सोमवार, 12 मई 2014

पंडित जी जानते हैं कौन बनेगा प्रधानमंत्री !

इस समय का सबसे बड़ा सवाल है- देश का प्रधानमंत्री कौन बनेगा?
कुछ दिन पहले जब मुझसे किसी ने ये सवाल पूछा तो मैंने कहा- मुझे क्या पता?
मेरी तो वैसे भी राजनीतिक समझ काफी कम है।
उसने कहा- क्यों तुम्हें तो मालूम होना चाह‌िए, मीडिया में हो। पत्रकार हो। कुछ तो विश्लेषण किया होगा…
ठीक उसी वक्त लगा कि पत्रकार होकर ये मालूम न होना कि देश का प्रधानमंत्री कौन बनेगा? घोर अयोग्यता है।
तब से कोशिश कर रही हूं कि राजनीति और राजनेताओं को गंभीरता और गहराई से समझ सकूं।
मगर आज तक जबकि इस सवाल का जवाब सामने आने में कुछ ही दिन बाकी हैं, मेरे पास इस सवाल का कोई सटीक जवाब नहीं है। आंधी और लहर के बीच कहीं बारिश होती तो शायद…
वैसे भी इस लोकतांत्रिक रंगमंच के क्लाइमेक्स में कब क्या हो जाए, भला किसे पता…
इसल‌िए मैं कोई भी जवाब देकर रिस्क नहीं लेना चाहती
मुझे अपनी इमेज की बहुत चिंता है … जवाब गलत निकला तो…
और राजनीति को लेकर मेरी कोई निजी और कट्टर विचारधारा भी नहीं है, कि जल्दी से ‌उसकी ओठ में खुद को छिपा लूं।
फिर कुछ दिन बाद यही सवाल मैंने किसी से पूछा- आपको क्या लगता है देश का प्रधानमंत्री कौन बनेगा?
जिनसे मैंने ये सवाल पूछा उन्हें पत्रकारिता का लंबा अनुभव है और ऐसे कई लोकसभा चुनाव वह देख चुके हैं, कवर कर चुके हैं…उनसे सवाल के तुरंत बाद एक तुरत जवाब की अपेक्षा थी, मगर उन्होंने टीवी पर एक राजनीतिक भाषण सुनते हुए एक नजर मेरी तरफ देखा और वापस उस भाषण की ओर मुड़ते हुए दोनों हाथ पेंट की जेब में डालते हुए बेहद अनमने अंदाज में कहा- कुछ नहीं कहा जा सकता, मोदी की लहर है, कांग्रेस की तो नहीं बनने वाली इस बार
लेकिन तीसरे मोर्चे जैसा भी कुछ हो सकता है।
वाह… जवाब न मिलने के दुख से ज्यादा मुझे इस बात की खुशी थी कि इतने अनुभवी व्यक्ति के पास भी मुझ जैसी अपेक्षाकृत काफी कम अनुभव वाली पत्रकार की तरह कोई सधा हुआ और ठीक-ठीक जवाब नहीं है।
ठीक भी है आखिर पत्रकार हैं कोई अंतर्यामी तो नहीं…
फिर गाहे-बगाहे कई बार कई लोगों के साथ इस सवाल की चर्चा हुई। किसी ने अपनी निजी विचारधारा में लपेटकर जवाब दिया और किसी ने कई तरह के कयास लगा दिए…‌कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जिसने ‌क‌िसी पूर्वाग्रह के ‌ब‌िना अपनी समझ और आत्मविश्वास से एक सधा हुआ जवाब दिया हो।
‌ल‌िहाजा मैं ये मानकर संतुष्ट हो गई कि इस समय के इस सबसे बड़े सवाल का सही और सटीक जवाब सिर्फ समय के ही पास है और समय का इंतजार करने लगी…वैसे भी राजनीति इस नॉट माई कप ऑफ टी…मगर नहीं…जब टी स्टॉल से लेकर कॉमन टॉयलेट्स तक लोग एक-दूसरे से इसी सवाल पर चर्चा कर रहे हों तो राजनीति की चाय पीने से कब तक बचा जा सकता था…
मन अंशात हो तो कभी-कभी मंदिर जाकर शांति मिलती है।
मैं कुछ दिन पहले मंदिर गई…दहलीज पर हाथ लगाकर माथे से छुआया
अंदर दाखिल हुई…मंदिर की घंटी बजाई
और उस घँटे की आवाज अभी कान में गूंज ही रही थी, मैंने आंखें बद करते हुए प्रार्थना में हाथ जोड़े ही थे कि फिर वही सवाल सुनाई दिया…
एक अंकल जी, जो मेरे पीछे-पीछे मंदिर के अंदर आए थे, ने पंडित जी के चरण स्पर्श करते हुए पूछा—– और पंडित जी किसकी सरकार बन रही है इस बार….
पंडित जी ने आर्शीवाद का हाथ उनके सिर पर रखते हुए …पूरे आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया….- मोदी की बनेगी भाई साहब, ग्रह बोल रहे हैं उनके…
इस जवाब के मिलने के बाद मंदिर में मिलने वाली शांति मुझे नहीं मिली…मैंने औपचारिकता के तहत पूजा पूरी की और अपनी तयशुदा प्रार्थनाओं की लिस्ट भी मैं लगभग भूल गई…मुझे याद आ रहा था तो बस इतना कि राजनीति समझने के लिए नेता और पार्टी की हिस्ट्री पढ़ना, उनके भाषण सुनना, उनके मेनिफेस्टो को परखना और उनकी इमेज पर रिसर्च करना कितना नाकाफी था…ज्योतिष इस दुनिया में ‌कितनी बड़ी चीज थी..ग्रह नक्षत्र कितने अहम एलीमेंट थे सिर्फ लोगों की जिंदगी के ही नहीं, देश का भविष्य भी अब ग्रहों के हाथ में था..,
अब जब जिस देश में राजनीतिक दल शुभ महूरत देखकर घोषणाएं करें, नेता अपने लक्की पेन से साइन करें…तो सिर्फ पंडित ही सही और सटीक जवाब दे सकते थे..कि सरकार किसकी बनेगी…फिर मुझे याद आया चुनावों की सुगबुगाहट जिस वक्त शुरू ही हुई थी तब भी एक पंडित जी की भविष्यवाणी खबरों में छाई रही थी उन्होंने बाकायदा बताया था-
मोदी जी इतनी तारीख को इतने बजकर इतने मिनट पर प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे।
काश पंडित जी बता पाते ग्रह नक्षत्रों की चाल देखकर कि कब इस देश की राजनीति धर्म और जाति मुक्त होगी, कौन-सी तारीख से पार्टियों के मेनीफेस्टो में दर्ज हर वादे को अपने तय कार्यकाल में पूरा किया जा सकेगा….घड़ी में कितने बजने से कितने मिनट पर इस देश में एक ऐसा पल आएगा जब लोग ”राजनीति” नामक शब्द के बारे में अच्छी और सकारात्मक सोच रख सकेंगे…अपने रहनुमाओं पर भरोसा कर सकेंगे…और…$$$$$$$$ ल‌िस्ट काफी लंबी है…
पंडित जी इतना ही बता सकें तो काफी होगा…फिलहाल के लिए…

कमजोरी

उस दिन हैंड ड्रायर से हाथ सुखाते हुए मैंने सोचा काश आंसुओं को सुखाने के लिए भी ऐसा कोई ड्रायर होता . . फिर मुझे याद आया आंसुओं का स...