गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

जंगल और जमीन से जुडी एक दुनिया

मेरा बच्चा मेरी बात ही नही मानता...दिन पे दिन बिगड़ता जा रहा है...इस पर इसके दोस्तों का ज्यादा असर हो रहा है जो वो कहते है वाही मान लेता है ..इसे सख्ती से लेना पड़ेगा...अब इसने ऐसी कोई हरकत कि तो सीधा डंडे से इसकी धुनाई होगी तभी मानेगा ये ...............................ये मेरा निजी अनुभव नही ...महज कल्पना है ऐसे अभिभावक के बारे में सोचकर जिनका बच्चा उनके गलत व्यवहार के कारन कहीं न कहीं भटक कर गलत सांगत में पड़ रहा है और माता पिता अब भी अपनी गलती समझने कि बजाये सख्ती से काम लेकर एक और गलती करना चाह रहे है ..................................................इस भूमिका का मकसद एक बेहद बड़ी और विकराल समस्या को साधारण भाव में इस्थापित करना था ................नक्सलवाद .......उस समस्या का नाम है ........जो कुछ राज्यों में है लेकिन पिछले कुछ दिनों से चल रहे घटनाक्रम ने देश भर में इसे चर्चा का विषय बना दिया है......इस विषय से मेरा शुरू से जुडाव रहा है ........इस भाव को लेकर कि आखिर विकास और समान धारा की मांग को लेकर कोई इतना उद्दंड और क्रूर कैसे हो सकता है ......पत्रकारिता को जूनून की हद तक प्यार करने वाली मैं अभी तक तो आँखों देखी हकीकत नही जान सकी लेकिन पढ़ा लिखा जो भी है उसी से कुछ बातें कहने की कोशिश कर रही हूँ
पिछले दिनों ऑपरेशन ग्रीन हंट के विषय पर सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधती राय की प्रेस कांफेरेंस में जाने का मौका मिला वहां से जो विचार मिले वो ये की ये ऑपरेशन गलत है और माओवादी या नक्सलवादी की पहचान सरकार को खुद भी नही है outlook में छपे उनके लेख में भी उन्होंने लिखा है की  दंतेवाडा में पोलिसे सदी वर्दी पहनती है  और विद्रोही वर्दिया पहनते है कारागार अधीक्षक कारागार में है और कड़ी आजाद है. ये जानकारी उन्होंने अपने निजी अनिभव और वहां बिताये वक़्त के आधार पर दी है .....लेकिन एक सोच जो उन लोगो के दिमाग में जन्म लेती होगी जो हालाते से करीब से वाकिफ नही है वो ये की अपनी स्वार्थपरक नीतियों के बदोलत अपने ही देश में नक्सलवादी नाम के आतंकवदी दस्तों को जनम देने वाली हमारी सरकार बन्दूक चला कर किसका मुकाबला करना चाहती है .........अपने परिवार के उस सदय्सा का जो जनम से ही वनवास भुगत रहा है ..........अजीब ये भी है की अगर नक्सलवाद आतंकवाद जितना भयंकर और इसे ख़त्म करने के लिए हंट ऑपरेशन चलाया जाना जरुरी है तो क्या जो वास्तविक आतंक खुले आम पडोसी देश से हर वक़्त हमारे देश पर मंडराता रहता है उससे शांति वार्ताएं करना ठीक है ...क्यों न उसे भी सशस्त्र उखाड़ फैकने के ऑपरेशन चलाये जाये .........वहां हम अहिंसा प्रेमी क्यों बन जाते है ...........आज जिस ऑपरेशन के बल पर सरकार ये साबित करना चाह रही थी की वो नक्सलियों से ज्यादा ताकतवर है उसने कितने ही जवानो की बलि ले ली .......जहाँ तक सुरक्षा का सवाल है तो न तो नस्सली छेत्रो के लोग सुरक्षित है न पोलिसे के जवान तो पुख्ता सुरक्षा तो उन हुक्मरानों के ही पास है जो अधि अधूरी तयारी कर लड़ने चल पड़े है . इस सबमे सबसे बड़ी मार पड़ रही है उन आदिवासियों पर जिन्हें विकास के व् से भी सरोकार नही है जो संतुष्ट है जंगल और जमीन के बीच जिंदगी जीने में बशर्ते शांति और सुरक्षा का साया रहे 

6 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

'पुख्ता सुरक्षा तो उन हुक्मरानों के ही पास है जो आधी अधूरी तयारी कर लड़ने चल पड़े है.'
वाकई हद है ---------

संजय भास्‍कर ने कहा…

naksali kabhi nahi sudhrege

Udan Tashtari ने कहा…

क्या कहें इनकी...

Prataham Shrivastava ने कहा…

bhout acchi tarah se joda hai aapne ek ghar aur naksalbad ko

Sachi ने कहा…

plz dont give any moral support to naxalites, if you are an Indian.

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

दैनिक जनसत्‍ता में दिनांक 10 अप्रैल 2010 को आपकी यह पोस्‍ट जंगल और जमीन शीर्षक से संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्‍तंभ में प्रकाशित हुई है, बधाई।

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