शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010
आम आदमी
उर्दू शायर कैस रामपुरी ने कभी फ़रमाया था "आ गया गुमराह करने का हुनर जाइये अब रहबर हो जाइये" और इस फरमान या कहे कि फरमाइश को देश के रहनुमाओ ने बखूबी अपनाया है.इस बार का बजट हो या कुछ और हर तरफ एक साजिश सी नजर आती है... गुमराह करने की साजिश.अब भाई हम क्या जाने आंकड़ो की हकीकत जरुरत की कुछ चीजे सस्ती हुई तो खुश हो लेंगे और महंगी हो गई तो ज्यादा पैसे कमाने की जुगत में हाथ पाँव मारने लगेंगे. जिस आम आदमी के नाम पर ये सारा वर्तमान रूपी इतिहास रचा जा रहा है उस 'आम आदमी' नामक शब्द का उच्चारण आज इतना बढ़ गया है की वो आदमी आज बेहद ख़ास मालूम पड़ता है.ऐसा ख़ास आदमी जिसे खुद भी अपनी खासियत का इल्म नही है. मंत्री उसके नाम पर वोट ले जाता है और मीडिया उसके आधार पर टी आर पी बटोर लेता है. कुल मिलाकार हर कोई उसके नाम पर खेल रहा है और तरजीह भी सिर्फ खेलों को ही दी जा रही है. फिर चाहे वो सियासत का खेल हो,पूँजी का,बाजार का या फिर कोमन वेल्थ गेम्स. आम आदमी नाम का ये शब्द इतना विस्तार ले चूका है की मेरे जेहन में इससे जुड़े सारे तथ्य और घटनाये एक मिश्रण बना चुके है जिनमे से कुछ ख़ास चुनना बेहद मुश्किल है क्योंकि उस आम आदमी की हकीकत आज भी आम है जिसे सरे आम निलाम करने में किसी को परहेज नही है.
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4 टिप्पणियां:
जो आम के मौसम मे भी
आम न खा पाये
वही न जाने क्यूँ
आम आदमी कहलाये
आम आदमी ... बेचारा आम हो के रह गया है ...
आपको और आपके समस्त परिवार को होली की शुभ-कामनाएँ ...
आम आदमी का नाम लेकर केवल सहमति जताई जाती है .........होली कि ढेर सारी शुभकामनयें
होली की शुभकामनायें।
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