कुछ नही है मेरे पास
सिवा रात के
शब्द अब कम पड़ने लगे है
भीतर सैलाब है जज्बात के
दोपहर ही बस मिलती है हर दिन मुझे
क्या मालूम कब आकर चली जाती है
सुबह चुप चाप से
फिर हर रात जिक्र होता है रात से
सुबह की रुसवाई का
फिर हर बात पर बात चलती है
शब्दों की गहराई से
खुद से खफा हूँ अब इस पर क्या गौर करूँ
रश्क रहता है गैरों की बेवफाई से
महफ़िल देख दूर से
जहाँ जिस सफ़र पर चली मैं
पहुँच कर वहां मुलाकात हुई तन्हाई से
जो दोस्त रहे बरसो
वो अब आज यूँ मुझसे
दर्द की वजह पूछते है
जैसे मिल रहे हो
किसी लड़की पराई से
राहों पर
यूँ ही मिलने वाले भी कम मिले
और
एहतियातन हम भी लोगों से कम मिले
फिर भी न जाने क्यों डर लगता है जुदाई से
1 टिप्पणी:
सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
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