कुछ शब्दों मे ख़ुद को शामिल कर लेती हु
यु तो हाथ नही लगता कुछ फ़िर भी बहुत कुछ हासिल कर लेती हु
छुपाये रखना चाहती हु ख़ुद को दुनिया से
फ़िर भी हर बार दुनिया में ही दाखिल कर लेती हु
दिल मजबूर करता है इस राह की ओर
दिमाग मोड़ देता है उस राह की ओर
एक दुनिया दो भागो में बंट जाती है, एक ज़िन्दगी दो हाथो में सिमट जाती है
कुछ कहना या सोचना ऐसे में मायने कहाँ रखता है
महफिल होती है पास फ़िर भी विराना लगता है
ऐसा ही होता है एक वक़्त वो जब हर साँस में एक शब्द होता है पर जुबान तक नही आता
बताना होता है बहुत कुछ, पर इन्सान कुछ जाहिर नही कर पता
हर कोई ,कोई न कोई उपाय अपना लेता है
कोई शराब में ख़ुद को डूबा लेता है
कोई बुरी लत लगा लेता है
ये तो बस कवि है जो अपनी कशमकश को भी
कविता बना लेता है मैं भी ऐसी ही कुछ कोशिश कर लेती हु
यु टो हाथ नही लगता कुछ भी फ़िर भी बहुत कुछ हासिल कर लेती हु
2 टिप्पणियां:
इत्तेफाकन, इसी नाम से मेरा ब्लॉग भी है..
:)
so what can i do dear for u ab to blog ban gya
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