रविवार, 22 मार्च 2009

कुछ सच कुछ अफसाना

अभी कुछ दिन पहले जब मैं कॉलेज जा रही थी तो पुरानी सीमापुरी के पास से बस निकली जैसा की हमेशा ही निकलती है लेकिन उस दिन बस में मैंने दो १०-१२ वर्ष की स्कूल गिर्ल्स को बात करते सुना --------------------एक कह रही थी तुझे पता है स्लम डोग किसे कहते है ? दूसरी ने कहा नही तो तू बता ....................तब उस लड़की ने बाहर की तरफ़ कूडे के ढेर से कूड़ा चुनते , कुछ अधनंगे बच्चो की तरफ़ इशारा करते हुए कहा इन्हे कहते है स्लम डोग !!!!!!!!! .................................!!!!!!!!!!!!!!!!!! उनकी आगे की बातचीत सुनती इससे पहले ही मेरे अपने मन में बातचीत शुरू हो गई जिसका थोड़ा बहुत अंश अज लिख रही हूँ ---------------------------------स्लम डोग मिल्लानिओर को ऑस्कर मिलना बॉलीवुड और हॉलीवुड दोनों के लिए गर्व की बात है क्योंकि इस फ़िल्म के जरिये उनकर कलाकारों की कला को पहचान मिली नाम मिला तो जश्न होना लाज़मी है उस पर्व कुछ भी कहना कोई मतलब नही रखता .........जो बात मायने रखती है वो है फ़िल्म को ऑस्कर मिलने के बाद की कहानी क्योकि आपके और मेरे जैसे आम लोगो का सरोकार रील लाइफ से नही बल्कि रियल लाइफ से है तो इस रियल लाइफ की बानगी का थोड़ा सा जिक्र जरूरी हो जाता है ------------स्लम डोग को अगर स्लम के किसी बच्चे ने देखा हो या उसकी कहानी के बारे में सुना हो तो उसने क्या सोच होगा ?? क्या उसने ये सोचा होगा की वो भी क्रोरेपति बन सकता है ???? मैं ये बात काफी दिन से सोच रही थी इस बात का जवाब मुझे समझ आया जब ये पता लगा की इस फ़िल्म में काम करने वालें बच्चो को कुछ नही मिला तो स्लम के कूडे के ढेर पर्व बैठे बच्चे क्या सपने देखते होंगे सिवाय इसके की आज उन्हें कूडे में कोई कीमती चीज मिल जाए यहाँ तक सुनने में क्या की इस फ़िल्म के बाल कलाकार सलमान, शाहरुख़ और अरबाज़ के शूटिंग की वजह से लिए गए २ महीने अवकाश के कारन स्कूल से उनका नाम काट दिया गया है मीडिया में ये ख़बर आ चुकी है लेकिन ख़बर सुनने का वक़्त शायद उन लोगो के पास नही है जिनकी ये जिम्मेदारी बनती है की वो इस विषय पर्व कुछ करें ..............हाल ही में ये बाल कलाकार सोनिया जी से मिलने उनके आवास पर्व भी गए इससे पहले भी स्मिले पिंकी की पिंकी भी राष्ट्रपति से मिल चुकी है लेकिन क्या फर्क पड़ता है ...........चार दिन की चांदनी फिर अँधेरी रात \\\बोल्ल्य्वूस्द ने स्लम डोग की कामयाबी पर्व जश्न मनाया समझ आता है लेकिन देश के विकास और उन्नानती का दावा करने वाले किस बात पर्व इतराने लगे समझ नही आता जय हो से स्लम डोग की जय हो गई मतलब सबकी जय हो ये जरूरी तो नही ....................अभी थोडी देर पहले ही विनोद दुआ मुंबई के धारावी से (जहाँ इस फ़िल्म की शूटिंग हुई है एक स्लम एरिया ) दिल्ली चलो प्रोग्राम पेश कर रहे थे हमेशा की तरह वो तो अपने शब्दों से टिप्पदी कर ही रहे थे लेकिन मुझे उस इलाके की फुटेज कपो देखकर जो बात दिखाई दी वो ये की यहाँ बनने वाली फ़िल्म ने १००० करोड़ रूपये कमाए लेकिन यहाँ रहने वालों की ज़िन्दगी में कुछ नही बदला ऐसे में जिसे हम और आप मुंबई वालों का जिंदगी जीने का जज्बा कहते है मुझे वो मजबूरी लगता है क्योंकि रोजमर्रा की जिंदगी की जद्दोजहद उन्हें रुकने नही देती और हालत उम्हे आगे बढ़ने नही देते

4 टिप्‍पणियां:

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

यही सच्चाई है जो आपने सुनी...!ये पिक्चर बनाने. वाले रातों रात मशहूर हो गए,पैसे भी बना लिए...!खूब पब्लिसिटी हुई.....!कुछ लोग विदेश घूम आये...कुछ भाइयों ने इस फिल्म में काम करने वाले बच्चों के साथ फोटो सेशन करवा लिया...!लेकिन वो सलाम बस्ती वहीँ है...बच्चे वहीँ है...और शायद उनकी किस्मत भी...ये बदलने वाली नहीं है....

संगीता पुरी ने कहा…

यह विडम्‍बना ही है कि यहाँ बनने वाली फ़िल्म ने १००० करोड़ रूपये कमाए लेकिन यहाँ रहने वालों की ज़िन्दगी में कुछ नही बदला ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आप का कहना सही है........
हर चीज का अब इस्तेमाल होता है चाहे वो स्लम ही क्यूँ न हो
समय भी commercial हो गया है

Unknown ने कहा…

wahhh wahhh .......

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