शनिवार, 1 जनवरी 2011

बीता साल- एक अलग शब्द, एक अनकहा अर्थ

बहुत सारा समय बीत गया
या सिर्फ एक साल ..
कविता सी रही जिंदगी
वक़्त से कदमताल करती हुई
या
उतार चढाव ने दी
एक अधूरी आखरी पंक्ति वाली
कहानी की  शक्ल
जिंदगी को
ख्वाबों को मिला खुला आसमान
या
अरमानो की आंधी में उड़ चले
मजबूर लम्हे और उलझे मसले तमाम 
बात कहकहो की बारात की
या
कुम्हलाया रहा सूरज जिस दिन
उस रात की बात
मामलात वो जिन्होंने तसव्वुर
को महका दिया
या
वो मशविरे जिन्होंने बेहद
मासूमियत से दगा दिया
बहुत सी शख्सियतें
और कुछ एक शख्स
या
महज एक बंदा खुदा का(माँ)
जिसने साल भर मिसाल बन
जीना आसान किया
जिसने हर साल, हर महीने, हर हफ्ते, हर दिन, हर पल को
अपने आंचल से छान
मुझे हर धूप से बचा लिया
फरवरी के महीने में भी जो खिले हुए फूलों से खरखराहट
सुनी थी मैंने
और जून की दोपहरी भी वो
जिसने पसीने को पहलूँ में छुपाने का लुत्फ़ दिया
एक अलग सा शब्द रहा वो साल जिसने
एक अनकहा अर्थ दिया

1 टिप्पणी:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बीता साल --शब्द और अनकहा अर्थ ....आने वाला साल अर्थों से भरा हो ...अच्छी प्रस्तुति

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