सोमवार, 13 अप्रैल 2009

madhushala


आज करे परहेज जगत पर



कल पीनी होगी हाला



आज करे इंकार जगत पर



कल पीना होगा प्याला



होने दो पैदा मद का महमूद



जगत्व में कोई , फिर



जहाँ कहीं भी है मंदिर -मस्जिद



वहां बनेगी मधुशाला



बच्चन जी कि ये पंक्तिया मधुशाला का जो रूप हमारे सामने रखती है उसकी किसी और चीज से तुलना नही कि जा सकती मगर तथ्य ये है कि कविता के अहसास पर जब हकीक़त कि चादर पड़ती है तो तस्वीर बहुत बदल जाती है और आज हकीक़त ये है कि मधुशाला में बैठकर बेशक किसी जात -पात का ध्यान न दे कोई मगर न तो मंदिर-मस्जिद का विवाद सुलझा न ही मधुशाला किसी दुश्मनी को कम कर पाई है जितनी सुन्दर ये कविता है उतनी ही बदसूरत मधुशाला से समाज में उपजती बुराई है क्योकि या तो मधुशाला अब शराब के ठेके के रूप में है या फिर किसी रहिस के पैसे उडाने और ऐश करने के ठिकाने के रूप में जिन्हें तथाकथित माडर्न नामों मसलन बार या पब के नाम से जाना जाता है जहाँ जाना अमीरी का परिचायक है



ये कोई नया विषय नही है जिस पर आज मैं चर्चा कर रही हूँ न जाने कितने सालो से शराब के कहर से हजारो लाखो घर देह चुके है हाल ही में दिल्ली के एक इलाके में हुई घटना से हम सभी वाकिफ है उस पर भी चुनावों के चलते वोट के लिए नेता अवेध शराब कि सप्लाई को अपना परम धरम समझते हुए लगातार वोटर को जाम कि मोटर में बिठाकर सैर करा रहें हैं



ये नही कहूँगी कि सरकार किस कि है या फिर ये आरोप नही लगाना चाहती हूँ कि कांग्रेस गाँधी जी के उसूलों का पालन नही कर रही है क्योंकि मैं जानती हूँ कि इस समाज में सबके अपने अपने गाँधी है जिसको जिस विचार से सुविधा मिलती है वो वाही विचार अपना लेता है लेकिन ध्यान दिलाना जरुरी भी है कि आज़ादी के संघर्ष में कांग्रेस ने सामाजिक जागरूकता अभियान चुने थे जिनमे नशाबंदी भी एक था लेकिन आज़ादी मिलने के साथ ही ये नीतिया उलट दी गई अब नशाबंदी के बारे में सोचना भी पाप है क्योकि राजस्व प्राप्ति का सबसे अच्छा जरिए शराब ही तो है जब भी मैं दो चार लोगो के बिच में ये कहती हूँ की शराब की बिक्री बंद हो जानी चाहिए तब टपक से जवाब मिलता है की तेरे कहने से कोई देश तो नही badal जाएगा


thik भी है देश तो नही badlega लेकिन हम तो badal सकते है न dikhave या bhulave के लिए शराब pikar अपना और apno का भविष्य तो बरबाद न karey एक sher है


न pine में जो maja है


vo pine में नही


ये जाना हमने pikar


काश sabko ऐसा ही अनुभव हो और ये नशे में dubta समाज होश में आ सके

1 टिप्पणी:

vijaymaudgill ने कहा…

आपने विषय बहुत सही चुना है लिखने के लिए और लिखा भी सही है। मगर मैं एक बात कहना चाहता हूं कि क्या इसमें सिर्फ़ नेता लोग ही ज़िम्मेदार हैं, क्यों उनके अलावा किसी और का क़सूर नहीं है। आज अगर आप सर्वे करवाएं तो पता लगेगा कि कितने प्रतिशत लोग नशे की गिरफ़त में हैं। 100 में 90 लोग शराब पीते हैं। अगर आज नेता लोग शराब पिलाते हैं, तो उनका दोष कम और हम पीने वालों का ज़्यादा हैं, क्योंकि हम लोग आज वोट ही उसे देते हैं, जो शराब पिलाता है।
सब के सब भ्रष्ट हो चुके हैं कुछ गिने चुनों को छोड़कर। हमें पहले ख़ुद को बदलना चाहिए। और जब हम बदल जाएंगे, तो हम नेता को भी बदल सकते हैं।

कमजोरी

उस दिन हैंड ड्रायर से हाथ सुखाते हुए मैंने सोचा काश आंसुओं को सुखाने के लिए भी ऐसा कोई ड्रायर होता . . फिर मुझे याद आया आंसुओं का स...