गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

खुशियां नहीं जानतीं...

  
खुशियां नहीं जानतीं किस मौसम में खिलते हैं फूल
और किस मौसम में पत्ते झड़ते हैं पेड़ों से

किस मौसम में बारिश लाते हैं बादल और 
किस मौसम में हो जाती है बिना बादलों के ही बरसात

किस मौसम में कोहरे और धुंध की चादर में लिपट जाता है हर इंसान
और किस मौसम में हवाएं चलती हैं अपनी सबसे तेज चाल

खुशियों को कुछ मालूम नहीं होता

वो अपने वक्त से आती हैं
वक्त हो जाने पर बिना देरी किए चली जाती हैं

जैसे इस बार आया है वसंत 
मगर खुशियां नहीं आईं
वो आईं थीं उस वक्त 
जब मौसम बहुत उदास था।

कमजोरी

उस दिन हैंड ड्रायर से हाथ सुखाते हुए मैंने सोचा काश आंसुओं को सुखाने के लिए भी ऐसा कोई ड्रायर होता . . फिर मुझे याद आया आंसुओं का स...