जब इस बात का अहसास होना शुरू हुआ कि मैं लड़की हूं, तब सब कुछ इतना बुरा नहीं था। मगर जिन दिनों से उन नियमों ने मेरे दिमाग में जगह बनाई, जिन पर चलने की सीख मुझे दी जाने लगी, क्योंकि मैं एक लड़की थी, तब से सब कुछ काफी बुरा लगने लगा। यहां तक कि तब से मुझे अपना लड़की होना ही बुरा लगने लगा। उन दिनों के बाद से दुनिया भर के हसीन ख्वाबों और ख्यालों के बीच एक ख्वाहिश मेरे दिल में हमेशा कसमसाती रहती थी कि काश! मैं लड़का होती।
लड़का होती तो दादी ने मां के साथ बुरा व्यवहार न किया होता।
लड़का होती तो घर वालों के मन में एक अजीब सी असुरक्षा की भावना न होती।
लड़का होती तो मां को भविष्य इतना धुंधला और कमजोर न दिखता।
लड़का होती तो देर तक बाहर घूमती।
लड़का होती तो बिना बताए घर से चली जाती।
लड़का होती तो शराब के हर एक घुंट के साथ जिंदगी को आसान बना लेती।
लड़का होती तो सिगरेट के कश भरती और हर फिक्र को धुएं में उड़ा देती।
लड़का होती तो ऑफिस से घर जाने की जल्दी न करनी पड़ती।
लड़का होती तो नाइट रिपोर्टिंग करती।
लड़का होती तो रेड लाइट एरिया में जाकर उनकी जिंदगी करीब से देख सकती।
लड़का होती तो इस बात का इंतजार न करना पड़ता कि कोई लड़का आएगा और मेरी जिदंगी की हर तकलीफ को कम कर देगा हर पहेली को सुलझा देगा।
लड़का होती तो ये.... लड़का होती तो वो....
आज भी बेशक मैं लड़की होने पर फक्र नहीं कर सकती, क्योंकि मेरे अंदर की लड़की कहीं घुट रही है।
मगर मैं अब कभी लड़का नहीं होना चाहती।
अगर लड़का होने का मतलब लड़की होने के असित्त्व को बार-बार तार-तार करना रह गया है तो मैं कभी लड़का नहीं होना चाहती।
अगर कभी बाप, कभी भाई, कभी बेटे और कभी किसी मनचले के रूप में लड़कों की मर्दानगी का मतलब लड़कियों की मौत के तौर पर ही सामने आता है तो मैं कभी लड़का नहीं होना चाहती।
और ये जानते-समझते हुए भी कि हर शख्स एक जैसा नहीं होता, हालात बार-बार मुझे झकझोर रहे हैं, मजबूर कर रहे हैं कि मैं किसी मर्द पर भरोसा न करूं और अपने विश्वास को फौरन हर आदमी पर से चलता कर दूं.......
या फिर मैं नहीं समझ पा रही कि उसकी कुर्बानी का मोल किस तरह अदा करूं
आखिर में मैं एक लड़की हूं औऱ नहीं चाहती कि अपनी जिंदगी में फिर कभी किसी लड़की की ऐसी कुर्बानी की साक्षी बनूं।
लड़का होती तो दादी ने मां के साथ बुरा व्यवहार न किया होता।
लड़का होती तो घर वालों के मन में एक अजीब सी असुरक्षा की भावना न होती।
लड़का होती तो मां को भविष्य इतना धुंधला और कमजोर न दिखता।
लड़का होती तो देर तक बाहर घूमती।
लड़का होती तो बिना बताए घर से चली जाती।
लड़का होती तो शराब के हर एक घुंट के साथ जिंदगी को आसान बना लेती।
लड़का होती तो सिगरेट के कश भरती और हर फिक्र को धुएं में उड़ा देती।
लड़का होती तो ऑफिस से घर जाने की जल्दी न करनी पड़ती।
लड़का होती तो नाइट रिपोर्टिंग करती।
लड़का होती तो रेड लाइट एरिया में जाकर उनकी जिंदगी करीब से देख सकती।
लड़का होती तो इस बात का इंतजार न करना पड़ता कि कोई लड़का आएगा और मेरी जिदंगी की हर तकलीफ को कम कर देगा हर पहेली को सुलझा देगा।
लड़का होती तो ये.... लड़का होती तो वो....
आज भी बेशक मैं लड़की होने पर फक्र नहीं कर सकती, क्योंकि मेरे अंदर की लड़की कहीं घुट रही है।
मगर मैं अब कभी लड़का नहीं होना चाहती।
अगर लड़का होने का मतलब लड़की होने के असित्त्व को बार-बार तार-तार करना रह गया है तो मैं कभी लड़का नहीं होना चाहती।
अगर कभी बाप, कभी भाई, कभी बेटे और कभी किसी मनचले के रूप में लड़कों की मर्दानगी का मतलब लड़कियों की मौत के तौर पर ही सामने आता है तो मैं कभी लड़का नहीं होना चाहती।
और ये जानते-समझते हुए भी कि हर शख्स एक जैसा नहीं होता, हालात बार-बार मुझे झकझोर रहे हैं, मजबूर कर रहे हैं कि मैं किसी मर्द पर भरोसा न करूं और अपने विश्वास को फौरन हर आदमी पर से चलता कर दूं.......
या फिर मैं नहीं समझ पा रही कि उसकी कुर्बानी का मोल किस तरह अदा करूं
आखिर में मैं एक लड़की हूं औऱ नहीं चाहती कि अपनी जिंदगी में फिर कभी किसी लड़की की ऐसी कुर्बानी की साक्षी बनूं।