शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

खामोशी


जेहन में तो कभी
नही रही शब्दों की कमी
मगर अक्सर आँखों की नमी
ने कुछ कहने न दिया
अभी तलक तो लबों तक ही पहुँची थी
आंसुओं की बुँदे
न जाने कैसे , कब दिल को भिगो दिया
बहुत कुछ कह जाने की हसरत ने
क्यों एक पल में ही खामोशी को चुन लिया
इस मौन को समझने वाले
तो कभी कभार ही मिलते है जिंदगी में
और सोचने वालों ने
अपना अलग सा ही
कोई अफसाना बुन लिया

कमजोरी

उस दिन हैंड ड्रायर से हाथ सुखाते हुए मैंने सोचा काश आंसुओं को सुखाने के लिए भी ऐसा कोई ड्रायर होता . . फिर मुझे याद आया आंसुओं का स...