहाज ही क्यो न बना ले मगर अन्न को कोई विकल्प हम नही ढूंढ पाएंगे की क्योकि पेट तो आख़िर अनाज की रोटी से ही भरा जा सकता है .....इन सभी चीजो के बारे में सोचते हुए मेरे हाथ के किताब लगी पत्रकार पी साईनाथ की लिखी "तीसरी फसल " मैं काफी दिनों से इन समस्याओं से जुड़ी जानकारी जुटा रही थी और इस किताब से बहुत मदद मिली .....ग्रामीण भारत के लोग साल में दो बार फसल करते है लेकिन जिन इलाकों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया जाता है उनके लिए तिन फसल होती है सूखे के लिए मिलने वाली सुखा राहत को लेखक को ने तीसरी फसल कहा है हालाँकि इस फसल को काटने वाले वो नही होते ..दुसरे लोग होते है .......
सुखा रहत का बहुत बड़ा हिस्सा उन कामों में चला जाता जिनका सञ्चालन प्राइवेट कम्पनियाँ करती है .....एक जरुरी जानकरी जो इस किताब से मिली वो ये की सिधांत रूप में सूखे की चपेट में आने वाले इलाको को एक केन्द्रिये योजना के अधीन रखा जाता है जिसका नाम है द्रोत प्रोने अरास (दी पी ऐ पी ) लेकिन इन इलाको को दी पी ऐ पी के अर्न्तगत लान अब विशुद्ध रूप से एक राजनितिक निर्णय हो गया है अगर कोई ब्लाक दी पी ऐ पी में आ जाता है तो उसके लिए कई परियोजनाए एक के बाद एक तैयार होने लगती है ऐसी हालत में कुछ लोगो के लिए चपर फाड़ पैसे की बारिश हो जाती है सरकार की तरफ़ से जो मदद दी जाती है वो सुख्ग्रस्त इलाकों के लिए मगर कुछ ऐसे tathya सामने आते है जिनमे दी पी ऐ पी के अर्न्तगत वो इलाके शामिल है जहाँ अची खासी वर्षा होती है
मैं यहाँ सिर्फ़ ये बात एक किताब पढ़कर ही नही लिख रही इन बातों का sidha असर हमारी jivanshaili पर padne लगा है जब दाल chini के daam बढ़ने की वजह से लोगो ने khanne में mithaas कम कर दी है
यहाँ गौर इसी बात पर करना है की ये mithaas हमारे भोजन से ही नही जीवन से भी कम होती jayegi यदि देश की jadon में बस्ती कृषि और इसकी aatma ग्रामीण भारत की उन्नति पर dhyan नही दिया जाएगा
मंगलवार, 1 सितंबर 2009
बात जनता पार्टी की जनता की
ऐसे में चाय और पान की दुकानों पर बतियाने वाले बुद्धिजीवी लोग गाहे बघाहे अपनी यही राय बड़ी जोर शोर से सभी को सुनाते दिख रहे है की भइया अब तो गई भैंस पानी में इन बी जे पि वालों की .............. खैर हम न तो गली नुक्कड़ पर है न ही चाय की चुस्की या पान का स्वाद ले रहे है ..,,,हम देख रहे है देश प्रमुख विपक्षी दल का हाल और साथ ही विश्लेषण कर रहे है उनकी बदलती नीतियों और ततश विचारधारा का ॥ उन लोगो से भी हमारा निजी तौर पर कोई वास्ता नही जिन्हें पार्टी ने निकल दिया न ही उनसे जो तमाम कारगुजारिओं के बाद भी पड़ पर बने हुए है सार्वजानिक तौर पर हमारा लेना देना है पुरी पार्टी और उसके कार्यों से .......महांमारी ,महंगाई ,मज़बूरी और बांड सूखे की जद्दोजहद में जीने वाली भारतीये जनता की जनता पार्टी इन दिनों जन्नौंमुख होने की बजाय गैरजरूरी वजह से जिन्नाउन्मुख हो गई है इस वपक्षी दल के पास सत्ताधारी पार्टी का इन तमाम मुद्दों पर ध्यान दिलवाने का वक़्त नहिन्हाई क्योंकि यह अपनी हार के सदमे से ही अभी तक नही उभरी है ......पार्टी ने जितने के लिए जी तोड़ म्हणत की थी लेकिन जिस तरीके से म्हणत की वो दिखावटी था क्योंकि जिस युवा वर्ग को लुभाने के उदेश्य सेआडवानी जी ने ब्लॉग्गिंग और नेट्वर्किंग शुरू की थी
उनमे अधिकतर लोग जिन्ना के इतिहास और उसके कार्यों से वाकिफ नही है सिवाय इसके की वो विभाजन के परोकर थे हाँ वर्तमान हालत को देखते हुए ये युवा वर्ग इस बात का गवाह जरुर बनेगा की जिन्ना का नाम ही जनता पार्टी विभाजन का कारन बना .विभाजन भी ऐसा की
एक शाख के टुकड़े हजार हुए
कोई यहाँ गिरा कोई वहां गिरा
दरअसल जिस युवा वर्ग को लक्ष्य बनाकर पार्टी स्वं को स्थापित करना चाहती है उसे जिन्ना या गाँधी परकी गई तिप्पदियों से ज्यादा फर्क पड़ता है विकास की नीतियों से और फिर आज अगर गाँधी किसी के आदर्श है तो मायावती उन पर कितना ही आक्षेप क्यों न व्यक्त करे कोई फर्क नही पड़ते .......आज की पीडी अगर शाहरुख़ खान को पसंद करती है तो दीवानों की तरह करती है फ़िर चाहे अमर सिंह कितनी ही टिका तिपदी क्यों न करते रहे ये जो भी आदर्श व्यक्ति है समाज में इनकी छवि इतनी धुंधली नही है की एक किताब या बयाँ से मैली हो जाए तो अगर कोई दल युवा वर्ग को लुभाना चाहता है तो उसके लिए स्मार्ट लुक और चैटिंग ,नेट्वर्किंग से ज्यादा ख़ुद को ये समझाने की जरुरत है की आज देश की जनता राम नाम रटने वाले नेता नही राम की तरह काम करने वाले नेता चाहती है .................यही बात अगर बी जे पि समझ ले तो फ़िर नेत्रतेव चाहे अडवाणी करे या कोई और नेता पार्टी का पुनरुथान सम्भव हो सकता है अन्यथा हर रोज शाख से टूट कर गिरते पत्तों को बहारों की ही बाट जोहनी होगी
शुक्रवार, 7 अगस्त 2009
खामोशी
नही रही शब्दों की कमी
मगर अक्सर आँखों की नमी
ने कुछ कहने न दिया
अभी तलक तो लबों तक ही पहुँची थी
आंसुओं की बुँदे
न जाने कैसे , कब दिल को भिगो दिया
बहुत कुछ कह जाने की हसरत ने
क्यों एक पल में ही खामोशी को चुन लिया
इस मौन को समझने वाले
तो कभी कभार ही मिलते है जिंदगी में
और सोचने वालों ने
अपना अलग सा ही
कोई अफसाना बुन लिया
बुधवार, 24 जून 2009
वो कसम ........वो इरादा
चुनावी मौसम में नेतायों के वादे कर भूल जाने की आदत या कहे की फितरत से तो हम आम जन भली भांति वाकिफ ही है पर हाल ही में हुए चुनावों में एक ऐसे व्यक्ति ने कुछ वादा किया था जिसे देश ही नही विदेश में भी योग गुरु के नाम से जाना जाता है और जिसकी अपनी एक ब्रांड वैलुए भी है ..................मगर राजनीती से दूर रहने की बात कहकर भी लगता है बाबा जी ने राजनीती की नीतियों को आत्मसात कर ही लिया ...............
गौरतलब है की बाबा रामदेव ने स्विस बैंक में जमा काले धन के मुद्दे पर ....................तमाम चैनलों और अख़बारों में ब्यान दिया था की मेरा राजनीती या किसी विशेष पार्टी से कोई सम्बन्ध नही है ...................भाविश्यें में जिस भी पार्टी की सरकार बनेगी उसे १०० दिन के भीतर इस काले धन को देश लाकर जनकल्याण में लगाना ही होगा .........................................पर अब तक क्या हुआ है इसे जानते भुझते हुए हम तो ये ही कह सकते है की ........................क्या हुआ तेरा वादा ..............वो कसम वो इरादा .........................और फ़िर वो सारा मीडिया जिसने रामदेव जी को लेकर १ -१ घंटे के इस्पेसिअल प्रोग्राम बनाये ..................वो भी अब रामदेव जी एक झलक दिखाकर ये पूछने का दायित्व नही निभा रहे की उनके संकल्प का क्या हुआ .............................. .............................संकल्प हिन्दी भाषा का एक बेहद संजीदा शब्द है मगर इस झूट-- मुठ की दुनिया में शब्दों की प्रमाणिकता पर भी संदेह सा होने लगता है .............................ऐसा ही कुछ ब्यान भावी पीडी के नेता.........तथा ,,,,,,,, और भी कई विशेष विशेषणों से सुसजित राहुल जी ने भी लिया था ..............मगर ??????????????????????????? लगता है ????????????????????????????????मगर जैसी ही चाल चल गए सब
गुरुवार, 18 जून 2009
शतुरमुर्ग न बने .....जनाब
लेकिन अब जब समझा है तो मामला गड़बड़ सा जान पड़ता है ........................ये व्यवस्था दलितों पिछडो को उन्नत और आधुनिक बनने उनका जीवन इस्तर सुधारने के लिए शुरू की गई थी .................लेकिन क्या २०-२५ वर्षो बाद परिणाम संतोषजनक भी नजर आते है .................निश्चित तौर पर नही ......................आज भी कई ऐसे ग्रामीण इलाके है जहाँ मंदिरों, इस्कुलों , और सार्वजानिक इस्थानो पर दलितों के साथ भेदभाव किया जाता है
कई ऐसे पिछडे वर्ग है जिन्हें २१ सदी का ये आधुनिक भारत देखने तक को नसीब नही है क्योंकि उनकी जिंदगी कही सुदूर घने जंगलों और पहाडों के सायें में तमाम असुविधयों के बिच बीत रही है .........................
और जो मूल मुद्दा लेकर मैंने ये सब लिखना शुरू किया था महिलाएं ...........................यदि उनकी बात की जाए तो
इस आधी आबादी का सशक्तिकरण करने के लिए आरक्षण की व्यवस्था को लागु करके ........................तथाकथित पैरोकार ........शतुरमुर्ग की तरह ही मुख्या कार्य से मुह मोड़ते प्रतीत नही होते ........................इस विषय में पुनः सोचने की जरुरत है क्योंकि क्षेत्र चाहे कोई भी हो योग्यता की जरुरत प्रथम इस्तर पर है ..............जहाँ तक महिलायों की उन्नंती की बात है तो पहले ये इंतजाम किया जाए की घर से निकलने पर उसका बलात्कार का खतरा नही होगा .............उसका कोई बॉस उसका यौन शोषण नही करेगा .........................बस मुस पर फब्तियां कसने वाले लोगो को सजा दी जायेगी ..................दहेज़ के नाम पर किसी लड़की को जिन्दा नही जला दिया जाएगा .............................लड़की होने की वजह से अजन्मे बचे को ही नही मार दिया जाएगा...............................ये तमाम बाते सुनिश्चित हो जायें तब जाकर कही .................इस आधी आबादी को थोड़ा सुकून मिल सकेगा और फ़िर संसद तक पहुचने के लिए किसी वैसाखी की जरुरत नही पड़ेगी और ............................................न ही आरक्षण के मुद्दे पर आरोप प्रत्यारोप की वजह से बाकि जरुरी बातें शेष रह जाएँगी .............................................................................
शुक्रवार, 12 जून 2009
रास्ता
रविवार, 7 जून 2009
बीच बाजार में
लगभग हर दिन जिंदगी बीतती है आज क्या पाया ये सोचने और कल क्या हासिल करना है ये योजना बनाने में और हर दिन लगता है क्या है ये ज़िन्दगी .......... वाही शेर की पंक्ति ध्यान आती है की ..............बड़ी आसन थी मंजिल हमारी मगर रहबर ने उलझाया बहुत है ......................हर एक बात के लिए संघर्ष और उस पर एक महान सोच की संघर्ष ही सफलता की सीडी है............ चिडिया के बच्चे की तरह जब तक हम भी एक सायें तले जी रहे थे ऐसा ही लगता था पर घोंसले से बहार निकलकर देखा तो पता चला की सब कुछ बेमानी था सारा संघर्ष और सारी सोच धरी की धरी रह गई और अब शुरू होता है" एक नया संघर्ष ...... संघर्ष में न पड़ने का "मतलब अपना स्वार्थ साधो और पता नही क्या क्या??????????????? एक पत्रकार नही एक प्रसिद्ध पत्रकार बन्ने का सपना लेकर ये संघर्ष शुरू किया था लेकिन एक न्यूज़ चैनल में आते हुए अभी कुछ एक दिन ही हुए है और लगने लगा है की "ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नही"दरअसल यहाँ काम तो बहुत है लेकिन काम को देखकर लगता नही की ये पत्रकारिता है मैं लिखना जानती हूँ पढने का भी बहुत शौंक है लेकिन इस लिखने पढने के बिच ये घालमेल का फ्यूजन फिलहाल तो समझ नही आ रहा शायद भाविश्यें में आ जायें तो ..............अपनी ही इन बातों का मैं समर्थन न कर सकूँ फिलहाल भाविश्यें की कल्पना से भी भयभीत हूँ क्योंकि पत्रकारिता में आकर पत्रकार बन्ने की बजाये इस माहौल से एक लेखक मेरे अंदर पलने लगा है ............... जो हर दिन बहुत कुछ लिख देना चाहता है और क्या लिखे इस वजह से कुछ नही लिख पाता............... अब हिन्दी में लेखको की इस्थिति किसी से छुपी नही है ये एक शौंक हो सकता है लेकिन मंदी और महंगाई के इस दौर में कैसे कोई इसे अपने करमशेत्र में शामिल कर ले ?????बहरहाल आज ये यंत्र (कंप्यूटर ) मिला तो भड़ास निकाल दी अब भी लग रहा है कुछ कहना बाकि है खैर जिंदगी भी बाकि है लिखते ही रहेंगे पर आप हमें कागज पर पढेंगे या इस्क्रिन पर इसका हमें भी फिलहाल कोई अंदाजा नही है ...............
शनिवार, 23 मई 2009
नियति
हर शाम मुरझाने वाले फूल भी जब हर सुबह नै ताजगी के साथ प्रकर्ति का श्रृंगार करते है तो ये एहसास होता है की जिंदगी का हर दिन बहुत ख़ास है ....जिंदगी हट आने वाले दिन को बेहतर बनने का ही प्रयास है ..........
...............डाली से अलग होकर भी जब ये फूल अपनी सुगंध फैलाते है , हट मन को महकते है ........तब बिना कुछ कहे खुशियाँ बाँटने का संदेश दे जाते है .....
लेकिन रंग , रूप , और खुशबू से सजी सुन्दरता की अनुपम कृति ये फूल क्या पाते है ????????????????
अस्तित्व कितना खूबसूरत है इनका मगर अस्ति की नियति तो पहले ही फ़ैसला ले चुकी होती है................................ वो कहती है ..............................
निर्माण भी नियति है
निर्वाण भी नियति है
ये नियति तो अपने को पुरा करेगी ही
फिर वो फूल है तो क्या हुआ !!!!!!!!!!
फूल से पंखुडी !!!!!!!!!!!!!!! तो झडेगी ही
रविवार, 10 मई 2009
माँ तुझे सलाम !!!!!!!!!!!!!
सोच में हूँ की कैसे अलंकृत करूँ
इस एक व्यंजन को जिसका स्वर
मेरे पुरे जीवन का आधार है
घनी धुप में पेड़ की छाया कहूँ
या की कहूँ अंधेरों में रौशनी का एहसास
अतुल्निये हो तुम माँ .....................
फ़िर किस्से तुलना करूँ तुम्हारी
कौन है इस जग में तुम जितना ख़ास
असमंजस में पड़ जाती हूँ जब देखती हूँ
हर माँ में व्ही जज्बा
व्ही जज्बात
संघर्ष , समर्पण और सहनशक्ति की वो अद्भुत मिसाल
जीवन के हर मुश्किल दौर में उसकी दुआओं का साथ
देने को उसे क्या दूँ
उसकी ममता जितना अनमोल
कुछ नही है मेरे पास
हे इश्वर !!!!!!!!!!!!!एय अल्लाह
कबूल करना इतनी दरख्वास्त
जिस अंचल के सायें में
पली बड़ी हूँ ,,,,,उस झोली में खुशियाँ भर सकूँ
कर सकूँ कुछ तो रहमत तेरी
न कर सकूँ तो कभी उसे मैं कोई दुःख न दूँ
शनिवार, 9 मई 2009
खतरे में लोकतंत्र
इस आम चुनाव में आम आदमी को लुभाने का हर सम्भव हथकंडा अपनाने के बाद अब नेता नतीजो की राह तक रहे है
लेकिन इन चार चरणों में हर लोकसभा सीट से जो सुचनाये सामने आई वो ये बताती है की मतदान प्रतिशत गिरता जा रहा है चुनाव आयोग की तमाम कोशिशों के बादलोगो ने पप्पू बनना स्वीकार किया है ..........................
किसी और की बात करूँ इससे पहले अपना निजी अनुभव बताना चाहूंगी .......................................
हमारे एरिया में जब नगर पालिका चुनाव हुए थे तब जिस उमीदवार को हमने यानि गली नम्बर ७ के लोगो ने वोट किया वो हार गया ............अब चाहे वोट देने से पढ़ले हम ये न बताये की किसे वोट देंगे लेकिन बाद में ये सब छुपाना आसन नही होता तो जीतने वाले उमीदवार को भी ये पता चल गया की हमारी गली उसके विरोध में थी या फ़िर विपक्षी को हमसे ज्यादा ही समर्थन प्राप्त था जिसका परिणाम ये हुआ की आज पुरे एरिया में सड़क बन चुकी है हमारी गली को छोड़कर कई बार ये समस्या पार्षद जी तक पहुचाई गई मगर वो तो जैसे प्रतिशोध की अग्नि में जल रहे है ..................... तो भइया जितनी आग उधर है उतनी इधर भी है अब हो रहे लोकसभा चुनावो में सताए हुए इन लोगो ने वोट न डालने की ठानी है
वैसे मेरे इस अनुभव का आप चाहे जैसा विश्लेषण करे की वोट डालना हम सबका फर्ज है वगैरह .........................
मगर जब हर बार मतदाता को मुंगेरी लाल के सपने दिखाकर भ्रष्टाचार ,आतान्क्वाद ,साम्प्रदायिकता ,और मंदी महंगाई के सच को उसकी हाथों की लकीरों में गुदवा दिया जाता है तब मतदान से मोह भंग होना स्वाभाविक बात हो जाती है ............. फ़िर भी जब उससे ये कहा जाता है की वोट दो तब उसका पहला सवाल यही होता है की किसे वोट दे जिसे वोट देंगे वो जीता तो भी वो अपनी जेब भरेगा और अगर जिसे नही दिया वो जीता तो बदला लेगा जितने के बाद उमीदवार तो नेता बन जाएगा हमें क्या मिलेगा भइया साल भर अपनी समस्यों मकी सुनवाई के लिए इध से उधर भटकते है कोई नही मिलता पूछने वाला अचानक चुनाव आते ही एक नही दस दस लोग रोज बतियाने आ जाते है ....................और फ़िर मतदान कम होना एक तो लोगो की नर्ष की वजह से है दूसरा जो लोग वोट देने गए भी उन्हें भी कई परेशानियों का सामना करना पडा कहीं लिस्ट में नाम नही कही पर्ची नही मिली हमारी आपकी तो चोदिये ख़ुद चुनाव आयुक्त को खासी परेशानी हुई..........................तो कई खामियां है जिनकी वजह से मोजुदा लोकतंत्र को खतरे के निशाँ पर लाकर खडा कर दिया है....................इस खतरे का समाधान जल्द ही किया जाना चाहिए कहीं ऐसा न हो की ...................................!!!!!!!!!!!!!!!!!
मिट गया जब मिटने वाला तब सलाम आया तो क्या
दिल की बर्बादी की बाद उनका पयाम आया तो क्या
काश अपनी ज़िन्दगी में हम ये मंजर देखते
और ......वक़्त आने पर बता देंगे तुझे ऐ आसमान अभी से हम क्या बताये के हमारे दिल में है
शुक्रवार, 1 मई 2009
हम हिन्दी भाषी
घोषणा पत्र जारी होने के बाद इन बातों का भी उतना ही विरोध किया गया जितना पार्टी ने अंग्रेजी भाषा और कंप्यूटर का किया था ............................
बात इतनी एकतरफा नही है चारों तरफ़ जुगलबंदी हुई और ढेरो निष्कर्ष सामने आए ...............विपक्षी दलों ने सर्वविदित लहजे में आलोचना के पुल बाँधे तो जनता के बीच भी कुछ नकारात्मक सी प्रतिक्रिया हुई अंग्रेजी और कंप्यूटर के बिना रहना!!!!!!!!!! ये सोचना भी हमारे प्यारे भोले भाले भारतवासियों के लिए अजीब और इतेफाक न रखने वाली बात हो गई है
दरअसल भारत में भाषा का सवाल इस कदर उलझ और बिगड़ गया है किं निकट भाविश्यें में उसका कोई समाधान नजर नही आता और अगर कोई समाधान के सा का भी जिक्र करता है वो दा से दुश्मन हो जाता है
क्योंकि हिन्दी सिर्फ़ गरीबों की भाषा है और अमीरों से देश चलता है ...........हिन्दी दिवस आने पर वो हिन्दी के ग्लोबल होने के दावे तब फीके पड़े नजर आते है जब एक अदद इमानदार और कुशल व्यक्ति को अपनी नौकरी सिर्फ़ इसलिए छोडनी पड़ती है या छोड़ने पर मजबूर किया जाता है की उसे अंग्रेजी नही आती है अपने देश में रहकर ऐसा पराया ऐसा सोतेला पण हर दिन लोग सहते है ................सोतेली माँ के आ जाने से जैसे बचे का विकास रुक जाता है वैसे अंग्रेजी के परवान चढ़ने से हिन्दुस्तान के हिन्दी भाषी कहीं खोने को मजबूर हो रहे है
घर में आज बचों को लाल रंग का गोल सा दिखने वाला एक फल दिखाकर ये नही बताया जाता की ये सेब है ये रटवाया जाता है की थिस इस अन एप्पल .....................जब मैं कुछ बच्चों को टूशन पढाती थी तब अक्सर बच्चे इंग्लिश समझ लेते थे और अक्सर हिन्दी को समझाने के लिए उन का अंग्रेजी अनुवाद उन्हें बताना पड़ता था क्योकि उनके अभिभावकों ने उज्जवल भविष्ये की कामनाएं सँजोकर उन्हें अंग्रेजी माध्यम वालें स्कूलों में डाला है जहाँ अंग्रेजी में बात न करने पर जुर्माना लिया जाता है ............................अब ऐसे माहौल में mulayam जी के इस vichaar का samarthan करने valon की tadaad का ungliyon पर gina जाना तय ही है लेकिन क्या अपनी tehjib को chodkar dusron की timaardari करना भी हमने तय ही कर लिया है क्या हम पहले ये सिखा नही सकते की ये लाल फल सेब है जिसे अंग्रेजी में एप्पल kehte है
गुरुवार, 30 अप्रैल 2009
नजर को नजर की तलाश
जिसे कहने की कोशिश उसने कई बार की ..................................................................
बताना चाहा उसने जिंदगी की जद्दोजहद और जुस्तजू को.......................................
जिससे हर रोज दो चार होती थी वो ..............................................................
भरी भीड़ में भी उन आँखों को तलाशती थी उसकी आंखे...................
जो कहीं गहरे उतर जायें मन की गली तक .................
अफसाना नही था ये एक हकीकत है...................
की भीड़ की नजर भी थी....................
ऐसी ही एक नजर पर ..................................
यूँ तो न गुमशुदा है वो न गुमनाम है..........................
जिसे ढूँढ रहा था उसकी तरह हर कोई ..............................
मगर तलाश को तराजू में तोलकर ............................................
तो पाया नही जा सकता न ...................................................................
इसलिए आज सब अपनी ही नजरों से नजरें बचा रहें है ......................................
विश्वास को तोलकर धोखो की तकलीफ उठा रहे है ........................................................
बताना है उनको दिल का सब हाल किसी को ............................................................................
मगर तनहा ही आगे बढ़ते जा रहे है .....................................................................................................
सोमवार, 13 अप्रैल 2009
madhushala
आज करे परहेज जगत पर
कल पीनी होगी हाला
आज करे इंकार जगत पर
कल पीना होगा प्याला
होने दो पैदा मद का महमूद
जगत्व में कोई , फिर
जहाँ कहीं भी है मंदिर -मस्जिद
वहां बनेगी मधुशाला
बच्चन जी कि ये पंक्तिया मधुशाला का जो रूप हमारे सामने रखती है उसकी किसी और चीज से तुलना नही कि जा सकती मगर तथ्य ये है कि कविता के अहसास पर जब हकीक़त कि चादर पड़ती है तो तस्वीर बहुत बदल जाती है और आज हकीक़त ये है कि मधुशाला में बैठकर बेशक किसी जात -पात का ध्यान न दे कोई मगर न तो मंदिर-मस्जिद का विवाद सुलझा न ही मधुशाला किसी दुश्मनी को कम कर पाई है जितनी सुन्दर ये कविता है उतनी ही बदसूरत मधुशाला से समाज में उपजती बुराई है क्योकि या तो मधुशाला अब शराब के ठेके के रूप में है या फिर किसी रहिस के पैसे उडाने और ऐश करने के ठिकाने के रूप में जिन्हें तथाकथित माडर्न नामों मसलन बार या पब के नाम से जाना जाता है जहाँ जाना अमीरी का परिचायक है
ये कोई नया विषय नही है जिस पर आज मैं चर्चा कर रही हूँ न जाने कितने सालो से शराब के कहर से हजारो लाखो घर देह चुके है हाल ही में दिल्ली के एक इलाके में हुई घटना से हम सभी वाकिफ है उस पर भी चुनावों के चलते वोट के लिए नेता अवेध शराब कि सप्लाई को अपना परम धरम समझते हुए लगातार वोटर को जाम कि मोटर में बिठाकर सैर करा रहें हैं
ये नही कहूँगी कि सरकार किस कि है या फिर ये आरोप नही लगाना चाहती हूँ कि कांग्रेस गाँधी जी के उसूलों का पालन नही कर रही है क्योंकि मैं जानती हूँ कि इस समाज में सबके अपने अपने गाँधी है जिसको जिस विचार से सुविधा मिलती है वो वाही विचार अपना लेता है लेकिन ध्यान दिलाना जरुरी भी है कि आज़ादी के संघर्ष में कांग्रेस ने सामाजिक जागरूकता अभियान चुने थे जिनमे नशाबंदी भी एक था लेकिन आज़ादी मिलने के साथ ही ये नीतिया उलट दी गई अब नशाबंदी के बारे में सोचना भी पाप है क्योकि राजस्व प्राप्ति का सबसे अच्छा जरिए शराब ही तो है जब भी मैं दो चार लोगो के बिच में ये कहती हूँ की शराब की बिक्री बंद हो जानी चाहिए तब टपक से जवाब मिलता है की तेरे कहने से कोई देश तो नही badal जाएगा न
thik भी है देश तो नही badlega लेकिन हम तो badal सकते है न dikhave या bhulave के लिए शराब pikar अपना और apno का भविष्य तो बरबाद न karey एक sher है
न pine में जो maja है
vo pine में नही
ये जाना हमने pikar
काश sabko ऐसा ही अनुभव हो और ये नशे में dubta समाज होश में आ सके
बुधवार, 1 अप्रैल 2009
मंथन कर रहा है मन
मंथन कर रहा है मन
मंजिलों के सफर का
मोह्हबतों की डगर का
रास्ते भी मुनासिब है मंजिल के और ..................
मोह्हबत भी हो सके मुकरर शायद.....................
मगर मुश्किलों की महफिल मेजबान बनी हुई है !!!!!!!!!
जीतने से पहले हारना......... एक मर्तबा....... मेरी पहचान बनी हुई
मुक्कमल जहाँ की जुस्तजू में हूँ जिस दिन से .........
उस दिन से सांसे तो थमीं नही है .........................
लेकिन जिंदगी एक अरमान बनी हुई है
रविवार, 29 मार्च 2009
अजीब दास्ताँ है ये ..........
फ़िर वही फूट डालो और शासन करो की नीति
ये क्या था आजाद होना अंग्रेजो से
की उन्हें उनके देश भेजकर
हम अपने ही देश में उनके जैसे हो गए
उनके होते हिंदुस्तान बना था ,भारत और पकिस्तान
और उनके ही जैसे बनकर अपने होते हम........
बना रहे और बनने दे रहे है
भारत को जन्गिस्तान !!!!!!!!!!!!!!..............................
जहा जुंग छिडी है
कुछ भी कर के , कैसे भी करके
हर जर्रे अपना कब्जा ज़माने की
माँ -बाप को बुढा होते देखकर जैसे
नालायक औलाद साजिश करती है
जायदाद के कागजो पर दस्तखत करवाने की
वैसे ही साठ की उमर पार कर चुके इस देश
के रहनुमा जुगत में है इस देश को दफनाने की
सियासत की सरजमीं बनाकर इसे अब वो नया इतिहास बनायेंगे
बिल्लियों को लड़वाकर >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>उनके झगडे का फायदा उठाकर>>>>>>>>.
उनके हिस्से की भी रोटी खायेंगे >>>>>>>>>>>>>
जानती हूँ की बहुत कड़वी बातें लिख दी है मैंने............... वो कविता जो दिल की बातें बड़े ही सुंदर लहजे में लिखती है उसे बहुत कठोर बना दिया लेकिन अब शायद वक़्त ही नही है कविता करने का लेकिन ये शौंक मुझे बहुत अज़ीज़ है इसलिए लिखे बिना रहा नही गया इस वक़्त में करना तो बहुत कुछ है लेकिन फिलहाल कलम और कीबोर्ड के अलावा कोई और हथियार नही है इसलिए इसी से काम चला रहे है
सामाजिक अध्यन की किताबों में कई दफा पढ़ा है भारत सबसे बडा लोकतान्त्रिक देश है और जाहिर है जब तक हकीकत से वाकिफ नही थी तब तक पढ़कर बहुत गर्व होता था लेकिन अब लगता हिया ये लोकतान्त्रिक व्यवस्था ही गड़बड़ कर रही है क्योंकि इस व्यवस्था में कानून तो है लेकिन साठ ही बहुत कुछ आपकी और हमारी नैतिकता पर भी निर्भर करता है मसलन हाल ही की बात लीजिये हमारे मौलिक अधिकारों में लिखा है की हमें अभिव्यक्ति की आज़ादी है ये हमारा कानूनी हक है लेकिन इसका मतलब ये तो नही की इस हक के नाम पर आप कुछ भी कह दे यहाँ से शुरू होती है नैतिकता की कहानी अब भाजपा के एक युवा नेता ने जो कहा उसके बारे में हर तरफ़ टिका टिप्पदी हो रही है लेकिन ये तो अभिव्यक्ति की आज़ादी है !!!!!!!!चलिए दूसरा उद्धरण लेते है चुनाव अच्छे तरीके से हो निष्पक्ष हो और भी कई तरह के जुमले लगवा कर चुनाव आयोग का निर्माण हुआ तो मतलब ये एक संवेधानिक संस्था हुई लेकिन इसकी सलाह पर या इसके हिदायत देने पर अपराधियों को टिकट न देना ,आचार संहिता का पालन करना अपशब्द न कहना ये सब व्यक्तिगत या पार्टीगत नैतिकता पर निर्भर करता है चलिए राजनीति से जुड़े मसले से यदि ऊब रहे है तो एक हटकर उद्धरण दिये देती हूँ २००८ के सितम्बर महीने मई दिल्ली पुलिस ने एक विवाहित जोड़े को रेलवे स्टेशन पर्व चुम्बन करते हुए पाया तो उन्हें पकड़ लिया लेकिन इस पर्व कानून का फ़ैसला यही था के शादीशुदा लोगो का किस करना गैर कानूनों नही है लेकिन अनैतिक जरुर है लिहाजा इन्हे सजा नही दी जा सकती तो लीजिये यहाँ भी आ गई नैतिकता .........................
अब ये नैतिकता क्या है इसे समझते तो सब है लेकिन जब अनैतिक करने पर्व कोई डंडा नही पड़ने वाला है तो काहे किन फिक्र ऐसा भी नही है किन इस अनैतिकता का विरोध नही होता ............होता तो है लेकिन सामने आकर चोर को चोर कौन बोले ????????????????? इसी मैं बाद में ..........मैं बाद में .......के chakkar में panch saalo का political atyachaar saihna पड़ता है
काफ़ी कुछ कह दिया लेकिन क्या करूँ इतने मुद्दे है किन अलग लिखने किन बजाये मैंने एक ही में काफी कुछ कहने किन उत्पतंग सी कोशिश कर दी
चलते चलते एक बात और याद आ गई हमारे एक गुरु जी है उन्होंने मजाक में एक दिन ये बात कही थी लेकिन मई अज काफी सीरियस नोड पर्व इसका जिक्र कर रही हूँ उन्होंने कहा था जब किसी को कनवेंस नही कर सको तो उसे CONFUSEकर दो और हमारे लोकतंत्र में किसी को भी अपना दल बनने का अधिकार है तो आज अनगिनत
अज्नितिक पार्टिया हमें कनवेंस करने किन कोशिश में लगातार कान्फुजे कर रही है अब ये कितने बडा कांफुजन है ये तो अगले प्रधानमन्त्री का नाम ही बताएगा
शनिवार, 28 मार्च 2009
बारिश की बातें
कहीं लौट आई है फिर वो बारिश
जो वादा कर के गई थी वापस आने का
वहीं से आती मिटटी की ये सौंधी खुशबू
कह रही है किसी के मिलन की कहानी
लेकिन कहीं आज भी
इन्तजार है बारिश की बस एक बूँद का
वहीं से आती ये गीली सीली सी हवा
बता रही है किसी के विरह की दास्ताँ
और यहाँ मैं सोच रही हूँ की ............इतना भेद क्यों ?????????
व्ही धरती व्ही आसमान
पर कही खिले फूल और कहीं बंजर सा जहाँ
न जाने धरती की बेवफाई है ये !!!!!!!!
या है आसमान का अभिमान !!!!!!!!!!!!
जाना तो बस इतना की
बारिश की वो नन्ही बूंदे बिच सफर में ही
कहीं रुक गई है
कहीं mud गई है
किसी के प्यार की वजह से
किसी से प्यार के कारन
रविवार, 22 मार्च 2009
कुछ सच कुछ अफसाना
बुधवार, 18 मार्च 2009
हम से है जमाना सारा .......................
इन अनेक rajnitik दलों की वजह कोई विशेष vichardhara या मुद्दा नही है वजह है विशेष बोली विशेष जात और विशेष धरम ये स्थिति dekhkar कहना पड़ता है की beshaq british gulami से to hame azadi मिल गई लेकिन आज भी अपने ही बनाये जात - पात , धरम और sampradaye के bandhano me हम jakde हुए है कोई AJGAR (AHIR,JAT ,गुजर,RAJPUT )का FORMULA banata है to कोई MUSALAMAN को sath लेकर MAJGAR बन jata है और मेरे जैसे लोग समझ ही नही paate की भाई mamla क्या है कितने gambhir vishleshan के बाद हमारी जैसी janta को bevkoof बनाने का shadyantr racha जाता है और आप और हम जान भी क्या सकते है सिर्फ़ utna जो T.V या akhbaar me देखते है
चलिए हाल ही की ताजा घटना की बात karey varun गाँधी का bayan ----------------------जो hath हिंदू के ख़िलाफ़ खड़ा होगा मैं उसे kaat दूँगा वैसे varun के अनुसार ये उनका bayan नही है क्योंकि उनकी awaz बहुत soft है और जिस C.D को T.V पर दिखाया जा रहा है वह आवाज़ कठोर ....................... है............ खैर हम क्या जाने............ हम जो देखते है वह लिख रहे है लेकिन मैं ये सब aj किसी neta या दल पर aarop लगाने के लिए नही लिख रही apke और अपने लिए लिख रही hun kyoki हम sobhagya से एक loktantrik देश के naagrik है लेकिन ये हमारा durbhagya ही है की praja का shasan होते हुए भी praja neta के vaade और naare की kathputli बन कर reh गई है aj एक neta हिंदू की बात bolkar हिंदू का vote ले लेता है कल कोई दलित की बात करके दलित का vote ले लेता है क्या बस यही है hamara हिंदुस्तान और anekta मैं उसकी एकता
हम अपनी जात वाले neta की vote देते है या फिर vote ही नही देते हम jante हुए भी अपनी jammedari नही nabhate और dosh लगा देते है सरकार पर लेकिन ये क्यो भूल jate है की ये सरकार achi या buri जो भी है हमारी ही चुनी हुई है हमें ख़ुद से एक बार ये puchna होगा की -------------------"क्या हम भी उसी vyavstha के aang है जिसके isharon पर joognuon को ही ghoshit कर दिया गया है prakash poonj और sooraj को andheron me gayab कर दिया गया है "
raajniti को samajhna शायद mushkil हो लेकिन यदि हम ख़ुद ये समझ जाए की इस vyavstha को बदलने और बेहतर बनने me सबसे बड़ी bhumika हमारी है tab yakinan कुछ बदली हुई si fiza हमारा स्वागत karegi बातें और भी है कहना कुछ और भी है लेकिन समझदार के लिए ishara ही kafi है लोकसभा chunav najdik और हमारी pariksha भी देखते है इस बार हमारी सरकार हिंदू की banegi musalmaan की या फिर hindustaan की
सोमवार, 2 मार्च 2009
पट्रोल भी है पूँजी
आजकल विज्ञापन की दुनिया काफी विस्तृत होती जा रही है .....काफी कुछ कह रहे है आजके विज्ञापन जो लंबे लंबे भाषण नही कह पा रहे है ...........अभिषेक बच्क्चन का वाट एन आईडिया सर जी हो या डेमोक्रेसी का प्रचार या फ़िर ................ पि सी आर ऐ का सेव फिउल वाला विज्ञापन ..................जिसकी स्क्रिप्ट कुछ इस तरह है ......
बेटा -----( सिग्नल पर भी इंजन स्टार्ट रहते देखकर ) पापा मई बडा होकर साइकिल पंचर की दुकान खोलूँगा
पापा ------(आश्चर्य से !!!!!) क्या ????? क्यो????
बेटा -------जिस तरह आप पेट्रोल वेस्ट कर रहे है उस तरह भविष्य में तो पेट्रोल बचेगा ही नही तब तो सब साइकिल ही चलाएंगे न !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
छोटा सी बातचीत और एक बडा गंभीर संदेश .............जिसे समझना आज बहुत जरुरी है क्योकि आज नही समझा तो सच में ही साइकिल, बैलगाडी, और खच्चरों का जमाना वापस आते देर नही लगेगी
कुछ ही दिन पहले की बात है पेट्रोल डीजल के दाम बदने की वजह से काफी बड़ी हड़ताल हुई थी जिससे सरकार और जनता दोनों को काफी समस्या का सामना करना पडा था ..............हड़ताल तो ख़तम हो गई लेकिन एक विवाद एक प्रशन मेरे दिमाग में उठाना शुरू हुआ की हम इस कदर तेल के गुलाम क्यो है ?????????
भारत में पेट्रोल पर निर्भरता पश्चिमी देशो की देखा-देखि ठाट बाट की ज़िन्दगी को प्रोत्साहित करने का परिणाम है ये जानते हुए भी की हमारा अपना पेट्रोलियम भंडार अत्यन्त सिमित है उर्जा के लिए पेट्रोल पर निर्भरता लगातार बढ़ाई जा रही है
हाल ही में लॉन्च हुई नैनो मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए एक लुक्षुरिऔस लाइफ का सपना सच करवाने का जरिया है सुनकर मुझे भी खुशी हुई की एक गाड़ी मैं भी खरीद सकती हु लेकिन ये जानकर उतना ही चिंता भी हुई की अगर इस तरह एक एक आदमी अपने लिए अलग अलग गाडिया खरीदने लगा तो पेट्रोल का बडा संकट पैदा हो जाएगा ये सिर्फ़ एक ख्यक नहीं है बुनियादी हकीकत है ............
जब हम इस हकीकत को नजर अंदाज कर जनभुजकर पेट्रो पर अपनी निर्भरता बढ़ाते है तो ये उसी तरह लगता है जैसे पुरखो की संचित सम्पति को कोई बिगड़ी औलाद बर्बाद कर देती है और बाद में पछताती है
गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009
क्या .......मालूम ......
जब भी छूकर गुजरता है तन को
एक सिरहन सी महसूस होती है मन को
जैसे किसी ने ......नींद से जगा दिया हो
जैसे .............भटकते किसी राही को रास्ता दिखा दिया हो
क्या मालूम कुछ पूछने आई थी ये हवा
या कुछ बताकर चली गयी
क्या मालूम कोई दीया बुझ गया उसके आने से
या बुझे से मेरे मन की लौ को जगा कर चली गईं
मालूम है तो बस इतना कि
हवा आकर चली गई
बुधवार, 25 फ़रवरी 2009
शुन्य से ..............शिखर तक
कभी-कभी सोच बिल्कुल शुन्य हो जाती है कुछ समझ नही
आता की क्या सही है क्या ग़लत या कहू कि सही ग़लत नाम की कोई चीज़ होती ही नही है इन दिनों मीडिया से जुड़े कई लोगो से मिलने और बातचीत करने का मौका मिला लेकिन सबके अलग अनुभवों अलग प्रष्टभूमि के बावजूद भी एक विचार सबका साझा था कि मीडिया में मिशन जैसा कुछ नही है इट्स ओनली ऐ प्रोफेशन .............ख़बर से खेल जाओ ...................ख़बर बिकती है ..................और अंत में आम भाषा में सबका सार................ गन्दा है पर धंदा है ये ............हो सकता है फिल्ड में जाने पर ये ही सारी बाते मेरी जुबान पर भी आ जाए लेकिन बेशक ये सोच लेकर मैंने एक पत्रकार बन्ने का सपना नही पाला था आप सोचेंगे कि ये कैसी सोच है जो एकपल में ही बदल गई लेकिन सच्चाई ही कुछ ऐसी है की सोच बदलने पर मजबूर कर देती है .......... पहले कहते थे आवय्शाकता ही अविष्कार की जननी है लेकिन अब तो द्रश्य बिल्कुल ही बदल गया है लगातार अविष्कार हो रहे और उसके बाद उनकी जरुरत इस कदर पैदा की जा रही है सब कुछ भूलकर हर कोई भागे जा रहा है और आगे और आगे न जाने २ गज जमीं के लिए क्यो इतना बेचैन हो गया है इंसान और मैं बेचैन हु ये सोचकर कि कैसे ख़ुद को बदलूंगी इस दुनिया के हिसाब ............ज्यादा भली तो नही हु लेकिन अपने लिए ही एक शेर याद आ रहा है .........................
अलग नही मेरी दुनिया अगरचे है मालूम
jamana और भले आदमी का साथ नही
मैक्सम गोर्की ने कही लिखा था ..................यदि मैं अपनी चिंता न करू तो और कौन करेगा ???? लेकिन यदि मैं केवल अपनी ही chinta करू तो मेरा अस्तित्व ही किसलिए है ??????????????
आज बहुत आदर्शवादी बातें लिख दी है मैंने जिनका शायद अब कोई अस्तिtva या वजूद नही बचा है और यदि हमें अपना वजूद बनाना है तो इन सब vicharon से तौबा करना ही बेहतर ये सोच मैंने शुन्य से शुरू कि थी लेकिन badlaav कि इस byar के साथ ही इसे शिखर तक ले जाना है न जाने कैसे होगा पर जैसे taise करना तो होगा ही
बुधवार, 18 फ़रवरी 2009
कविता और जिंदगी
रविवार, 15 फ़रवरी 2009
इश्क kije फिर samajhiye.............
सुबह जब अख़बार लेने निकली तो अखबारों से
खैर घर आकर अख़बार खोला तो अख़बार में भी
वासना को main समझता हु प्रेम को नही
ये विचार पढ़कर dharamveer bhaarti की कविता की कुछ panktiyan याद आ गई उन्होंने लिखा है
न हो ये वासना तो
जिंदगी की maap कैसे हो
किसी के रूप का samman
mujh पर पाप कैसे हो
naso का reshmi तूफान
mujh पर shaap कैसे हो
mehaj इससे किसी का
प्यार mujh पर पाप कैसे हो
मुझे तो वासना का विष
हमेशा बन गया अमृत
basharte वासना भी हो
तुम्हारे रूप से aabad
panktiya बहुत ही sashaqt है और शायद कही न कही कोई सच लिए हमारे सामने आती है लेकिन फिर भी ये sawal उठ जाता है की क्या वासना ही प्रेम है सिर्फ़ प्यार ही प्रेम नही है बहुत teda swal है शायद premiyo को भी कोई जवाब न pta हो
फिर देखा दा हिंदू में reuter का एक article जिसका heading था
DISPOSABLE MONEY AND DISPOSABLE RELATIONSHIP
जिसमे जो ख़ास baat likhi थी वो ये की
PEOPLE HAD DISPOSABLE MONEY AND THEY WANT DISPOSABLE RELATIONSHIP
वैसे बात चाहे प्रेम के vaasna में badalane की हो या vyavsayik हो जाने की akhbaron से ज्यादा ये बातें aasal जिंदगी में दिखाई दे जाती है
चलिए akhbaron की dunia से hatkar अब apko ले चलते है न्यूज़ channel की dunia में जहाँ आकर मैं kafi सोच में पड़ गई क्योकि surkhiyan hi kuch aisi थी ----------------
- ujjain में bajrang दल के लोगो ने भाई-behan को peeta
- jeend में police वालों ने लड़की की बाल pakadkar berahmi से pitai की
- kolhapur में greeting card jalaye गए
- ranchi में dinbhar hinduvadi sanghtno ने हंगामा किया
- khabre तो और भी थी दोस्त लेकिन ये मेरा ब्लॉग है न्यूज़ channel नही इसलिए इससे ज्यादा नही लिख रही
यानि प्यार भी हुआ और ijhaar भी लेकिन pehre के sayen में
जितना कुछ देखा और पढ़ा utna लिख दिया लेकिन प्रेम क्या है इस बात पर अब भी ? ही laga है
लेकिन अपनी बात khatam करते करते apko kristofar morli की एक बात बताना chahungi उन्होंने कहा था की -------------------
अगर hame pta चले ki zindagi के minute बचे है jinme hame वो सब कुछ कहना जो हम कहना चाहते है तो हर टेलीफोन booth पर भीड़ लग jayegi और लोग atakte हुए एक doosre को batayenge की वो उनसे कितना प्यार करते है
बिल्कुल सही लिखा है उन्होंने प्यार तो सभी के दिल में होता है कही कहा नही jata और कही कहे बिना रहा नही जाता प्यार jatane के tarike badal गए प्यार करने वाले लोग badal गए लेकिन प्यार तो अब भी वैसा ही है तो क्यो प्यार के लिए सिर्फ़ ek दिन ko reserve किया जाए वो भी इतना ladjhagad कर हर navvarsh के sath प्यार को एक नया sankalp देते हुए उसे आगे badhaye और पूरे वर्ष उस sankalap को nibhakar हर दिन को प्यार के दिन की तरह manaye क्योकि ये प्यार ही जो इस bhagti dodti जिंदगी को tarotaja कर देता है
मंगलवार, 10 फ़रवरी 2009
बस वादविवाद
संसदिये वादविवाद प्रतियोगिताक्पेहला और सबसे जरुरोई नियम यही है की आपको अपने विपक्षी दल की बात को हर कीमत पर काटना ही है यदि आप तथ्यों के साथ अपनी बात रखते हो तो और भी बढ़िया है उसके इस nuskhe को apnate हुए मैंने २-३ बार संसदिये वाद विवाद प्रतियोगिता में हिस्सा तो लिया लेकिन जीत नही सकी क्योंकि सही बात को काटने का मुझे कोई अनुभव नही रहा है
खैर मैं बेशक अपनी दोस्त की seekh को नही अपना सकी लेकिन उसकी बात बिल्कुल सही थी ये aehsaas aajkal मुझे बार बार हो रहा है
कुछ १-२ दिन पहले BJP के rajnath singh ने कहा -------------satta में आने पर raam मन्दिर दुबारा banvayenge ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,लाल कृष्ण advani ने कहा की कोई अगर मुझसे जय shri ram कहता है तो मई कहता hun की जय shri raam कहना tab sarthak होगा जब हम ayodhya में भव्य raam मन्दिर banva सकेंगे
BJP के इस विचार और naare को NDA या sangh से कोई samarthan नही मिला vahi congress पार्टी ने भी बात के javab में कहा है की raam के नाम पर gumraah किया जा रहा है
ये बातें और bayanbaji अपने TV और akhbaro में khoob सुनी और पड़ी hongio लेकिन inka astitva क्या है जिस देश में गरीबी ,brashtachar, berojgari और aatankvaad हर badte दिन के sath badta जा raaha है vaha भव्य raam मन्दिर banvane की bate हो रही है bhagvan raam के प्रति shradha की वजह से ये सब नही हो रहा बल्कि इसलिए किया जा रहा है की और कोई मुद्दा नही bacha है और विपक्षी दल की बात काटना और उस पर aarop लगाना संसदिये vyavstha का नियम हो गया है
जो लोग ये मन्दिर m,asjid kom लेकर हर ५ वर्ष बाद bawal machate hia यदि १९९१ में एक poorani मस्जिद के बदले sansad की garima की raksh के लिए यदि उसने सरकार गिरा दी hiti तो तो शायद आज asli raam राज्य की isthapna की राह मिल गई होती
लेकिन
sarkaro के raveye के बारे में तो यही बात सही है की
तुमको aashoofta mijaajon की ख़बर से क्या काम
तुम sawara करो बैठे हुए gaisun अपने
सोमवार, 2 फ़रवरी 2009
नैतिकता का अत्याचार
इसी दौरान हाई कोर्ट की वकील चंद्रा निगम से विमर्श का अवसर मिला अब एक खास बात का जिक्र करुँगी जो इस बीच हुई......... एक छात्र ने पुछा कि
यदि कोई लड़की अभिभावकों के मना करने पर भी बार या पब में जाती है , शराब पीती है,रात को देर से घर आती है तो क्या अभिभावकों के पास उसके खिलाफ कोई अधिकार है सारी कक्षा में हँसी गूंज उठी क्योकि शायद बहुत गंभीर मुद्दों की शुरुवात एक लतीफे से ही होती है पता नही चलता कब एक मजाक हकीकत बनकर सामने आ जाता है खैर ये दार्शनिक बातें एक तरफ़ रखते है अभी
चंद्रा जिन ने भी फ़ौरन सवाल का जवाब दिया की यदि लड़की १८ वर्ष से अधिक आयु की है तो अभिभावक के पास कानूनी रूप से उससे रोकने का कोई अधिकार नही है अब बात बिल्कुल साफ़ थी लेकिन ये साफ़ बात कुछ बुद्धिजीवी लोगो को बिल्कुल समझ नही आती १८ वर्ष से अधिक आयु से अभिप्राय है की व्यक्ति अपना भला बुरा ख़ुद समझता है जबरन उस पर कुछ थोपा नही जा सकता
मंगलोर में हुई घटना से हम सभी वाकिफ है
अब इस पर स्वस्थ्य मंत्री रामदास का बयान पढिये ------
पब कल्चर भारतीयता के खिलाफ है
एक बात तो सीधे तौर पर समझ आती है की शराब ,बार ,पब ये सब अगर ग़लत है तो फिर सिर्फ़ महिलोयों के लिए नही पुरषों के लिए भी है
जिस संस्कृति की दुहाई देकर ये तथाकथित नेता हंगामा करते है शायद उसके इतिहास से वाकिफ नही है वो हमारी ही संस्कृति की तस्वीर है जहाँ अप्सराएँ नृत्य करती थी और राजा महाराजा मंद्दिरा रस में
तो संस्कृति की दुहाई देना तो यहाँ सही नही ही लगता बेशक आचार विचार सिखाया जा सकता है लेकिन इस तरह आत्याचार करके तो ये हिंदुत्व के पहरेदार आतंक फैला रहें है इस एक घटना ने काफी सारी परते खोल दी है दूसरी बात जो सामने आई की इस घटना के लिए उत्तरदायी लोगो को जमानत दे दी गई है हलाकि जमानत मिल जन कानूनी प्रक्रिया का एक अंग है लेकिन इस जमानत और ऐसे अत्याचारियों के कुले आम घुमने का एक कारन हमारा सामाजिक परिवेश है जहाँ यदि लड़किया अपने साथ हुए दुर्व्यवहार के लिया आगे आकर इन तथाकथित पहरेदारों के खिलाफ लडाई लड़ना चाहती है तो उन्हें न्याय की मंशा पलने से पहले ये ध्यान करना पड़ता है की वो एक लड़की है हमारा ये समाज घटना के लिए उत्तरदायी लोगो को भूल जाएगा लेकिन उस लड़की का नाम बदनामी की फेहरिस्त में युगों युगों के लिए दर्ज कर दिया जाएगा
सब कहते है वक़्त बदल रहा है लेकिन फिर कुछ ऐसा हीओ जाता है एक एहसास फिर जीवन पा लेता है की आजतक हम उसी लाकर को पीट रहे है जिसे लांघकर जमाना आगे निकल चुका है पिछले दिनों मैंने लड़की शीर्षक से एक कविता लिखी जिस पर कुछ लोगो ने कहा की अब लड़कियों की स्थिति बदल रही है लेकिन अब सब कुछ उनके सामने है बदलाव भी और बेदर्दी भी
गुरुवार, 29 जनवरी 2009
लड़की
संस्कारो का,
रविवार, 18 जनवरी 2009
अनसुलझे सवाल
फेहरिस्त में है इस बार
कुछ ऐसे सवाल
जिनका कोई जवाब नही है
धुंध हटी है इस तरह कि
परदा हटा है आँखों से और .......................................अब कोई ख्वाब नही है
यकीनन , अरमानो के आशियाने सजाने का शोंक अब भी है हमें
लेकीन .....................................इन्त्कामन
इस शोंक को शिकस्त देकर
अपनी शक्सियत पर इतराते भी हम ही है
करते है बातें बहारों की
सुनते है किस्से जन्नत के
लेकिन ...................................मन्नत में इन्हे मांग ले कैसे ????????
खुशियों के इस क़र्ज़ से डरते भी हम ही है
पा न सके उसे तो हासिल करने की सोची
मिल न सका वो तो मर जाने की सोची
लेकिन न जाने खुदा की खलिश है
या है मेरी किस्मत का कमाल
उसे भूलने कि कोशिश में
हर पल याद करके !!!!!!!!!!!!!!!
जिए जातें भी हम ही है !!!!!!!!.....................................................
कमजोरी
उस दिन हैंड ड्रायर से हाथ सुखाते हुए मैंने सोचा काश आंसुओं को सुखाने के लिए भी ऐसा कोई ड्रायर होता . . फिर मुझे याद आया आंसुओं का स...
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1. तुम्हारे साथ रहकर तुम्हारे साथ रहकर अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है कि दिशाएं पास आ गयी हैं, हर रास्ता छोटा हो गया है, दुनिया सिमट...
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सपने कल्पना के सिवाय कुछ भी नही होते ...मगर कभी कभी सपनो से इंसान का वजूद जुड़ जाता है... अस्तित्व का आधार बन जाते है सपने ...जैसे सपनो के ब...
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अपने व्यवहार और संस्कारों के ठीक उल्ट आज की पत्रकारिता से जुडऩे का नादान फैसला जब लिया था तब इस नादानी के पैमाने को मैं समझी नहीं थी। पढऩे, ...