मंगलवार, 8 जून 2010

रूठे हुए कुछ शब्द


कुछ शब्द जिंदगी से गायब हो गए हैं ...
बहुत चुप चाप न जाने कहा चले गए है रूठ कर ....
न मेरे पास हैं ...न उसके पास 
और तुम्हारे पास भी नही मिले वो
उन शब्दों का अकाल है 
या किसी ने आपातकाल लागू कर दिया है 
अक्षरों पर 
की जुड़कर वो शब्द बन ही न सके फिर से 
जो दोड़ती जिंदगी में देते
दिल को दो पल का आराम 
वो शब्द.........
जो हमसफ़र को बना सकते हमराज 
वो शब्द
जिनसे हो सकता अटूट प्रेम का वादा 
जिनमे बस सकती अमिट यादें 
जिन्हें सुनकर लौट आते बरसो पहले परदेस गए लोग
जो भर देते हर तन्हाई को तबसुम के उजालों से
....,...................और जब होता किसी युद्ध का आगाज वो शब्द कर देते वहां शांति को स्थापित 
सारी दुनिया अधूरी सी हो गई है उन शब्दों के बिना 
पंच्छी अब पिंजरे से निकलना ही नही चाहते
और इंसान अब जकड रहा है खुद को 
कुछ नई बेडिओं में




11 टिप्‍पणियां:

nilesh mathur ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना!

माधव( Madhav) ने कहा…

बहुत ही अच्छी रचना.

Shekhar Kumawat ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना!


achhe bhav vyakt kiye aap ne

शोभा ने कहा…

अति सुन्दर

vandana gupta ने कहा…

sundar rachna.

संजय पाराशर ने कहा…

muze to adhuri lgi rachna thodi aur aage likho.....tb mn trapt hoga lagta hai kuchh chhut rha hai....

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आपको ही नहीं बहुत से लोगों को ऐसे शब्दों की तलाश है...बहुत ही अच्छी रचना...बधाई...
नीरज

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुंदर !
कविता को एक नए अंदाज़ में परिभाषित किया है आप ने !

अति Random ने कहा…

सही कहा संजू जी आपने मुझे भी अब दोबारा पढ़कर लग रहा है न जाने और कितनी भावनाएं अधूरी है जिन्हे बयां किया जा सकता था...खैर िफर से कोशिश करुंगी

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

KYA BAAT HAI.....

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुंदर और गहरी सोच है. शुभकामनाएं.

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