शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

क..ख..ग..घ..ड़.?????

से कोशिश होती है
मेरी कि
से खुश हो जाऊ
अक्सर नही तो
अमूमन ही सही ...ये सोचकर कि
दर्द दिए जिंदगी ने तो
कुछ  दोस्त भी दिए         
दिल कि देहलीज पर
दस्तक देते हुए
मगर फिर एक भय
एक संशय सामने आ जाता है
से अपने गम बाँट लूँ उनसे
तो कहीं
से वो घबरा कर
दूर न चले जाएँ
और फिर वर्णमाला के इस
अक्षर ड़ कि तरह
मेरे हाथ ..मेरा मन भी
खाली सा ही न
रह जाये

10 टिप्‍पणियां:

दिलीप ने कहा…

waah aapki lekhni aur soch ne chamatkrit kar diya...

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

Prataham Shrivastava ने कहा…

himani ji baaki ke bache huye shabdo ka matlab kab samjha rahi hai

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

are waah....kya baat hai....yani ki k kh ga ko pahchano...kabhi to padhnaa seekho....khair acchha sanyojan kiyaa hai aapne....

Udan Tashtari ने कहा…

जान गये यह वर्णमाला..अब आगे.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूब

वाणी गीत ने कहा…

नई वर्णमाला !

vandana gupta ने कहा…

ये वर्णमाला तो लाजवाब है ……………और सटीक भी

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

वर्णमाला आगे चलेगी न !

अति Random ने कहा…

आप लोगों ने इतनी पुरानी कविता को नई पुरानी हलचल के माध्यम से फिर से जीवित किया है तो कोशिश करुंगी कि ये वर्णमाला आगे जरूर चले
सबको धन्यवाद

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