शनिवार, 24 मार्च 2012

प्रेम का अनुवाद

प्रेम का अनुवाद देह होता है
किसी ने कहा था
मैंने कहा
जिस प्रेम का अनुवाद देह है
वो प्रेम से कुछ अलग है
प्रेम से कुछ कम है
उसने कहा
ये तुम्हारा भ्रम है
मैंने कहा
तुम्हारी भाषा ही कमजोर है
जिस तरह पूजा के बाद मिलने वाले
जल का अनुवाद पानी नहीं हो सकता
उसी तरह
प्रेम का अनुवाद देह नहीं बन सकती
तुम्हीं सोचो, तुम्ही बताओ
क्या तुम्हें सिर्फ मिटती हुई वो दूरियां याद हैं
जिनके बाद दो शरीर एक दूसरे में सिमटते गए थे
.
.
एक-दूसरे के शरीर से कोसों दूर भी
लगातार पलती-बढ़ती हुई
उन नजदीकियों को तुमने कौन सी जगह दी है
अपनी स्मृति में
अपनी यादों में
क्या सबसे निचले माले पर बिठा दिया है
उन पलों को
जिनके होने से बचा हुआ है
आज भी
प्रेम का असितत्व
देह से बिल्कुल अलग
बहुत दूर भी

13 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

प्रेम का अनुवाद तो हो ही नही सकता ………उम्दा प्रस्तुति।

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

वाह!

Nidhi ने कहा…

प्रेम है ..तो दूरी कैसी? दूरी कब? दूरी कहाँ?

अति Random ने कहा…

सही कहा निधी जी प्रेम है भौतिक दूरी वास्तविक दूरी नहीं बन सकती है..प्रेम नहीं है तो शरीर की नजदीकियां भी करीब नहीं ला सकती

विभूति" ने कहा…

सार्थक पोस्ट....
सच है प्रेम का कोई अनुवाद नही होता..

Chandan Swapnil ने कहा…

yeh kavita kam aur vichar jyada havi dikh rahey hain

हिमानी ने कहा…

असल में ये कविता एक बातचीतु पर आधारित है जिसमें विचारों का आदान प्रदान हुआ...उसे मैंने कविता के रूप में लिखा है..
जहां तक मेरा ख्याल है स्वपनिल जी..कविता किसी दायरे में नहीं बंधी होती न ही इतनी उनमुक्त होती है कि विचारों के बिना ही कुछ कह दिया जाए..लय मिलाकर

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

सच है प्रेम का अनुवाद मुमकिन नहीं... बहुत सुन्दर रचना, बधाई.

Ajay K. Garg ने कहा…

मुझे नहीं पता था इतना गहरा भी लिखती हो... बेहद उम्दा शिल्प, बढ़िया विचार, बेहतरीन रूपक... बधाई, हिमानी!!
@चंदन... जिस कविता में विचार नहीं, वो कविता कहां हुई, वो शब्दों का संयोजन मात्र हुआ.. त्रासदी तो यही है कि आजकल शब्दों के गट्ठर बहुत मिल रहे हैं, छायावाद की चाशनी में लिपटे हुए.. कविता नहीं मिल रही...

हिमानी ने कहा…

@ajay sir कई चीजें देर से पता लगती हैं सर, हा हा हा हा आपकी हौंसला अफजाई के लिए तहेदिल से आभार...और सार्थक कविताएं लिखने के लिए ही आजकल काफी जद्दोजहद कर रही हूं ताकि एक जरूरी कविता लिख सकूं जिसमें फूल पत्ते भंवरे न हो..हो तो कुछ आपका सच कुछ मेरा सच हम सबका सच जिससे दशा बदले दिशा मिले...उम्मीद आप पढ़ते रहेंगे....

Madhavi Sharma Guleri ने कहा…

बहुत ख़ूब हिमानी! तुम संवेदनशील हो जो अच्छे लेखन के लिए पहली शर्त है. लिखती रहो. शुभकामनाएं.

हिमानी ने कहा…

थैंक्स माधवी दी

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ... गहन बात कही है ...

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