दोस्ती के दायरों के बीचोंबीच
प्यार के कुनमुनाते एहसास को
जब कोई नाम न मिले
एक जरुरी जुस्तजू के बीच
जब उस नाजायज जिक्र को
जुबान न मिले
तब क्या हो ???
तुम कहो
तुम बताओ
कि तब
एहसासों का अंजाम क्या हो ??
चाय की चुस्कियों के संग कभी
कभी यूँ ही सरेराह पानीपूरी के चटकारों के
में चल रही
बातों का मुकाम क्या हो ??
मुझे भी नही है यकीं किसी
बंधन में
पर वो साथ जो बांध ले तुम्हे
उसका अहसान क्या हो ??
मैं तो ठिठक गई हूँ
ठेठ प्रेम के सांचों में कहीं
जो मैं न मान
सकी किसी एल ओ वी इ की
गुजारिश को
और हर बार किया मैंने इंकार
तुम्हारे उस
साथ आवारा सडको पर
फिरने के मनुहार को
तो बताओ
इसमें सजा का फरमान क्या हो ??
काश तुम कह पाते एक शब्द भी
इन सारे सवालों के जवाब में
मगर
तुम ने ओड़ ली होगी एक
शातिर सी ख़ामोशी फिर से
जैसी तुम ओड़ते आए हो
शायद तब से
जब से तुमने अपनी उम्र की
लड़कियों का मतलब सिर्फ
वक़्त बिताने के एक माध्यम के रूप में समझा है .....
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मैं भी क्यों थकी नही न जाने अब तक
क्यों सावन की इस पहली बारिश के संग
फिर से मैंने सवालों की झरी में
खुद को इस कदर भिगो दिया है
कि अब गीला हुआ वो आंचल
सूखता ही नही है
भीगता ही जाता है
कभी बारिश की बूंदों से
कभी आंसुओं के पानी से
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और तुम उधर दूसरी तरफ खड़े कही
किसी नए प्यार की धुप सेंक रहे हो
सुखा रहे हो हर पुराने प्यार के सिलेपन को
या न जाने तुम्हारे शब्दों में कहते होंगे उसे
बासीपन...
बासी रोटी की तरह
जिसे सब जानवरों को खिला देते है
;
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तुम्हारे न होने के गम में
ये सवाल उठे है
ये शंकाए पैदा हुई है
ऐसा सोचोगे तुम
मुझे लगता है
तुम्हारी सोच के पैमानों
को परखा है मैंने
मगर सच ये है कि
ये सारे सवाल तुम्हारे होने की
हर बात
हर जज्बात
हर मुलाकात
को झुक्लाना चाहते हैं