गुरुवार, 14 नवंबर 2013

खत के नाम एक खत


इस दुनिया के ऐसे बहुत से काम हैं, जो मैंने कभी नहीं क‌िए हैं।
मगर इन कामों में से एक काम ऐसा है जो मैं जल्द से जल्द करना चाहती हूं।
अगर कोई कहे कि यह मेरी जिंदगी का आखिरी दिन है तो भी शायद मैं सबसे पहले उसी काम को निबटाउंगी।
मैं खत लिखूंगी। जितना समय मेरे पास बचा होगा उतने खत।

सबसे पहला खत शायद एक प्रेम पत्र होगा।
जिसमें वो सारी बातें लिखी जाएंगी जो एसएमएस की शब्द सीमा के कारण कहीं नहीं जा सकीं।
या नेटवर्क फेल हो जाने के कारण सही समय पर सही व्यक्ति तक पहुंच नहीं सकीं।
और वो सारी बातें जिन्हें कहने से पहले खुद को रोक लिया गया ये सोचकर कि कहीं शब्दों की धार इस कच्चे और नाजुक रिश्ते की डोर को तोड़ न दे।
और वो सारी बातें जिन्हें कह देने के बाद शायद हमेशा के लिए अटूट बंधन में बंध सके अधूरा रह गया प्रेम।

दूसरा खत मां-पापा को लिखा जाएगा
इस खत में वो सारी बातें होंगी जिनके बारे में दफ्तर से घर लौटने के रास्ते में सोचा गया मगर घर पहुंचकर जिन पर बात नहीं हो सकी।
वो सारी बातें जिन्हें कहने से पहले यह कहकर बात टाल दी गई कि आप नहीं समझोगी मम्मी।
आपको क्या पता पापा?
और आखिर में यह बात भी जरूर लिखी जाएगी कि दिन के 12 घंटे घर से बाहर और घर आने के बाद वाले 12 घंटे में से मुश्किल से सिर्फ एक घंटा आपके साथ बिताने के बावजूद भी आप मेरी जिंदगी के सबसे अहम लोग हैं। सबसे खास। सबसे अनमोल।

तीसरा खत दोस्तों को
इस खत में लिखने के लिए ढेर सारी बातें होंगी। जिन्हें काफी देर-देर तक याद कर-कर के लिखना होगा।
शायद इस बहाने हर एक दोस्त के बारे में सोचने का भी मौका मिल जाए।
शायद उसकी कोई ऐसी बात भी याद आ जाए जिस पर पहले कभी ध्यान ही नहीं गया होगा।
यह खत शायद उन आंसुओं से सील जाए तो हंसते-हंसते इस पर गिरते जाएंगे, इसे लिखते वक्त।
यह खत शायद बहुत मजेदार होगा।


चौथा और आखिरी खत कुछ अजनबियों के नाम
इस खत में वो लोग शामिल होंगे जिनके बारे में सोचने के लिए कभी वक्त ही नहीं निकाला गया। मगर वक्त पड़ने पर ये अजनबी इस तरह काम आए जैसे कोई अपना या शायद अपना भी नहीं।
वो दो लड़के जिन्होंने ग्रेजुएशन का फॉर्म भरने की आखिरी तारीख पर और ऐसे समय में जब मुझे ड्रॉफ्ट बनवाने की कोई जानकारी नहीं थी, मुझे ड्राफ्ट बनवाकर दिया।
वो एक आंटी जिन्होंने मुझे उस वक्त अपने सुरक्षा घेरे का अहसास कराया जब मैं पहली बार रात में अकेले बस का सफर कर रही थी।
वो एक आदमी जिसने मुझे सड़क पर अकेले देखकर कमेंट कर रहे एक लड़के को डांट लगाई।
और भी न जाने कितने लोग...
अफसोस कि यह खत अपनी सही जगह तक नहीं पहुंचाए जा सकेंगे।
कहां से ढूंढे जाएंगे इन अपने से अजनबियों के पते।
मगर मैं ये खत भी जरूर लिखूंगी।

पांचवा खत होगा उनके नाम जिनके पास मैं जा रही हूंगी - एन इनविजिबिल पावर कॉलड 'गॉड'  (इस आर्टिकल को लिखने के लिए दी गई सिच्युएशन के अनुसार)
वैसे जिनके पास जाना ही है उन्हें खत लिखने की क्या जरूरत..
मगर दूर रहकर उनसे की गई प्रार्थनाओं का जो हिसाब-किताब अक्सर गड़बड़ाता रहा है
उस पर बात करना बहुत जरूरी है...
वो प्रार्थनाएं जो हजार बार करने पर भी पूरी नहीं की गईं
और वो जिन्हें बिना मांगे ही ...
उन हालातों के बारे में भी तो बताना है जब उनसे विश्वास ही उठ गया
और उनके बारे में भी जब लगा कि वह हैं और हमें देखते हैं, सुनते हैं और जवाब भी देते हैं।

ए लेटर टू गॉड तो बनता है एक बार दुनिया छोड़ने से पहले।

मगर...
क्या ये खत लिखे जा सकेंगे?
क्या यह मालूम चल सकेगा कि हमारी जिंदगी का आखिरी दिन कौन-सा है?
और अगर मालूम चल भी जाए तो क्या हम खत लिखेंगे।
लिखेंगे तो कैसे लिखेंगे हम खत? क्या हमें आता होगा खत लिखना?
खत लिखने का चलन भी तो खत्म हो चुका है और इसी के साथ
न जाने कितना कुछ खत्म हो चुका है...

क्या एक कोशिश फिर से नहीं की जानी चाहिए
क्या आज ही हमें नहीं लिखना चाहिए अपनी जिंदगी का पहला खत...

2 टिप्‍पणियां:

Nidhi ने कहा…

अच्छा लिखा है.
letter writing is the most delightful way of wasting time .

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... अर्थपूर्ण ...

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