उवाच.
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भोपाल गैस त्रासदी मामले में सरकार कुछ नहीं छिपा रही है। एंडरसन की सुरक्षित रिहाई संबंधी दस्तावेज अब उपलब्ध नहीं हैं। मेरा मानना है कि जीओएम ने इस संबंध में तमाम कागजात देखे हैं, लेकिन उन्हें ऐसा कुछ नहीं मिला जिससे बिल्कुल स्पष्ट रूप से पता लगता कि रिहाई का जिम्मेदार कौन था?
27 जून 2010
पेट्रोलियम पदार्थो की बढ़ाई कीमतों में रोल बैक नहीं होगा। पेट्रोल की तरह अब डीजल की कीमतों को भी सरकार के नियंत्रण से मुक्त किया जाएगा। ऐसा करना बहुत जरूरी है। सरकार पर मूल्य वृद्धि के लिए किसी तरह का कोई बाहरी दबाव नहीं था। केरोसिन तेल और रसोई गैस पर सब्सिडी उस स्तर पर पहुंच गई थी, जिसमें सुधार निहायत जरूरी हो गया था।
28 जून 2010
1984 के सिख विरोधी दंगे नहीं होने चाहिए थे। मैं देश से माफ़ी माँग चुका हूं। पीडि़तों के जख्मों को भरने के लिए हरसंभव क़दम उठाए जाएंगे। अब हमें इससे आगे बढऩे की ज़रूरत है। लगातार 1984 के दंगों को याद करते रहने से सोच पर असर पड़ता है
29 जून 2010
हमारी न्याय प्रक्रिया में वक्त ज्यादा लगता है। इसीलिए भोपाल गैस त्रासदी के अदालती फैसले में करीब 25 साल लग गए। यह हमारी न्यायपालिका की सबसे बड़ी समस्या है।Ó सिंह ने कहा, '1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में भी न्याय तंत्र से चूक हुई है। जिम्मेदार लोगों को सजा जरूर मिलनी चाहिए। सरकार न्याय तंत्र की इन खामियों को दूर करने के प्रयास कर रही है।
माननीय प्रधानमंत्री जी के ये शब्द भविष्य की सारी उम्मीदों को ठेठ हिंदुस्तानी अंदाज में मरहम लगा रहे हैं। ऐसा लगता हैं मानो कह रहे हों जो हुआ उसे भूल जाओ, जो हो रहा है वह हमारी मजबूरी है, और हम अच्छा करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे समय में जब पूरे देश की जनता मंहगाई की महामारी से जूझ रही है, सत्ता के गलियारों में जनता की सुध कम और स्वार्थ सिद्घी का शोर अधिक सुनाई दे रहा है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक देश के हर कोने से व्यवस्था के चरमराने की आवाजें आ रही हैं, प्रधानमंत्री इस बयानबाजी से अपना बचाव कर रहे हैं या जनता को बेवकूफ बनाने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं?
कश्मीर में बढ़ती हिंसा, पश्चिम बंगाल, छतीसगढ़, झारखण्ड में लगातार हो रहे माओवादी हमले, मणिपुुर में अलगाव से पनप रहा उग्रवाद, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र , कर्नाटक और उड़ीसा में किसानों की आत्महत्या और बदहाली के बढ़ते मामलों के अलावा, इस समय देश के हर राज्य में किसी न किसी तरह का संघर्ष दम भर रहा है। गौर करने की बात ये है कि संघर्ष की वजह वर्षो पुरानी हैं और उनके समाधान के नाम पर आज भी 'कार्य प्रगति पर हैÓ सरीखी मीठी गोलियां दी जा रही हैं। पिछले दिनों लगातार हो रहे नक्सली हमलों में अब तक 175 जवान मारे जा चुके हैं और न जाने कितनी निर्दोष जाने गई हैं लेकिन 'सरकार कार्यवाही कर रही हैÓ और 'नक्सलवाद देश की सबसे बड़ी समस्या हैÓ के बयान के अलावा अब तक कोई कदम नहीं उठाया जा सका। भोपाल की गैस त्रासदी जो पूरी दुनिया के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना है उस पर 25 साल बाद किस तरह का मरम लगाया गया है ये भी सभी देख रहे हैं। जिन सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर तीन हज़ार लोग मारे गए थे और मौतों का ये सिलसिला बरसों चलता रहा अब उसी सरकार ने ये बयान दिया है कि उस दोषी के खिलाफ कोई सबूत ही नहीं मिल पाया जिसके दोषी होने की गवाही हर वो जख्म दे रहा है जो आज 25 साल बाद भी ताजा है। 1984 में हुए सिख विरोधी दंगे जो बेगुनाह लोगों की मौत और विध्वंस का सबब बन गये थे। जिनमें दस हज़ार से भी अधिक लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक भी केवल दिल्ली में ही 2733 लोगों को मार डाला गया था। देश की राजधानी में तीन दिनों तक चले इस ख़ूनी खेल में तब पुलिस और प्रशासन ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की और सबसे हैरान करने वाली बात कि आज 25 साल बाद भी इस घटना को अंजाम देनेवाले और उनके राजनीतिक संरक्षकों में से 99.9 प्रतिशत सज़ा से साफ बच गए हैं। ऐसे में खुद एक सिख होते हुए प्रधानमंत्री इन बातों को भूल कर आगे बढऩे की सलाह दे रहे हैं, जैसे ये कोई सच्ची घटना नहीं महज एक बुरा ख्वाब हो। मंदी में आई बेरोजगारी से अभी जनता उबरी नहीं थी कि उसे मंहगाई के बोझ ने मार दिया। बोझ भी ऐसा जो हर हफ्ते की दर से बढ़ता ही जा रहा है। पहले खाने का सामान मंहगा हुआ और अब बनाने का साधन। जनता जवाब मांगे तो एक ऐसा बयान दिया जाता है जिससे लोकतंत्र में तानाशाही होने की बू आने लगती है। देश ने चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से बहुत लड़ाईयां लड़ ली हैं और बहुत से संधि-समझौतों पर भी हस्ताक्षर हो चुके हैं लेकिन पानी को लेकर जो संग्राम छिडऩे वाला है वो शायद पानीपत की लड़ाई से भी ज्यादा खतरनाक होगा। मुद्दे कई है कुछ बहुत जोर-शोर से उठाए जा रहे है कुछ सतही स्तर पर हल्ला बोल रहे हैं, लेकिन एक लोकतांत्रिक देश के कर्ता-धर्ता इस अवसर पर जो बोल रहे हैं क्या उससे समस्याओं के निदान का कोई सुराग मिलता है?
4 टिप्पणियां:
लगता है मनमोहन भी राजीव होते जा रहे हैं ..... हम देखेंगे ... हमें देखना है ... हमें करना है ...
ठीक कहा हिमानी, फ़िलहाल तो वाक़ई सब कुछ चरमराया हुआ सा लग रहा है।
ये केवल बोलने वाले हैं
Aji sab ek hi thaile ke chatte-batte hain!
Inhe bhashanbaazee se fursat nahin aur opposition ko band karne se!
Aur mujhe chinta hai ke subah kya khaunga......
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