सोमवार, 12 जुलाई 2010

एक अभागी लड़की ....(पुरस्कृत कविता)



बच्ची से बड़ी होती है वो
सीखती है घर के काम-काज
रोटियां बेलना
तवे पे डालना
तरकारी छीलना
पकाना 
अक्सर
ऊँगली जल जाती है
कट जाती है
पर बात
आग और चाकू से आगे  निकलकर
उसके ग्रहों की चाल पर चल जाती है

छत पर सूखते कपड़ों में
जब सब लत्ते रहते है अपनी जगह पर
और बस उसकी ही चुनरी उड़ जाती है
तो बात हवा के झोंको और तेज आंधी
को छोड
उसके  नसीब के पन्नो को पलट आती है

वो भी बढाती है  कदम आगे
फांसला  कम भी हो जाता है मंजिलों का
मगर जब उसके  ही रस्ते में हरे भरे बूढ़े हो चुके
किसी पेड़ की शाख गिर जाती है तो
ये बात किसी प्रख्यात  पंडित 
तक पहुँच जाती है

सोलह, सात और एक सौ आठ 
हर संख्या के उपवास रख चुकी है वो 
अपनी पहुँच से पैर बाहर निकालकर 
न जाने कितने मंदिरों की सीडियां 
चढ़ चुकी है वो 
मगर जब उसकी ही मन्नत अधूरी रह जाती है 
तो बात भगवान् के कच्चे कानो का नजर अंदाज  कर 
उसके कर्मों को कोस आती है

मौसम  बदलते है हर बरस
मगर जब पतझड़ ही बस
उसके  आँगन में रुक जाता है तो
बात मौसम से बदलकर
 मुक़दर की तरफ मुड़ जाती है

फिर जब कभी किसी  दिन सखियों के बीच
जिक्र  होता है
उसकी प्रेम कहानी का तो
दिल की देहलीज से निकलकर
बात  उसके हाथ की लकीरों तक पहुँच जाती है

एक लड़की 
जब लड़की होने के साथ 
एक अभागी लड़की बन जाती है 
तब जिंदगी के सारे धागों में जैसे कोई 
गिरह  पड़
जाती है........
न कोई अदालत 

न वकील 
न सबूत 
न गवाह
मुक़द्दर के इस मुक़दमे की सुनवाई 
में हर बार होता है एक एतिहासिक फैंसला 
और फिर
जीते जी मरने की सजा सुनाई जाती है


12 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

ye ladki badi jaani pahchani si lagi....

राजकुमार सोनी ने कहा…

बहुत ही शानदार लिखा है आपने
आपको बधाई.

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

is abhagi ladki par kya likhun main....juban hi sil gayi hai meri... aur dikkat to yah hai ki aisi abhagi ladkiyan hazaaron,laakhon kee sankhyaa men hain aaj tak....

निर्मला कपिला ने कहा…

बिलकुल सही बात है लडकी के हक मे फैसला कहाँ होता है । अच्छी लगी रचना। शुभकामनायें

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

इस अभागी लड़की पर क्या लिखूं मैं....जुबान ही सिल गयी है मेरी...और दिक्कत तो यह है कि ऐसी अभागी लड़कियां हज़ारों,लाखों की संख्या में हैं आज तक....

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत बढिया लिखा है .. चारो ओर तो देखने को मिल जाएंगी ऐसी अभागी लडकियां !!

M VERMA ने कहा…

मुक़द्दर के इस मुक़दमे की सुनवाई
में हर बार होता है एक ऐतिहासिक फैसला
और फिर
जीते जी मरने की सजा सुनाई जाती है'
और तो और मुकद्दर के इस फैसले में एक पक्षीय सुनवाई और एकतरफा फैसला होता है
और फिर मुकदमा जिसके खिलाफ होता है वही फैसला सुनाता है.
सुन्दर कविता

Sanjay Grover ने कहा…

कविता पढ़ते-पढ़ते दिमाग़ में आया कि ‘भाग’ (भाग्य) होता क्या है? सब एक सामाजिक चक्रव्यूह ही तो है। जैसे भी बना मगर अब बहुत बड़ी आबादी इसका शिकार है। मगर धीरे-धीरे सब बदल भी रहा है। ‘अभागियां’ भी अपना ‘भाग’ ख़ुद बना रहीं हैं। बता रही हैं कि भाग-वाग कुछ नहीं होता। बाक़ी जो कुछ है, हमने समझ भी लिया है और देख भी लेंगे।

दीपक 'मशाल' ने कहा…

एक लड़की का दर्द लड़की से बेहतर और कोई नहीं जान सकता.. आपकी कविता ने इस बात को एक बार फिर सच साबित कर दिया..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सटीक विश्लेषण...बहुत अच्छी रचना

संजय भास्‍कर ने कहा…

अच्छी लगी रचना। शुभकामनायें

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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