चाँद, तारे,आकाश
नदिया,बदल,बारिश, झरने
फूल,भँवरे,पंछी,पेड़
क्यों बनाये उस रहबर ने
शायद खबर थी उसे की
एक दिन जब किसी वक़्त
सपनो सी इस दुनिया में
किसी शक्स को
सच दिखेगा, चुभेगा, चोट करेगा
तब वो कुदरत की आगोश में
कल्पना की चादर लेकर
कुछ पल पैर पसारकर
नींद की एक झपकी ले सकेगा
सोमवार, 22 मार्च 2010
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4 टिप्पणियां:
चाँद, तारे,आकाश
नदिया,बदल,बारिश, झरने
फूल,भँवरे,पंछी,पेड़
क्यों बनाये उस रहबर ने
शायद खबर थी उसे की
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
नींद की एक झपकी ले सकेगा
पर अब वो नीद की झपकी कहाँ????
सुन्दर भाव
बहुत गज़ब ,,सुन्दर रचना .उच्च पक्तियां
विकास पाण्डेय
www.vicharokadarpan.blogspot.com
नींद की झपकी.. ये ख्याल ही उम्दा है..
कमेंट्स का कलर सफ़ेद है इसलिए दिखता नहीं है.. ठीक कर लीजिये
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