मीडिया की डेडलाइन के हिसाब से प्यार, इश्क और मोहब्बत के बारे में मुझे जो भी लिखना था, कल ही लिख देना चाहिए था, क्योकि कल ही तो थाप्यार का तथाकथित दिन वैलेंटाइन डे ......लेकिन लव की इस lifeline
मीडिया की डेडलाइन के दायरे में baandhna कुछ ठीक
नही लगा इसलिए sochaa पहले देख लू समझ लू
वैलेंटाइन डे क्या है और इसमे क्या क्या होता है
तो बस जो देखा समझा और जो समझ नही आया
वो सब आपके सामने रख रही ----------
सुबह जब अख़बार लेने निकली तो अखबारों से
ज्यादा ध्यान पास की दुकान पर महक रहे गुलाबो
पर गया जहाँ रोज सिर्फ़ एक ही फूल वाला बैठा
करता था वाही अज ३-४ बैठे थे फूल खरीदने
में बॉय फ्रेंड टाइप लड़के कम और पति टाइप आदमी
ज्यादा दिख रहे थे
खैर घर आकर अख़बार खोला तो अख़बार में भी
वैलेंटाइन डे की धूम मची थी अब भाई कोई समर्थन
करे या खिलाफत वैलेंटाइन डे ने तो अपनी टी आर पी
बडवा ही ली थी तो देखिये दैनिकभास्कर में खुशवंत
सिंग प्यार को परिभाषित कर रहे है -------
वासना को main समझता हु प्रेम को नही
जीवन की निरंतरता को बनाये रखने वाला
प्राकर्तिक आवेग है यह किसी नस्ल ,धर्म या वर्ग की दीवारों को नही jaanta प्रेम वह चमकीला आवरण है जो वासना को सम्मानजनक banaane के लिए हम उस पर चडाते है
ये विचार पढ़कर dharamveer bhaarti की कविता की कुछ panktiyan याद आ गई उन्होंने लिखा है
न हो ये वासना तो
जिंदगी की maap कैसे हो
किसी के रूप का samman
mujh पर पाप कैसे हो
naso का reshmi तूफान
mujh पर shaap कैसे हो
mehaj इससे किसी का
प्यार mujh पर पाप कैसे हो
मुझे तो वासना का विष
हमेशा बन गया अमृत
basharte वासना भी हो
तुम्हारे रूप से aabad
panktiya बहुत ही sashaqt है और शायद कही न कही कोई सच लिए हमारे सामने आती है लेकिन फिर भी ये sawal उठ जाता है की क्या वासना ही प्रेम है सिर्फ़ प्यार ही प्रेम नही है बहुत teda swal है शायद premiyo को भी कोई जवाब न pta हो
फिर देखा दा हिंदू में reuter का एक article जिसका heading था
DISPOSABLE MONEY AND DISPOSABLE RELATIONSHIP
जिसमे जो ख़ास baat likhi थी वो ये की
PEOPLE HAD DISPOSABLE MONEY AND THEY WANT DISPOSABLE RELATIONSHIP
वैसे बात चाहे प्रेम के vaasna में badalane की हो या vyavsayik हो जाने की akhbaron से ज्यादा ये बातें aasal जिंदगी में दिखाई दे जाती है
चलिए akhbaron की dunia से hatkar अब apko ले चलते है न्यूज़ channel की dunia में जहाँ आकर मैं kafi सोच में पड़ गई क्योकि surkhiyan hi kuch aisi थी ----------------
- ujjain में bajrang दल के लोगो ने भाई-behan को peeta
- jeend में police वालों ने लड़की की बाल pakadkar berahmi से pitai की
- kolhapur में greeting card jalaye गए
- ranchi में dinbhar hinduvadi sanghtno ने हंगामा किया
- khabre तो और भी थी दोस्त लेकिन ये मेरा ब्लॉग है न्यूज़ channel नही इसलिए इससे ज्यादा नही लिख रही
यानि प्यार भी हुआ और ijhaar भी लेकिन pehre के sayen में
जितना कुछ देखा और पढ़ा utna लिख दिया लेकिन प्रेम क्या है इस बात पर अब भी ? ही laga है
लेकिन अपनी बात khatam करते करते apko kristofar morli की एक बात बताना chahungi उन्होंने कहा था की -------------------
अगर hame pta चले ki zindagi के minute बचे है jinme hame वो सब कुछ कहना जो हम कहना चाहते है तो हर टेलीफोन booth पर भीड़ लग jayegi और लोग atakte हुए एक doosre को batayenge की वो उनसे कितना प्यार करते है
बिल्कुल सही लिखा है उन्होंने प्यार तो सभी के दिल में होता है कही कहा नही jata और कही कहे बिना रहा नही जाता प्यार jatane के tarike badal गए प्यार करने वाले लोग badal गए लेकिन प्यार तो अब भी वैसा ही है तो क्यो प्यार के लिए सिर्फ़ ek दिन ko reserve किया जाए वो भी इतना ladjhagad कर हर navvarsh के sath प्यार को एक नया sankalp देते हुए उसे आगे badhaye और पूरे वर्ष उस sankalap को nibhakar हर दिन को प्यार के दिन की तरह manaye क्योकि ये प्यार ही जो इस bhagti dodti जिंदगी को tarotaja कर देता है