एक ऐसे सफर में जिसकी सिर्फ़ मंजिल मालूम हो और रास्ते लापता । अगर लौट जाना भी न तो मुमकिन हो न ही मुनासिब । आगे बढती हुई कुछ ऐसी कोशिशे जिनसे कामयाबी हर कदम के साथ दूर हो रही है । लबो की मुस्कराहट महज दिखावा भर हो और आंसू जैसे आंखों के अन्दर ही कहीं बह चुके हो । जब शहर भर के शोर में भी बस एक खामोशी सुनाई दे । जब अपनों की हजार ख्वाइशों के बीच भी एक ख्वाब अपना दिखाई दे......
तब किस तरफ़ जाए कोई ?
?
?
?
अक्सर छोटे सवालों का जवाब बडा कठिन होता है ।
मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009
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3 टिप्पणियां:
ख्वाहिश को पूरा करने में जुट जाएँ ........ अच्छा लिखा है
हर बेहतर मंजिल के रास्ते नही होते वो तो बनाने होते हैं. लौट्ने का खयाल ही क्यो हर हालात में आगे ही जाना है. जब शहर के शोर के बीच खामोशी हो तो खुद खामोश होकर खुद के अन्दर की आवाज़ सुनना चाहिये धीरे धीरे खामोशी काफूर हो जायेगी.
किसने कहा ये सवाल छोटे है?
nice
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