शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

पुरुष प्रधान कविता



नाबालिग लड़की से बलात्कार
पत्नी पर, शराबी पति का अत्याचार
बेटी के प्यार पर, बाप का प्रहार
ऐसी तमाम खबरों को लिखने 
और पढ़ने के बावजूद भी
मैं अपनी रचनात्मकता की फेहरिस्त में
जोड़ना चाहती हूं
एक पुरुष प्रधान कविता,
एक धारावाहिक
या ऐसी कहानी
जो पुरुष के अहसास और अनुभव बयां करे
लेकिन सांचों में ठिठके
इस तबके की तारीफ अफजाई के लिए
मुझे लंबा इंतजार करना होगा
या फिर जल्द ही
किसी आदमी को पुराने सांचों को तोड़
बाहर निकलना होगा
मिसाल बनना होगा
ताकि मेरी रचनात्मकता को
एक तथ्य मिल सके
और महिला समाज को एक उम्मीद

कमजोरी

उस दिन हैंड ड्रायर से हाथ सुखाते हुए मैंने सोचा काश आंसुओं को सुखाने के लिए भी ऐसा कोई ड्रायर होता . . फिर मुझे याद आया आंसुओं का स...