गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

बस इतना सा जो ख्वाब था



कभी कभी भावनाओ के स्टोक बोक्स में इतना कुछ इकठा हो जाता है कि उसे बताने के लिए हर शब्द नाकाफी लगता है जैसे बस कुछ रेखाएं खिंच कर एक तस्वीर बना दूँ और सारी कहानी बयाँ हो जाये लेकिन मैं चित्रकार नहीं हूँ ...लिखती हूँ.. लेकिन आज लिख भी नहीं पा रही
कुछ बेवकूफी भरी बातें हैं मेरे मन कि जो कहना चाहती हूँ
जब से लड़कियों वाली बातों, प्यार व्यार, क्रश वरश के बारे में सुना, जबसे कुछ बनने और आगे बढ़ने का सपना देखा, तबसे सितारों कि दुनिया के एक इंसान को बड़ी शिद्दत से चाहा...मुझे जानने वाला हर शख्स जानता है कि मैं शाहरुख़ की दीवानी हूँ ...बचपन से...अब तक ..इस प्यार का कोई प्रूफ नहीं है मेरे पास
हाँ कल एक दबी पड़ी सी इच्छा पूरी हुई उसे पास से देखने की उससे सवाल पूछने की..उसे जानने की निहारने की समझने की  हा हा हा हा जानती हूँ की बहुत बचपने में बहकी बहकी बातें लिख रही हूँ लेकिन आज बहुत दिन बाद शायद मैं खुल कर खुश हुई ... पाने सारे दर्द और उलझाने भूल गई ...फिर से जी उठी ..
एक साधारण सा इंसान इतना असाधारण कसी बन जाता है...इस सवाल का जवाब है शायद इन सितारों की सफलता का राज है और मेरे ख्वाबों का राज आर्यन भी .......................

कमजोरी

उस दिन हैंड ड्रायर से हाथ सुखाते हुए मैंने सोचा काश आंसुओं को सुखाने के लिए भी ऐसा कोई ड्रायर होता . . फिर मुझे याद आया आंसुओं का स...