बुधवार, 24 जून 2009

वो कसम ........वो इरादा




चुनावी मौसम में नेतायों के वादे कर भूल जाने की आदत या कहे की फितरत से तो हम आम जन भली भांति वाकिफ ही है पर हाल ही में हुए चुनावों में एक ऐसे व्यक्ति ने कुछ वादा किया था जिसे देश ही नही विदेश में भी योग गुरु के नाम से जाना जाता है और जिसकी अपनी एक ब्रांड वैलुए भी है ..................मगर राजनीती से दूर रहने की बात कहकर भी लगता है बाबा जी ने राजनीती की नीतियों को आत्मसात कर ही लिया ...............



गौरतलब है की बाबा रामदेव ने स्विस बैंक में जमा काले धन के मुद्दे पर ....................तमाम चैनलों और अख़बारों में ब्यान दिया था की मेरा राजनीती या किसी विशेष पार्टी से कोई सम्बन्ध नही है ...................भाविश्यें में जिस भी पार्टी की सरकार बनेगी उसे १०० दिन के भीतर इस काले धन को देश लाकर जनकल्याण में लगाना ही होगा .........................................पर अब तक क्या हुआ है इसे जानते भुझते हुए हम तो ये ही कह सकते है की ........................क्या हुआ तेरा वादा ..............वो कसम वो इरादा .........................और फ़िर वो सारा मीडिया जिसने रामदेव जी को लेकर १ -१ घंटे के इस्पेसिअल प्रोग्राम बनाये ..................वो भी अब रामदेव जी एक झलक दिखाकर ये पूछने का दायित्व नही निभा रहे की उनके संकल्प का क्या हुआ .............................. .............................संकल्प हिन्दी भाषा का एक बेहद संजीदा शब्द है मगर इस झूट-- मुठ की दुनिया में शब्दों की प्रमाणिकता पर भी संदेह सा होने लगता है .............................ऐसा ही कुछ ब्यान भावी पीडी के नेता.........तथा ,,,,,,,, और भी कई विशेष विशेषणों से सुसजित राहुल जी ने भी लिया था ..............मगर ??????????????????????????? लगता है ????????????????????????????????मगर जैसी ही चाल चल गए सब

गुरुवार, 18 जून 2009

शतुरमुर्ग न बने .....जनाब

शतुरमुर्ग के बारे में बात कही जाती है की वो जब भी कोई शिकारी या खतरा देखता है अपना सर मिटटी में घुसा लेता है ..........................................मतलब उसने मारे जाने के खतरे से बचने के लिए सर को मिटटी में घुसाने का तरीका अपने लिए आरक्षित कर लिया है बजाये बचने का कोई तरीका तलाशने के वो ख़ुद को छुपा लेना चाहता है ................................................कुछ ऐसी ही स्थिति हमारे देश में वादों विवादों से घिरी रहने वाली आरक्षण की व्यवस्था की है .......................इन दिनों नई सरकार में महिला आरक्षण का मुद्दा जोर शोर से उठाया जा रहा है प्रभुध जनों के लेख इत्यादि छप रहे है तो दो बातें हम भी कहे देते है .......................दरअसल जब अखबार में कार्टून और कहानिया पढने से ज्यादा कुछ जानने में रूचि नही थी तब से आरक्षण नामक ये शब्द सुनते आ रहे है
लेकिन अब जब समझा है तो मामला गड़बड़ सा जान पड़ता है ........................ये व्यवस्था दलितों पिछडो को उन्नत और आधुनिक बनने उनका जीवन इस्तर सुधारने के लिए शुरू की गई थी .................लेकिन क्या २०-२५ वर्षो बाद परिणाम संतोषजनक भी नजर आते है .................निश्चित तौर पर नही ......................आज भी कई ऐसे ग्रामीण इलाके है जहाँ मंदिरों, इस्कुलों , और सार्वजानिक इस्थानो पर दलितों के साथ भेदभाव किया जाता है
कई ऐसे पिछडे वर्ग है जिन्हें २१ सदी का ये आधुनिक भारत देखने तक को नसीब नही है क्योंकि उनकी जिंदगी कही सुदूर घने जंगलों और पहाडों के सायें में तमाम असुविधयों के बिच बीत रही है .........................
और जो मूल मुद्दा लेकर मैंने ये सब लिखना शुरू किया था महिलाएं ...........................यदि उनकी बात की जाए तो
इस आधी आबादी का सशक्तिकरण करने के लिए आरक्षण की व्यवस्था को लागु करके ........................तथाकथित पैरोकार ........शतुरमुर्ग की तरह ही मुख्या कार्य से मुह मोड़ते प्रतीत नही होते ........................इस विषय में पुनः सोचने की जरुरत है क्योंकि क्षेत्र चाहे कोई भी हो योग्यता की जरुरत प्रथम इस्तर पर है ..............जहाँ तक महिलायों की उन्नंती की बात है तो पहले ये इंतजाम किया जाए की घर से निकलने पर उसका बलात्कार का खतरा नही होगा .............उसका कोई बॉस उसका यौन शोषण नही करेगा .........................बस मुस पर फब्तियां कसने वाले लोगो को सजा दी जायेगी ..................दहेज़ के नाम पर किसी लड़की को जिन्दा नही जला दिया जाएगा .............................लड़की होने की वजह से अजन्मे बचे को ही नही मार दिया जाएगा...............................ये तमाम बाते सुनिश्चित हो जायें तब जाकर कही .................इस आधी आबादी को थोड़ा सुकून मिल सकेगा और फ़िर संसद तक पहुचने के लिए किसी वैसाखी की जरुरत नही पड़ेगी और ............................................न ही आरक्षण के मुद्दे पर आरोप प्रत्यारोप की वजह से बाकि जरुरी बातें शेष रह जाएँगी .............................................................................

शुक्रवार, 12 जून 2009

रास्ता

ऐसा कोई सूरज नही
न चाँद
न देवता
समुन्दर
जो तुम्हे मुक्ति दिलाएगा
पत्थर है चाहो तो
उन्हें बीन चुनकर ख़ुद
रास्ता बना लो

रविवार, 7 जून 2009

बीच बाजार में

लगभग हर दिन जिंदगी बीतती है आज क्या पाया ये सोचने और कल क्या हासिल करना है ये योजना बनाने में और हर दिन लगता है क्या है ये ज़िन्दगी .......... वाही शेर की पंक्ति ध्यान आती है की ..............बड़ी आसन थी मंजिल हमारी मगर रहबर ने उलझाया बहुत है ......................हर एक बात के लिए संघर्ष और उस पर एक महान सोच की संघर्ष ही सफलता की सीडी है............ चिडिया के बच्चे की तरह जब तक हम भी एक सायें तले जी रहे थे ऐसा ही लगता था पर घोंसले से बहार निकलकर देखा तो पता चला की सब कुछ बेमानी था सारा संघर्ष और सारी सोच धरी की धरी रह गई और अब शुरू होता है" एक नया संघर्ष ...... संघर्ष में न पड़ने का "मतलब अपना स्वार्थ साधो और पता नही क्या क्या??????????????? एक पत्रकार नही एक प्रसिद्ध पत्रकार बन्ने का सपना लेकर ये संघर्ष शुरू किया था लेकिन एक न्यूज़ चैनल में आते हुए अभी कुछ एक दिन ही हुए है और लगने लगा है की "ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नही"दरअसल यहाँ काम तो बहुत है लेकिन काम को देखकर लगता नही की ये पत्रकारिता है मैं लिखना जानती हूँ पढने का भी बहुत शौंक है लेकिन इस लिखने पढने के बिच ये घालमेल का फ्यूजन फिलहाल तो समझ नही आ रहा शायद भाविश्यें में आ जायें तो ..............अपनी ही इन बातों का मैं समर्थन न कर सकूँ फिलहाल भाविश्यें की कल्पना से भी भयभीत हूँ क्योंकि पत्रकारिता में आकर पत्रकार बन्ने की बजाये इस माहौल से एक लेखक मेरे अंदर पलने लगा है ............... जो हर दिन बहुत कुछ लिख देना चाहता है और क्या लिखे इस वजह से कुछ नही लिख पाता............... अब हिन्दी में लेखको की इस्थिति किसी से छुपी नही है ये एक शौंक हो सकता है लेकिन मंदी और महंगाई के इस दौर में कैसे कोई इसे अपने करमशेत्र में शामिल कर ले ?????बहरहाल आज ये यंत्र (कंप्यूटर ) मिला तो भड़ास निकाल दी अब भी लग रहा है कुछ कहना बाकि है खैर जिंदगी भी बाकि है लिखते ही रहेंगे पर आप हमें कागज पर पढेंगे या इस्क्रिन पर इसका हमें भी फिलहाल कोई अंदाजा नही है ...............

कमजोरी

उस दिन हैंड ड्रायर से हाथ सुखाते हुए मैंने सोचा काश आंसुओं को सुखाने के लिए भी ऐसा कोई ड्रायर होता . . फिर मुझे याद आया आंसुओं का स...