उजालों के दरम्यान क्या खूब बनाए थे ख्वाबगाह।
इल्म ही नहीं था
अंधेरों के कारवां में
एक दरगाह भी नहीं मिलेगी
मन्नत के लिए।।
न रहमत
न किस्मत
साथ।
जवाब भी नहीं मिल रहे
हर रास्ते पर खड़े हैं सवालात।।
फिर जिक्र इन सपनों का।
फिर जंग उस सच के साथ।।
सपनों वाली इन आंखों को क्या दिया मैंने??
लेकिन इन आंखों ने क्या न दिया मुझे??
सपने भी।
और आंसूओं का सैलाब
भी साथ।।
काश कि ये आंखे मेरी
हंसी पर भी
होंठो के साथ मुस्कुराती।
काश कि ये आंखें
सपनें न दिखाती।।
काश कि ये आंखे देख पाती
कुछ पूरे ख्वाब।
सुन पाती
आधूरे जज्बात।।
महसूस हो पाता इन्हें
उस टूटन का अहसास।।
इल्म ही नहीं था
अंधेरों के कारवां में
एक दरगाह भी नहीं मिलेगी
मन्नत के लिए।।
न रहमत
न किस्मत
साथ।
जवाब भी नहीं मिल रहे
हर रास्ते पर खड़े हैं सवालात।।
फिर जिक्र इन सपनों का।
फिर जंग उस सच के साथ।।
सपनों वाली इन आंखों को क्या दिया मैंने??
लेकिन इन आंखों ने क्या न दिया मुझे??
सपने भी।
और आंसूओं का सैलाब
भी साथ।।
काश कि ये आंखे मेरी
हंसी पर भी
होंठो के साथ मुस्कुराती।
काश कि ये आंखें
सपनें न दिखाती।।
काश कि ये आंखे देख पाती
कुछ पूरे ख्वाब।
सुन पाती
आधूरे जज्बात।।
महसूस हो पाता इन्हें
उस टूटन का अहसास।।
7 टिप्पणियां:
काश ये आँखें सपने ना दिखाती ...
सपने है तो आशा है ...आशा है तो विश्वास है ...कभी तो पूरे भी होंगे सपने ...इतनी निराशा क्यों ...?
कमाल कि अभिव्यक्ति, बहुत सुन्दर!
bahut khoob..!
लाजवाब रचना ..
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
आपकी अभिव्यक्ति अत्यंत ही सुन्दर और सारगर्भित है , यदि संभव हो तो हमारे आगामी कार्यक्रम हेतु अपना एक खुबसूरत गीत अथवा नज़्म भेजें !
विशेष जानकारी के लिए यह लिंक देखें-
http://www.parikalpnaa.com/2010/07/blog-post_08.html
bahut hi khubsurasat kavita .....bhav aur saral shabd iski pradhanta hain ....
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