गुरुवार, 1 अप्रैल 2010
शब्दों से भारी होते भाव
भाव कभी कभी शब्दों से ज्यादा भारी हो जाते है ...बयाँ ही नही हो पाते. शुन्य से शुरू होकर सोच शिखर तक पहुँच जाती है ....लेकिन सच कि परछाई वापस जमीं पर ले आती है...उन बातों को कैसे बयाँ करू जिनमे बंधन है ...बाधा है और ऐसी सरहदे है जो सिर्फ सपनो में ही पार की जा सकती है .....यही सोचकर बहुत कुछ मन में ही रह जाता है ...कागज पर नही आ पाता
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5 टिप्पणियां:
bilkul sahi Farmaya himaji aapne
लेकिन सच कि परछाई वापस जमीं पर ले आती है...
हकीकत तो यही है
क्या अभिव्यक्ति है।
यह बात तो सही कह रहे हैं आप !!
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