क से कोशिश होती है
मेरी कि
ख से खुश हो जाऊ
अक्सर नही तो
अमूमन ही सही ...ये सोचकर कि
दर्द दिए जिंदगी ने तो
कुछ दोस्त भी दिए
दिल कि देहलीज पर
दस्तक देते हुए
मगर फिर एक भय
एक संशय सामने आ जाता है
ग से अपने गम बाँट लूँ उनसे
तो कहीं
घ से वो घबरा कर
दूर न चले जाएँ
और फिर वर्णमाला के इस
अक्षर ड़ कि तरह
मेरे हाथ ..मेरा मन भी
खाली सा ही न
रह जाये
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10 टिप्पणियां:
waah aapki lekhni aur soch ne chamatkrit kar diya...
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
himani ji baaki ke bache huye shabdo ka matlab kab samjha rahi hai
are waah....kya baat hai....yani ki k kh ga ko pahchano...kabhi to padhnaa seekho....khair acchha sanyojan kiyaa hai aapne....
जान गये यह वर्णमाला..अब आगे.
बहुत खूब
नई वर्णमाला !
ये वर्णमाला तो लाजवाब है ……………और सटीक भी
वर्णमाला आगे चलेगी न !
आप लोगों ने इतनी पुरानी कविता को नई पुरानी हलचल के माध्यम से फिर से जीवित किया है तो कोशिश करुंगी कि ये वर्णमाला आगे जरूर चले
सबको धन्यवाद
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