कुछ शब्द जिंदगी से गायब हो गए हैं ...
बहुत चुप चाप न जाने कहा चले गए है रूठ कर ....
न मेरे पास हैं ...न उसके पास
और तुम्हारे पास भी नही मिले वो
उन शब्दों का अकाल है
या किसी ने आपातकाल लागू कर दिया है
अक्षरों पर
की जुड़कर वो शब्द बन ही न सके फिर से
जो दोड़ती जिंदगी में देते
दिल को दो पल का आराम
वो शब्द.........
जो हमसफ़र को बना सकते हमराज
वो शब्द
जिनसे हो सकता अटूट प्रेम का वादा
जिनमे बस सकती अमिट यादें
जिन्हें सुनकर लौट आते बरसो पहले परदेस गए लोग
जो भर देते हर तन्हाई को तबसुम के उजालों से
....,...................और जब होता किसी युद्ध का आगाज वो शब्द कर देते वहां शांति को स्थापित
सारी दुनिया अधूरी सी हो गई है उन शब्दों के बिना
पंच्छी अब पिंजरे से निकलना ही नही चाहते
और इंसान अब जकड रहा है खुद को
कुछ नई बेडिओं में
11 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना!
बहुत ही अच्छी रचना.
बहुत सुन्दर रचना!
achhe bhav vyakt kiye aap ne
अति सुन्दर
sundar rachna.
muze to adhuri lgi rachna thodi aur aage likho.....tb mn trapt hoga lagta hai kuchh chhut rha hai....
आपको ही नहीं बहुत से लोगों को ऐसे शब्दों की तलाश है...बहुत ही अच्छी रचना...बधाई...
नीरज
बहुत सुंदर !
कविता को एक नए अंदाज़ में परिभाषित किया है आप ने !
सही कहा संजू जी आपने मुझे भी अब दोबारा पढ़कर लग रहा है न जाने और कितनी भावनाएं अधूरी है जिन्हे बयां किया जा सकता था...खैर िफर से कोशिश करुंगी
KYA BAAT HAI.....
बहुत सुंदर और गहरी सोच है. शुभकामनाएं.
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