एक मुगालते में
अब महफूज है मेरी खुशियाँ सब
की जिस ओर से जिस छोर तक
जिस सड़क से जिस मोड़ तक
रास्ता है
वहीँ से निकलती चालू बस
मक़ाम मिलना यूँ भी
मुमकिन नही हर किसी को
कमसकम
ठहर जाने का गम तो न हो
शनिवार, 17 अप्रैल 2010
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8 टिप्पणियां:
अब महफूज है मेरी खुशियाँ सब
की जिस ओर से जिस छोर तक
जिस सड़क से जिस मोड़ तक
रास्ता है
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
बहुत बढ़िया,
बड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....
पूरी कविता दिल को छू कर वही रहने की बात कह रही है जी,
agar ap yahan reh jayenge sanjay ji to apke blog ka kya hoga
अगर आप ये खुद की अनुभूति के लिए लिख रही है तब ठीक है ,और अगर दुसरो को इसका वेसा अनुभव करना चाहती है तो माफ़ कीजिये गा ये पंग्तिया उनके ही के लिए ठीक है जो इस पर वाह वाह के पुल बाँध दे
waqay me behad khub surat kavita
bahut khub
shakher kumawta
kavyawani.blogspot.com/
नही ठहरे तो समझो मुकाम है
सुन्दर रचना
bada hi aashawaadi mugaalta hai aapka...
bahut khoob...
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
achchhi panktiyaan likhi hain
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