मेरी तकलीफ की तफसीर में
न जा ए दोस्त
तू नही समझेगा
मेरी तक़दीर की तासीर
जिसने हर तबस्सुम के एवज में
मुझे ताजिर दी है
ये दोष महज लकीरों का नही
गुनेहगार हूँ बराबरी की मैं भी
खुद की भी और
अपने उन अजीजों की भी
जिन्होंने मुझे जिंदगी दी है
आँखों से काम लेना था ये
कि
दुनिया को देखूं
और मैं समझ बैठी कि
ख्वाबों का आशियाना है ये
अब ख्वाब भी बेघर है
और
बेसबब हूँ मैं भी
आँखों से उठाकर जिन्हें
दिल में बिठाया
वो सोचेंगे
कि
मैंने बेवफाई की है
जो शिकवे खुद से हैं मुझे
वही
शिकायते उन्हें मुझसे हैं
कैसे करुँगी
दूध का दूध और
पानी का पानी
मय के कारखानों में
मधु की तरह
बह रही हूँ मैं
..
.....
.......
....
यूँ जो तेरे कहने पर कर गई
हूँ बया अपने जज्बात
अब इस पर भी खौफ खाए हूँ मैं
बड़ी बेअदब है ये दुनिया
और
डर है इसी बात का
कि
दोस्ती का ये तेरा मेरा रिश्ता
कही
धकिया न जाये
धोखे की फर्जी मुटभेड में
6 टिप्पणियां:
हिमानी जी ,आपकी कविता पढ़कर मन अभिभूत हो गया ,
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
बहुत सुन्दर और संवेदनशील!
बहुत सही कहा आपने
nice lines with full of emotions.
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति है....रचना पसंद कर ली थी पर उस वक्त कुछ कमेन्ट नहीं कर पायी थी...
यहाँ अपनी प्रविष्ठी देखें ..
http://charchamanch.blogspot.com/2010/06/192.html
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