शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

बारिश, धरती, आसमान मैं और तुम ..मेरे प्रिये

(एक ऐसे समाज में जहाँ लड़के नौकरी करने वाली लड़कियां ढून्ढ रहे है
और लड़कियों का अपने कर्रिएर के लिए शादी बच्चे यहाँ तक कि कई बार प्रेम को भी दरकिनार कर देना आम हो गया है
ये कविता उस औरत कि बात को बयाँ करने के लिए है जो अपने पति से बहुत प्यार करती है और .... उसके प्यार के साथ ही अपने सपनो को सतरंगी बनाना चाहती है जो इक्कीसवी सदी में रहकर भी सिर्फ अपने लिए नही जी रही...अपनों के लिए जी रही है
ये उसका नारीत्व भी हो सकता है और उसकी आदत भी जिसे वो आज के आधुनिक युग में justify  कर पाती है )




आज फिर आई बारिश
दरवाजे पर हुई जोरों से आवाज
बहुत दिनों बाद अनमनी सी नींद
जल्दी खुल गई आज
मगर मैंने दरवाजा नही खोला
नही देखा बाहर
झांककर
किस तरह पेड़ हरे भरे हो गए है
बूंदों का स्पर्श पाकर
किस तरह हवा के सर्द झोंकों से
पंछी घोंसलों में अलिगनबद हो गए है
किस तरह धरती भीग रही है
चुपचाप एक शांत अहसास के साथ
अहसास जो कह रहा है
कि दूरिया हमेशा फासले नही होते
और नजदीकियां हमेशा करीब होने का प्रमाण पत्र नही दे सकती
जब आसमान धरती को ये अहसास दे सकता है
जब बूंदे पत्तो को चूम सकती है
पंछी आजाद गगन को छोड़ अपने घरोंदे  में
रम सकते है
तो तुम क्यों नही हो सकते मेरे सबसे करीब
हमेशा नजरों के सामने होकर भी
क्यों मैं हमेशा कहती हूँ तुमसे आधी बात
और छुपा लेती हूँ आधी
बताने की चाहत रखते हुए भी
क्यों मुझे लगता है कि मेरे जीवनसाथी
तुम नही समझोगे इस बात को
सुनोगे तो नही दोगे फिर मेरा साथ
तुम रूठ जाओगे मुझसे
मन्वाओगे अपनी जिद
थोप दोगे अपना निर्णय
चादर, परदे बच्चों का स्कूल सब कुछ तुम कहते गए
मैं रजामंद होती गई
मेरी पसंद का सवाल ही नही उठा
मैं खो गई तुम्हारी दलीलों
और दुनिया  की मुझसे जयादा समझ होने के तर्क में
मगर मेरे प्रिये अब जब मैं
फिर से रंगना चाहती हूँ अपनी
जिंदगी को अपने रंग में
वो रंग
जिस पर तुम्हारे प्यार की छाया
और मेरी उम्र की धूप ने
डाल दिया था पर्दा
तो दिल से तुम्हे बताकर
तुम्हारी तस्वीर से ढेरों बातें करके
अपनी आखों से तुमसे सबकुछ कहकर
और होठों को सीकर
भर दिया है नौकरी के लिए आवेदन पत्र
इस उम्मीद के साथ की तुम इसे सिर्फ मेरा नही समझोगे
हमारा समझ कर स्वीकार करोगे
और तुम्हारी सहमति के साथ मैं
महसूस कर सकूंगी
आसमान और धरा की दूरियों के बीच पनपते
हमेशा करीब होने के अहसास को
और
पी सकूंगी तुम्हारे प्यार की
वो बूँद जिसका मैंने  चातक की तरह
इन्तजार किया है
हर सावन को स्वाति नक्षत्र  मानकर

5 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति ... नारी के मन के भावों को सटीक शब्द दिए हैं

vikas singh ने कहा…

wow..!!! amazing flow.amazing handling... and amazing VEDNA :) (ab jyada hindi nahi aati sorry) but one can sense it and respect it :) :)

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

आपकी इस कविता की बात ही कुछ और है.बहुत अच्छी ;लगी.
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कल 10/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Devendra Pratap ने कहा…

कमाल है, हमारी तोत्तोचन इतना अच्छा लिखती है, मैंने आज जाना. अब से हर पोस्ट मुझे जरूर भेजना. बहुत बहुत शुभ कामनाएं

-देवेन्द्र प्रताप, मेरठ

Prataham Shrivastava ने कहा…

जरा दरिया कि तह तक तू पहूच जाने कि हिम्मत कर, तो फ़िर ये डुबने वाले किनारा ही किनारा है

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