बुधवार, 25 अगस्त 2010

कैसे हो हल 'हिमानी' ??





जुनून को किनारा मिल जाता तो
जिंदगी को सहारा बनाता कौन ??
 
हम भी राहों में तुम भी दूर मंजिल से
कोई एक भी अगर कुछ पा जाता तो
एक दूजे को फिर रास्ता बताता कौन ??
 
कहने को है ढेर सारा गम इकट्ठा
इस दिल में
सुनने बैठ जाता गर कोई
तो फिर तन्हाई मे तकिए तले
बुझे हुए मन की लौ जलाता कौन ??
 
कागज, कलम हाथ में
शब्दों का एक सिलसिलां हमेशा साथ में
हर बार ही बन जाती उम्दा गजल तो
फिर गैरों की शायरी को सीने से लगाता कौन ??
 
यहां कुछ कहना मना है
वहां सुननें में सुकून नहीं मिलता दोस्तों को
गर आसान होती कहा-सुनी इतनी तो
किसी को दुश्मन बनाता कौन ??
 
जब हिज्र बनने लगी है हकीकत
तो सारे ख्वाब अब हिजाब में हैं
हर आरजू का पूरा होना मुनासिब नहीं
सब मान ही जाता खुदा तो
मन्नतें मनाता कौन ??
 
वो इब्तिदा और ये इंतहा
इस बीच एक मैं अकेली सी पहेली
कैसे हो हल  'हिमानी'  ??

 सवालों का ये काफिला टूट जाता गर
तो फिर जवाबों का मोल चुकाता कौन ??



1 टिप्पणी:

REYAZ ने कहा…

kiya khoob likha hai aapne?
Very Good...................

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