माँ
सोच में हूँ की कैसे अलंकृत करूँ
इस एक व्यंजन को जिसका स्वर
मेरे पुरे जीवन का आधार है
घनी धुप में पेड़ की छाया कहूँ
या की कहूँ अंधेरों में रौशनी का एहसास
अतुल्निये हो तुम माँ .....................
फ़िर किस्से तुलना करूँ तुम्हारी
कौन है इस जग में तुम जितना ख़ास
असमंजस में पड़ जाती हूँ जब देखती हूँ
हर माँ में व्ही जज्बा
व्ही जज्बात
संघर्ष , समर्पण और सहनशक्ति की वो अद्भुत मिसाल
जीवन के हर मुश्किल दौर में उसकी दुआओं का साथ
देने को उसे क्या दूँ
उसकी ममता जितना अनमोल
कुछ नही है मेरे पास
हे इश्वर !!!!!!!!!!!!!एय अल्लाह
कबूल करना इतनी दरख्वास्त
जिस अंचल के सायें में
पली बड़ी हूँ ,,,,,उस झोली में खुशियाँ भर सकूँ
कर सकूँ कुछ तो रहमत तेरी
न कर सकूँ तो कभी उसे मैं कोई दुःख न दूँ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कमजोरी
उस दिन हैंड ड्रायर से हाथ सुखाते हुए मैंने सोचा काश आंसुओं को सुखाने के लिए भी ऐसा कोई ड्रायर होता . . फिर मुझे याद आया आंसुओं का स...
-
1. तुम्हारे साथ रहकर तुम्हारे साथ रहकर अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है कि दिशाएं पास आ गयी हैं, हर रास्ता छोटा हो गया है, दुनिया सिमट...
-
सपने कल्पना के सिवाय कुछ भी नही होते ...मगर कभी कभी सपनो से इंसान का वजूद जुड़ जाता है... अस्तित्व का आधार बन जाते है सपने ...जैसे सपनो के ब...
-
अपने व्यवहार और संस्कारों के ठीक उल्ट आज की पत्रकारिता से जुडऩे का नादान फैसला जब लिया था तब इस नादानी के पैमाने को मैं समझी नहीं थी। पढऩे, ...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें