दुनिया की इस भीड़ में
जब मैं कहीं खो सी जाती हूँ
सिर्फ तुम्हारे ख्याल भर से
खुद ही खुद को
ख़ास जताती हूँ
...
देर शाम
दफ्तर से घर लौटते वक़्त
जब कुछ मनचले
मैली सी नजरों से
झांकते है मेरे भीतर
तुम्हारे अहसास भर से
मैं खुद को ताकत दे पाती हूँ
...
जब कभी शून्य में
समा जाती हैं मेरी सारी सोच
और मैं तनहा हो जाती हूँ
तब खुद को जगाने के लिए
तुम्हारे कुछ ख्वाब सजाती हूँ
...
दिमाग, दिल और देह तक
जब बिक रही है हर चीज
और खरीददार खड़े हैं बाजार में
मैं खुद को
तुम्हारी अमानत समझकर बचाती हूँ
...
घर के बड़े कहते हैं बड़ी सयानी हूँ मैं
...
दोस्त कहते है दीवानी हूँ मैं
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मुझे लगता है कुछ नहीं हूँ
तुम्हारी हिमानी हूँ मैं