महफ़िल और तन्हाई..दोनों का ही अपना लुत्फ़ है कभी दुनियादार हो जाने को जी चाहता है तो कभी सारे बंधन तोड़कर अपनी सी अलग दुनिया बसाने का मन करता है..लेकिन समाज में रहते हुए कई अनकही सी सीमाओं से बंधकर हम अक्सर चाहतों को पूरी करने की बजाये सही और गलत के फेर में उलझ जाते है .....मेरी समझ से लिव इन रिलेशन का विचार भी ऐसे ही किन्ही दायरों में उलझ रहा है ....कानून कहता है की ये अपराध नही समाज कहता है कि घोर अपराध है. अब भला जिंदगी कैसे बितायी जाये ये कानून और समाज कैसे तय कर सकते है और फिर एक सच ये भी है कि लिव इन रिलेशन नाम का ये तथाकथित अवतार तो अभी प्रगट हुआ है ....कितने लोग कब से यूँ ही बिना कानून और समाज की परवाह के साथ रह रहे है कौन जानता है ? विवाह पूर्व सहजीवन के खिलाफ जो तमाम आवाजें उठ रही है दरअसल वो खुले आम इस बड़े बदलाव को स्वीकार नही करना चाहती... चोरी छुपे ये सब सभ्यता की शुरुआत से आज तक हो रहा है ये सर्वविदित है हर बात और जज्बात को कानूनी दायरे में नही बंधा जा सकता ...तर्क की बात क्कारें तो ये तथ्य माननीय है की ऐसे संबंधों से होने वाली संतान का वजूद सवालों के घेरे में आ जायेगा ...या फिर पत्नी के अधिकारों का पलीता हो जायेगा. लेकिन इन तथ्यों के साथ ही ये सवाल भी उठता है की क्या ऐसे सम्बन्ध बनाने वाले लोग दुध्मुहें बच्चे है जो इन परिणामों के बारे में नही सोच सकते....एक साधारण सी बात ये है की जब भ्रष्टाचार, बलात्कार,और ऐसे तमाम कृत्यों के खिलाफ कानून बने हुए है तो क्या ये काम नही होते है .......बल्कि ऐसे तमाम काम जोर शोर से होते है जिनके खिलाफ बने सख्त कानूनों का ज्ञान हर अदने से इंसान को भी है .........दरअसल कुछ काम या कहूँ कि हम जो काम करते है वो हमारी सोच पर निर्भर करते है समाज और कानून रूपी पहरों को बाद में प्राथमिकता दी जाती है. इसलिए ऐसी बातों पर हंगामा खड़ा करने से बेहतर होगा कि अपनी मान्यताओ के साथ इंसाफ किया जाये वो चाहे लिव इन रिलेशन में हो या पारम्परिक शादी कि रीति में ......मैं जानती हूँ कि इन्साफ का ये काम हंगामा करने से ज्यादा मुश्किल है इसलिए अधिकतर समाज इस पर ध्यान नही
देता ..........
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4 टिप्पणियां:
सच कहा आपने हंगामा नहीं इंसाफ होना चाहिए। लेकिन भारत के साथ दिक्कत ये है कि लोगों का जागरूक होना अभी-अभी शुरू हुआ है। लोग चीजों को धीरे-धीरे समझने लगेंगे। आज लिव-इन रिलेशनशिप पर भले ही हंगामा खड़ा हो रहा हो लेकिन एक वक्त ऐसा भी आएगा जब ये कोई मुद्दा नहीं रह जाएगा।
एक तरफ आप लोगो को जागरूक होने को कह रही है और दूसरी तरफ आप सभी को नासमझ भी ठहारही है
बात कुछ हजम नहीं हुई ...........
मन जिसे सही स्वीकारे वह सही है। मन जिसे अस्वीकारे वह गलत है। समाज व्यवस्था बनाने के लिए है
अभी हालात ये हैं कि अच्छा अच्छा गप गप...गन्द गन्दा थू थू..आधा पश्चिमी..आधा हमारा खुद का बच रहे..कैसे हो पायेगा!!
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