शुक्रवार, 11 जून 2010

कलयुग की माया


ये द्वापर युग नही है न ही सतयुग .
कि यहाँ कंस और रावन जैसे राक्षस मिले 
लेकिन ये जो कलयुग है 
यहाँ भी लोग कम मायावी नही है 
हर बदलते पल के साथ यहाँ लोगों का नजरिया और व्यवहार बदल जाता है 
जाने कैसे ये लोग पल भर में प्यार को नफरत और नफरत को प्यार बना कर पेश कर देते है ..............


6 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

छोटी सी रचना पर वर्तमान परिवेश के मुखौटो को बेनकाब करती है...सार्थक व सशक्त रचना बधाई।

दिलीप ने कहा…

badi sateek kam shabdon me ghaav kar gayi

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

kaliyug ka sahi chitran

http://sanjaykuamr.blogspot.com/

M VERMA ने कहा…

यही तो कलयुग है

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

यही कलयुग की खासियत है

संजय भास्‍कर ने कहा…

सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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