सोमवार, 3 मई 2010

तारीखों के तिलिस्म

एक फिल्म के मशहूर संवाद तारीख पर तारीख के अलावा भी कई बार मेरा इन तारीखों के तिलिस्म से सामना हुआ. यहाँ सिर्फ कोर्ट ही तारीख नही देता किसी भी  ओहदे पर बैठा हर शक्स यहाँ तारीख देने के लिए तत्पर है.हालाँकि फेहरिस्त खासी लम्बी है लेकिन जब लिखने बैठी हूँ तो सोचती हूँ कि सबका जिक्र आ सके ...
दुनिया में किसी  एक तारीख को हम पैदा हुए फिर किसी एक तारीख को स्कूल गए फिर किसी एक तारीख को हमारा स्कूल का जीवन भी ख़त्म हो गया ...फिर हमारी आँखों में  कुछ सपने थे आगे के जीवन को लेकर ...रोमांस और रोमांच से भरे...इन सपनो को एक सहारा मिलता है कॉलेज के नाम से ...उस कॉलेज में दाखिला लेना जिसमे आसमान जितने ऊँचे ख्वाबों को जमीन मिल सके ...इस तारीख का इन्तजार भी कम जानलेवा नही होता ...वो भी तब जब आपको एक साल ऐसा पाठ  पढना पड़े जो आप नही पढना चाहते ...और उसकी वजह ये हो कि जिस कॉलेज में आप दाखिल होना चाहते थे उसमे आपकी जगह किसी रसूख और पहुँच वाले का दाखिला हो गया है
उस एक साल कि हर एक तारीख मुश्किल होती है  जिसमे आप आने वाली तारीखों का बेसब्री से इन्तजार कर रहे हों ये उमीद बाये कि इस बार आपकी शिद्दत कि पहुँच किसी पहुच वाले शक्स से ज्यादा कारगार होगी ...खैर इन्तजार लम्बा ही सही लेकिन किसी एक तारीख को आपकी ये उम्मीद भी सच हो जाती है बिलकुल एक सपने की तरह....आपका दुर्भाग्य इस समय ये होता है की आप सुख के इस समय  में भी हतप्रभ होते है हंस नही पाते ...अजीब विडंबना है .......अब ये सब सोचकर जरूर हंसी आ रही है ...फिर एक तारीख से लेकर एक तारीख तक आप इस जमीन पर अपने झंडे गाड़ने की कोशिशे करते है ...कामयाब  भी होते है लेकिन हमेशा की तरह कई बार हारने के बाद...फिर एक तारीख को आप रुखसत हो लेते है ख्वाबों की जमीन से खुले आस्मां के नीचे फिर एक जमीन की तलाश में ...जैसे बिन खाद पानी के कोई पेड़ चल पड़ा हो फल देने के लिए...........................
सिफारिशों की इस सभ्यता में अपनी एक गरीब सी संस्कृति को लेकर जिन संभावनाओ को तलाशने आप निकलते हैं उनमे आपको कदम कदम पर मिलती है एक तारीख ....आप उस महीने की उस तारीख को आइये मैं देखता हूँ कुछ हो सका तो ......फिर आप उस तारीख को पहुँचते है आखिरी तारीख समझकर लेकिन वहां से ऐसी तारीख लेकर लौटते है जो फिर कभी आती ही नही ....इसी तरह तारीख पर तारीख मिलती जाती है ...हो सकता है किसी तारीख को आप कोई और तारीख न लेने का निश्चय कर बैठे .....इस सब में एक दिलचस्प और सुहावना मोड़ तब आता है जब किस्मत के मारे आप... अपनी हाथों की लकीरों को पढवाने के लिए भूले भटके किसी पंडित के पास पहुँच जाते है ये सोचकर क़ि शायद पाप और पुण्य के हिसाब में जो गड़बड़ी हो रही है उसे वो संतुलित कर देगा .....लेकिन जानते हैं क़ि वहां क्या होता है ....सोचिये.... सोचिये .....आप समझ ही गए होंगे
पंडित जी भी आपको दे देते हैं एक तारीख .........अजीब नही बेहद गहरी विडंबना ......जाओ बालक इस तारीख को तुम्हारी जिंदगी के दिन फिर जायेंगे ........और जानते हैं क़ि होता क्या है फिर फिर कर कई महीनो क़ि वो तारीख निकाल जाती है और हम फिर भी वाही खड़े रह जाते हैं जहाँ इस सारे तामझाम से पहले खड़े थे ......एक ऐसी तारीख के इंतज़ार में जब सब कुछ ठीक हो जायेगा .......

2 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

'तारीखों के तिलिस्म' लेख अच्छा लिखा है . जीवन की तमाम सच्चाइयाँ उजागर करती यह पोस्ट खास है . जीवन के तमाम अनुभवों को लिखने की कोशिश हमेशा कामयाब होती है .

Prataham Shrivastava ने कहा…

शायद आप सनी देओल की फिल्मो से काफी प्रभाबित है .खेर ये एक मजाक था पर इन तारीखों के इन्तजार में हम एसे ही खुश रह सकते है

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