प्रेम- कुछ सवाल लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
प्रेम- कुछ सवाल लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

जटिल प्रेम के सरल से प्रेम पत्र


मैंने कभी नहीं लिखा था
किसी को प्रेम पत्र
ये बात सौ फीसदी सच है
हां ये कहना थोड़ा अजीब होगा
कि कभी नहीं किया है प्रेम
मगर ये देखना दिलचस्प है
कि कुछ बच्चे लिख रहे हैं
गणित की कक्षा में
बड़े-बड़े जटिल सवालों के बीच
एक दूसरे को
छोटे-छोटे सरल से प्रेम पत्र
कॉपी के कागज की पर्चियां बनाकर
जबकि वो नहीं जानते कि
क्या होता है प्रेम
और उनके अध्यापक
एक-दूसरे पर लगा रहे हैं
अनुशासन में ढील का आरोप
बना रहे हैं सख्ती की नई योजना
और में सोच रही हूं
कोई तरकीब एक खास कक्षा लगाने की
सजा नहीं जिसमें समझ दी जाए प्रेम निभाने की ।

शनिवार, 24 मार्च 2012

प्रेम का अनुवाद

प्रेम का अनुवाद देह होता है
किसी ने कहा था
मैंने कहा
जिस प्रेम का अनुवाद देह है
वो प्रेम से कुछ अलग है
प्रेम से कुछ कम है
उसने कहा
ये तुम्हारा भ्रम है
मैंने कहा
तुम्हारी भाषा ही कमजोर है
जिस तरह पूजा के बाद मिलने वाले
जल का अनुवाद पानी नहीं हो सकता
उसी तरह
प्रेम का अनुवाद देह नहीं बन सकती
तुम्हीं सोचो, तुम्ही बताओ
क्या तुम्हें सिर्फ मिटती हुई वो दूरियां याद हैं
जिनके बाद दो शरीर एक दूसरे में सिमटते गए थे
.
.
एक-दूसरे के शरीर से कोसों दूर भी
लगातार पलती-बढ़ती हुई
उन नजदीकियों को तुमने कौन सी जगह दी है
अपनी स्मृति में
अपनी यादों में
क्या सबसे निचले माले पर बिठा दिया है
उन पलों को
जिनके होने से बचा हुआ है
आज भी
प्रेम का असितत्व
देह से बिल्कुल अलग
बहुत दूर भी

रविवार, 18 मार्च 2012

तुम और मैं

तुमसे दूर जाने की कई वजह थी मेरे पास
फिर भी
मैं तुम्हारे सबसे नजदीक रहना चाहती थी
तुम हर बार
मेरे दिल पर दस्तक देकर
दुत्कार रहे थे मुझे
मैं हर बार
तुम्हारा दर्द सहलाना चाहती थी
तुम चाह रहे थे
सब कुछ छिपाना
मैं चाह रही थी जताना
तुम पहले ही
निगल चुके थे
सारी भावनाएं
मैं अब
दांतों तले
हर एक अहसास को
चबा रही थी
तुम
एक अहम शख्सियत बनना चाहते थे
मेरी जिंदगी में
मैं
तुम्हें अपनी दुनिया का
सबसे खास शख्स बनाना चाहती थी
तुम अच्छी तरह जान चुके थे मुझे
कई तरह परख चुकने के बाद
मुझे डर था तुम्हें खोने का
हर परख से पहले
तुम मुझे सिखाकर
खुद भूल गए थे प्यार करना
मैं अब भी सीखे जा रही थी

शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

पुरुष प्रधान कविता



नाबालिग लड़की से बलात्कार
पत्नी पर, शराबी पति का अत्याचार
बेटी के प्यार पर, बाप का प्रहार
ऐसी तमाम खबरों को लिखने 
और पढ़ने के बावजूद भी
मैं अपनी रचनात्मकता की फेहरिस्त में
जोड़ना चाहती हूं
एक पुरुष प्रधान कविता,
एक धारावाहिक
या ऐसी कहानी
जो पुरुष के अहसास और अनुभव बयां करे
लेकिन सांचों में ठिठके
इस तबके की तारीफ अफजाई के लिए
मुझे लंबा इंतजार करना होगा
या फिर जल्द ही
किसी आदमी को पुराने सांचों को तोड़
बाहर निकलना होगा
मिसाल बनना होगा
ताकि मेरी रचनात्मकता को
एक तथ्य मिल सके
और महिला समाज को एक उम्मीद

बुधवार, 4 जनवरी 2012

जब दो वक़्त मिलते हैं

वक़्त वक़्त की बहुत सी बातें है
शाम के एक ख़ास वक़्त पर
माँ कहती है
धुप बत्ती करो
संध्या समय है
उस वक़्त वो बाल नहीं सवारने देती
दर्पण में नहीं निहारने देती
ये  उनका एक अंध विशवास लगता है
पर जब माँ कहती है
दो वक़्त मिल रहे हैं इस वक़्त
दरिया भी रुक जाता है ...
तो ये मुझे
अपना एक
अनछुआ अहसास लगता है
जैसे वक़्त के रुक जाने की कल्पना से
मन सिहर जाता है
वक़्त आगे बढ़ने लगता है
तो जी घबराता है
.
.
ये माँ कैसी बातें करती है
कि इस वक़्त
एक वक़्त
दूसरे वक़्त
से मिल जाता है
जैसे सुबह को शाम
अपने आगोश में ले लेती हो
या सूरज की  देह
चाँद बनकर निकलती हो
दरिया कितना खुशनसीब है
जो वो रुक पाता है
ये देखने के लिए
मेरा तो सारा वक़्त ही
उस वक़्त की कल्पना करने में निकल जाता है


मंगलवार, 22 नवंबर 2011

प्रेम - कुछ सवाल(२)

बुरा होना बहुत जरुरी है
क्योंकि अच्छा बनकर
आप वो नहीं रह जाते
जो आप हो या होना चाहते हो
लेकिन जब आप बुरे होते हो
तो कितने लोग  ये समझ पाते हैं
कि अब वास्तव में आप अच्छे हो
कम से कम
सच्चे तो हो
....................................................................
मैं कहूँ कि बहुत बुरा महसूस हुआ मुझे
जब तुमने मेरे हाथों को
लोगों की उस महफ़िल में
अपने हाथों में लिया
जबकि
प्यार का
खामोश सा इजहार भी
हो चुका  है हमारे बीच
मुझे नहीं लगता प्यार में छूना
एक नैतिक जिम्मेदारी या परम्परा है
मुझे नहीं लगता कि
छुए बिना आगे नहीं बढ़ सकता प्यार
मुझे लगता है
इतना प्यार है हमारे दरम्यान
कि दरो दीवार की ये दूरियां
उसे कभी नहीं मिटा पाएंगी
वो एहसास
जब तुमने छू लिया था
मेरे दिल को गहरे तक
वो कभी धुंधला नहीं पड़ सकता
मेरी आँखों में
कभी मैला नहीं हो सकता
उससे मेरा आंचल
पर मैं बुरी हूँ तुम्हारी नजरों में
क्योंकि मैंने अपनी भावनाओ का भी ख्याल रखा
तुम्हारे प्यार को सहेजने और समझने के साथ
कह बैठी मैं तुमसे अपने दिल की बात
भूल गई उस शिक्षा को
जो अक्सर माँ को कहते सुना था
मर्दों से हर बात नहीं बाटनी चाहिए
मैं बुरी हूँ
क्योंकि मैं तुम्हे कोसना नहीं चाहती थी बाद में
मैं बुरी हूँ क्योंकि
मैं कुछ पलों के लिए नहीं
ताउम्र के लिए चाहती थी तुम्हारा साथ
..................................
एक लड़की है
जो मुझे लगता है कि
तुमसे थोड़ा  ज्यादा समझती है मुझे
मैं उसे पढ़वा  सकता हूँ अपनी प्रेम कवितायेँ
जिन्हें पढ़ना  तुम्हे नहीं है पसंद
या कि
तुम नहीं समझ पाओगी
कि तुम्हारे ख्यालों में खोकर ही
लिख बैठा था मैं
तुम ढूंदोगी  उनमे
किसी और का अक्स
मैं कहूँ कि
एक लड़की है
जो मुझे अपने जैसी लगती है
जिससे घंटों बातें करते वक़्त
मैं भूल जाता हूँ
वक़्त के बारे में सोचना
तब क्या करोगी तुम
मेरी प्रेयसी 
तुम खुद को कटघरे में खड़ा कर दोगी
या उठा दोगी मेरे चरित्र पर सवाल
..............................................


( ये दो अलग अलग बातें हैं .
एक में प्रेमिका अपने प्रेमी से संवाद कर रही है
और दूसरे में एक पति अपनी पत्नी से जिससे वो बेहद प्यार करता है.
अब सवाल ये है की प्रेम भरे इन रिश्तों के बीच  ये सवाल दीवार बनकर क्योंकर उठ खड़े हुए है क्या इनका कोई जवाब है या फिर ... एक वक़्त पर हर अहसास हर जज्बात इसी तरह खोखला हो जाता है ??? )



गुरुवार, 1 जुलाई 2010

प्रेम- कुछ सवाल (१)

दोस्ती के दायरों के बीचोंबीच 
प्यार के कुनमुनाते एहसास को 
जब कोई नाम न मिले 
एक जरुरी जुस्तजू  के बीच 
जब उस  नाजायज जिक्र को
जुबान न मिले 
तब क्या हो ???
तुम कहो 
तुम बताओ 
कि तब 
एहसासों का अंजाम क्या हो ??
चाय की चुस्कियों के संग कभी 
कभी यूँ ही सरेराह पानीपूरी के चटकारों के 
में चल रही 
बातों का मुकाम क्या हो ??
मुझे भी नही है यकीं किसी 
बंधन में 
पर वो साथ जो बांध ले तुम्हे 
उसका अहसान क्या हो ??
मैं तो ठिठक गई हूँ 
ठेठ प्रेम के सांचों में कहीं 
जो मैं न मान 
सकी किसी एल ओ वी इ की 
गुजारिश को 
और हर बार किया मैंने इंकार 
तुम्हारे उस 
साथ आवारा सडको पर 
फिरने के मनुहार को 
तो बताओ 
इसमें सजा का फरमान क्या हो ??
काश तुम कह पाते एक शब्द भी 
इन सारे सवालों के जवाब में 
मगर 
तुम ने ओड़ ली होगी एक 
शातिर सी ख़ामोशी फिर से 
जैसी तुम ओड़ते आए हो 
शायद तब से 
जब से तुमने अपनी उम्र की 
लड़कियों का मतलब सिर्फ 
वक़्त बिताने के एक माध्यम के रूप में समझा है .....
.
.
.

मैं भी क्यों थकी नही न जाने अब तक 
क्यों सावन की इस पहली बारिश के संग 
फिर से मैंने सवालों की झरी में 
खुद को इस कदर भिगो दिया है 
कि अब गीला हुआ वो आंचल
सूखता ही नही है 
भीगता ही जाता है
कभी बारिश की  बूंदों से 
कभी आंसुओं के पानी से
;
;

और तुम उधर दूसरी तरफ खड़े कही
किसी नए प्यार की धुप सेंक रहे हो 
सुखा रहे हो हर पुराने प्यार के सिलेपन को 
या न जाने तुम्हारे शब्दों में कहते होंगे उसे
बासीपन...
बासी रोटी की तरह
जिसे सब जानवरों को खिला देते है
;
;
तुम्हारे न होने के गम में 
ये सवाल उठे है 
ये शंकाए पैदा हुई है 
ऐसा सोचोगे तुम 
मुझे लगता है 
तुम्हारी सोच के पैमानों 
को परखा है मैंने 
मगर सच ये है कि
ये सारे सवाल तुम्हारे होने की
हर बात 
हर जज्बात 
हर मुलाकात 
को झुक्लाना चाहते हैं 



कमजोरी

उस दिन हैंड ड्रायर से हाथ सुखाते हुए मैंने सोचा काश आंसुओं को सुखाने के लिए भी ऐसा कोई ड्रायर होता . . फिर मुझे याद आया आंसुओं का स...