मंथन कर रहा है मन
मंजिलों के सफर का
मोह्हबतों की डगर का
रास्ते भी मुनासिब है मंजिल के और ..................
मोह्हबत भी हो सके मुकरर शायद.....................
मगर मुश्किलों की महफिल मेजबान बनी हुई है !!!!!!!!!
जीतने से पहले हारना......... एक मर्तबा....... मेरी पहचान बनी हुई
मुक्कमल जहाँ की जुस्तजू में हूँ जिस दिन से .........
उस दिन से सांसे तो थमीं नही है .........................
लेकिन जिंदगी एक अरमान बनी हुई है
5 टिप्पणियां:
waah bahut badhiya
क्या बात है छा गए
बहुत सही। यह जिन्दगी ऐसी ही तो है।बस एक अरमान।
वाह!! बहुत खूब!!
sabki ek jaisi kahani hai. touching 2 heart.
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