गुरुवार, 30 अप्रैल 2009

नजर को नजर की तलाश

उसके कहकहों में भी एक कशिशथी ............................................................................
जिसे कहने की कोशिश उसने कई बार की ..................................................................
बताना चाहा उसने जिंदगी की जद्दोजहद और जुस्तजू को.......................................
जिससे हर रोज दो चार होती थी वो ..............................................................
भरी भीड़ में भी उन आँखों को तलाशती थी उसकी आंखे...................
जो कहीं गहरे उतर जायें मन की गली तक .................
अफसाना नही था ये एक हकीकत है...................
की भीड़ की नजर भी थी....................
ऐसी ही एक नजर पर ..................................
यूँ तो न गुमशुदा है वो न गुमनाम है..........................
जिसे ढूँढ रहा था उसकी तरह हर कोई ..............................
मगर तलाश को तराजू में तोलकर ............................................
तो पाया नही जा सकता न ...................................................................
इसलिए आज सब अपनी ही नजरों से नजरें बचा रहें है ......................................
विश्वास को तोलकर धोखो की तकलीफ उठा रहे है ........................................................
बताना है उनको दिल का सब हाल किसी को ............................................................................
मगर तनहा ही आगे बढ़ते जा रहे है .....................................................................................................

3 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

ये दिल भी खूब है ...मोहब्बत में धडके ही जाता है ...धडके ही जाता है

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया है.

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर ..

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