सोमवार, 24 मई 2010

मुखोटे लगा लो , मनी कमा लो

तू बेवकूफ है झूठ नही बोल सकती थी ...........
तेरी शकल पर झलक जाता है तेरे मन का भाव ....ऐसे कैसे काम करेगी तू
अच्छी बातें करने वाले सारे लोग ही अच्छे हो ऐसा जरुरी नही होता ...जितना दूर रह सको ऐसे लोगो से उतना दूर रहो ................
उसने पुछा और तुने बता दिया ......बेवकूफ कहीं की ........कुछ नही हो सकता तेरा .......
ज्यादा मेहनत और लगन से काम करने की कोई जरुरत नही है ..काम कोई नही देखता .............
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यूँ ही अगर लिखती जाऊं तो बात बहुत लम्बी हो जाएगी
ये तमाम वाक्य...अक्सर उस लड़की को कहे जाते रहे है जो इस दुनिया में रहकर भी उस जैसी नही बन पा रही है ....यहाँ मैं ये भी कहना चाहूंगी कि बात सिर्फ उस एक लड़की कि नही है ...न जाने कौन कौन हो इस तरह के दो पाटो में शामिल ...........
बचपन की  पढाई लिखाई और युवा मन के सपनो के साथ आप जब आगे कि दुनिया में बढ़ते है तो दृश्य बदलने लगता है .......जो आँखे फाड़ फाड़ कर इस दृश्य का लुत्फ़ उठा लेते है वो आगे कि इस दुनिया में आगे बढ़ जाते है और जिनकी आँखे इस अजीब तरह के प्रकाश में चुंधिया जाती है वो पहले आंखे मलते है और फिर हाथ मलते रह जाते है ............जो बातें मैं लिख रही हूँ ,  बिलकुल भी नई नही हैं ..कहानी, उपन्यास और फिल्मों में कई बार संघर्ष के ऐसे किस्से कमाल कर गए है ........मगर हकीकत में भी जब एक ऐसे बॉक्स के ऑफिस पर आपको हिट होने के लिए मेहनत करनी पड़े जिसका कोई रिश्ता आपके काम से नहीं है .......तो साडी पढाई लिखी और सपने कूड़ेदान में ड़ाल  देने का मन करता है ........वैसे इन निजी भावनाओ के आलावा भी कुछ तथ्य है जो इन हालातों के लिए जिम्मेदार है ................
PROFESSIONAL बनो
जब अप नौकरी करने निकलते है तो आप के निश्छल और कभी मुर्खता भरे स्वभाव को देहते हुए कहा जाता है क़ि
PROFESSIONAL बनो ..........सच मत बोलो .......सब कुछ छुपाओ ...काम आता हो तो भी मत करो.....बॉस के सामने न आता हो तो भी करने का दिखावा करो ........ये कुछ ऐसे टिप्स है जो तथाकथित PROFESSIONAL बन्ने में आपको मदद करते है ........... कभी कभी मैं सोचती हूँ अगर ये पैमाना न होता तो देश कहीं आगे होता ..यहाँ हर जगह इंसान को नोचा जा रहा है ......जो काम करना चाहता है उसे करने नहीं देते जो नहीं करता उसे फलक पर बिठा देते है ...कौन क्यों कब कहाँ कैसे पहुँच गया .......आप सोचते रह जाइये लेकिन  कुछ नहीं सूझेगा ...अगर सूझ भी गया तो उस रास्ते पर चलने के लिए आप शायद खुद को तैयार न कर पाए ..........आखिरी रास्ता कता बचा ...अलग अलग सूरते तय करती है ...कभी मुड जाना हुआ .......कभी लौटा आना ......कभी खुद को अलविदा करके एक मुखोटे को अपनाना .................फिर फराज के वो शब्द कि .......मंजिले दूर भी है ....मंजिले नजदीक भी ....अपने ही पाँव में कोई जंजीर पढ़ी हो जैसे ........

2 टिप्‍पणियां:

माधव( Madhav) ने कहा…

nice

Udan Tashtari ने कहा…

क्या पता क्या होता मगर है तो यही..सार्थक आलेख.

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