शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

ब्लास्ट फरोम द पास्ट (1) - दोस्ती

दिल चाहता है हम न रहें कभी यारों के बिन, पुरानी जींंस और गिटार, यारों दोस्ती बड़ी हसीन है..दोस्ती से जुड़े ऐसे न जाने कितने गीत और फिल्में हैं जिनसे अपनी दोस्ती के दिनों की ताजगी को हम फिर से महसूस कर सकते हैं। ब्लास्ट फरोम द पास्ट में इस बार हम आपकों दोस्ती के ऐसे सफर पर ले चलते हैं जहां आपको ताजगी के साथ ही दोस्ती के मायनों की महक भी मिलेगी। पास्ट से इस बार का ब्लास्ट कर रही है 1964 में आई फिल्म दोस्ती। ये फिल्म न सिर्फ सिनेमा की सफलता के लिहाज से बेहतरीन रही बल्कि दोस्ती नाम के रिश्ते को भी इसने बखूबी बयां किया। राजश्री फिल्मस के बैनर तले बनी इस फिल्म के निर्देशक थे सत्येन बोस। दो दोस्तों के  किरदार को इस फिल्म में जीवंत बनाया अभिनेता सुशील कुमार और सुधीर कुमार ने। इस फिल्म से बहुत सी ऐसी खास बातें जुड़ी हैं जिन्हें जानकर आपको हैरानी होगी। ये बॉलीवुड की पहली ऐसी हिट फिल्म थी जिसमें कोई हिरोइन नहीं थी। फिल्म की कहानी का आधार था दोस्ती। ऐसी दोस्ती जो आजकल की हाय, हैलो वाली फ्रेंडशिप परंपरा से बिल्कुल अलग थी। कहानी के किरदार दो ऐसे दोस्त थे जो न सिर्फ  एक दूसरे के सुख-दुख के साथी बनते हैं बल्कि एक दूसरे की शारीरिक कमियों को भी पूरा करते हैं। दरअसल इस कहानी में एक दोस्त की आंखों की रोशनी नहीं है और दूसरा पैरों से लाचार है। फिल्म के आखिरी सीन में उनकी दोस्ती की मिसाल को फिल्मांकन भी शानदार तरह से किया गया है। बरबस ही वो दृश्य जिसमें एक दोस्त दूसरे को अपने कंधे पर बिठाए बाढ़ से निकल रहा है और दूसरा उसे रास्ता दिखा रहा है दर्शकों को अपनी ओर न सिर्फ आकर्षित करता है बल्कि दोस्ती के इस दर्जे को सलाम करने पर भी मजबूर करता है। आजकल के दौर में जहां जितनी जल्दी 'दुआ सलाम' होता है उतनी ही जल्दी बात 'सलाम नमस्ते' तक भी पहुंच जाती है वहां दोस्ती का ये नजरिया फ्रेंडशिप डे के मौके पर किसी नजराने से कम नहीं है। दरअसल दोस्ती का रिश्ता तो आज भी उतना ही अहम है जितना हमेशा रहा है लेकिन बदलते दौर ने इसकी अहमियत को बहुत सी दूसरी चीजों से जोड़ दिया है। ऑरकुट, फेसबुक और टिवटर के युग में सिर्फ चटर-पटर ही बाकी रह गई दिखती है दोस्तों की चहल-पहल और दोस्ती की चहक अब बहुत लंबी नहीं होती। हालात बदलते जाते हैं, दोस्त भी और दोस्ती भी। लेकिन सेल्यूलाइड सिर्फ सपने नहीं दिखाती समाज के सच को दिखाती और बनाती भी है। इस समय का सच बेशक ये है कि दोस्ती टाइम पास रह गई है लेकिन उस वक्त की ये फिल्म आज भी इस खास रिश्ते की गहराई को दिलों में उतार सकती है। इस ब्लास्ट को इस बार फ्रेंडशिप के बूम में बदल कर क्यूं न दोस्ती का नया बेस बनाया जाए।

7 टिप्‍पणियां:

SANSKRITJAGAT ने कहा…

शोभनम्

http://sanskrit-jeevan.blogspot.com/

Sanjay Grover ने कहा…

ibtida!
OK ?

Dev ने कहा…

दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जिसमें है ....खुद बनाते है .....आज भी दोस्ती के वही मायने है जो पहले थे ....बस इस रफ़्तार भरी दुनिया में दोस्ती कि रफ़्तार तेज हो गयी ......बहुत बढ़िया प्रस्तुति रही .

संजय भास्‍कर ने कहा…

.बहुत बढ़िया प्रस्तुति रही .

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

aapki baat hamen bhi hazam ho rahi hain....apan to taiyaar hain...

Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Unknown ने कहा…

दोस्ती फ़िल्म मैंने भी देखी हैं .........वाकई अब ऐसा तो गूगल पे भी सर्च मारने पर दोस्त नहीं मिलेगा ........आज दुनिया में सब प्रोफेसनल हो गया है तो दोस्ती क्यूँ नहीं ........अच्छा लिखा ....पर एक सुझाव .ईमेल कर दिया है........

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