लिख रही हूँ इबारते
कभी मन ही मन
कभी कागज पर कलम से
सोच कर यही
कि शायद
इस बार
हाल ए दिल
आरजू ए जिंदगी
और
जुस्तजू ए सफ़र
बयाँ हो जाये
मगर मुक्कदर की मुफलिसी में
ये मुनासिब कहाँ
जितना चलती हूँ
रास्तें उतने ही लम्बे हो जाते है
हकीकत की बात हो
तो कह दूँ
दो टूक
अब अफ्सानो की हद को कैसे
तय करूँ शब्दों के साथ
ये तो वो कारवा है
जो मेरी सांसों
के साथ ही थमेगा शायद
सोमवार, 29 मार्च 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कमजोरी
उस दिन हैंड ड्रायर से हाथ सुखाते हुए मैंने सोचा काश आंसुओं को सुखाने के लिए भी ऐसा कोई ड्रायर होता . . फिर मुझे याद आया आंसुओं का स...
-
1. तुम्हारे साथ रहकर तुम्हारे साथ रहकर अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है कि दिशाएं पास आ गयी हैं, हर रास्ता छोटा हो गया है, दुनिया सिमट...
-
सिर्फ दिल नहीं मेरी आंखें मेरे कान मेरी नाक मेरे होंठ मेरे हाथ मेरे पैर मेरे शरीर का हर एक रोम चाहता है तुम्हारे ख्यालों से आजाद...
-
मैंने बचपन में एक कविता पढ़ी थी चिड़िया वाली ...एकदम सही से तो नही याद लेकिन उसका मतलब कुछ इस तरह था कि चिड़िया का बच्चा जब घोंसले से बाहर नि...
3 टिप्पणियां:
बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
लिखते रहिये बहुत सुन्दर लिखते हैं
बयाँ हो गया तो हाल दिल का कहाँ रह जाएगा?
जैसे आंसूं पराया हो जाता है आँखों के लिए.....
एक टिप्पणी भेजें