मंगलवार, 30 जुलाई 2013

जब शब्द मरते हैं

एक आदमी था
बिलकुल वैसा ही जैसा होता है एक आदमी
मगर उस आदमी को सही-सही याद था
अपने जन्म का समय, तारीख और जगह।

उसने सुना एक जाने-माने विद्वान पंडित के बारे में।

वह उसके पास गया अपनी
किस्मत और उसका हुनर आजमाने

आदमी के हाथ की रेखाओं को पढ़ते ही 
विद्वान ने बता दिया उसके परिवार, सेहत, दाम्पत्य और करियर का हाल। 

समझा दिया आने वाली 
हर विपदा से बचने का उपचार

वह कब तक जीएगा
और मरने से पहले क्या-2 हासिल करेगा, 
इस बात का भी हो गया उस आदमी को ज्ञान

मगर परेशान हैं वह आदमी 
पिछले कुछ दिनों से बहुत।

बहुत हंसता है
और रो पाने की हर कोशिश
जैसे नाकाम हो गई है।

बहुत चुप रहता है
और कह दे किसी से ये चाहत
जैसे श्मशान हो गई है।


आदमी की जिंदगी और मौत की तिथ‌ि
बताने वाले विद्वानों 
को शायद नहीं मालूम हो पाता है
शब्दों की मौत का समय

इसका अहसास खुद समय करवाता है
जैसे अभी-अभी उस आदमी को हुआ है अहसास...

उम्मीद नामक एक शब्द मर चुका है उसके जेहन में 

और अब परेशानी की वजह बन रही है
मर चुकी उम्मीदों की भटकती आत्मा


विद्वानों को थोड़ा और विद्वान होने की जरूरत है शायद

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