आत्महत्या..एक अपराध या इन्साफ
पिछले कई दिनों से लगातार आ रही आत्महत्या की खबरों ने जैसे मन को कचोट कर रख दिया है और फिर एक ८-१० साल का बच्चा आत्महत्या कर रहा है ..क्या सोच कर ..सिर्फ कुछ सोच कर ही ...या फिर कुछ ऐसा समझ में आ चूका है उसे की जिंदगी बिलकुल बेगानी हो गई हैं और मौत ही अंतिम उपाय...बेहद उलझे सवाल है ये ..मगर इनके जवाब जानने के लिए भी बहुत बेचैन हू मैं ...मन के हारे हार है मन के जीते जीत...मगर मन तो एक दिन मैं ही कई बार हारता है ..हर उस बार जब मन का नही होता ...आज भी याद है मुझे........ सड़क पार करते हुए जब सामने से गाड़ी आ रही थी तो मैंने भी एक पल के लिए वाही रुक जाने का सोचा था ..ये सोच कर की अब बस ..अब नही तय कर पाऊँगी आगे का सफ़र ..लेकिन जैसे ही गाड़ी नजदीक आई ..शायद बिन सोचे ही मेरे कदम आगे बढ़ गए और मैं उसी सफ़र के बीच में फिर आ गई ..आगे चलने..आगे बढ़ने के लिए ..फिर से मैं एक मोड़ पर खड़ी थी ...उस मोड़ पर खड़े होकर ही एहसास हुआ की ये मोड़ मौत की उस मंजिल से कहीं बेहतर है जहाँ कुछ भी आजमाने का कोई भी मौका मेरे पास नही होगा ...लेकिन अगले ही पल ये सवाल भी उठा की मरना मेरे बस की बात नहीं है....... जो लोग आत्महत्या करते है बेशक दुनिया उन्हें कायर कहे लेकिन बहादुर होते है वो जो ऐसा कदम उठा पाते है ...
यही से आत्महत्या के इन दो विपरीत पहलुओं पर सवाल उठता है की आत्महत्या है क्या
अपराध या इन्साफ
आखिर ज़िन्दगी से बढ़कर मौत क्यों हो जाती है ..इस खूबसूरत दुनिया के समाजो में इतना बुरा क्या है जो इंसान यहाँ तक की बच्चो को भी ख़ुदकुशी करने पर मजबूर कर रहा है ...इमितिहान में फेल हो जाना जिंदगी में हार जाने के बराबर कैसे बन गया ...प्रेमी का धोखा दे जाना जिंदगी के प्रति लगाव को क्यों ख़त्म कर रहा है...डॉक्टर या इंजिनीअर न बन पाना इंसान बने रहने की क़ाबलियत को भी क्यों ख़त्म किये दे रहा है ?????
सवालो की फेहरिस्त और जवाब नदारद ....मगर कही हमारी सोच में ही छुपे है जवाब भी ...मौत तो एक दिन आनी ही है ...लेकिन जिंदगी के वापस मिलने की कोई बीमा पोलिसी या बाबा जी गारंटी नही दे सकते
तो जी कर देखना ही बेहतर है और जीने लायक माहौल बना रहे ...हमारे मन में भी और मोहल्ले में भी इसकी कोशिश की जानी चाहिए
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5 टिप्पणियां:
आत्महत्या ...
एक मजबूरी ,
एक आसान या बहुत मुश्किल रास्ता
एक जूनूनी फ़ैसला ,
एक दुख जो आत्महत्या करने वाले से जुडे हैं उनके लिए ..
एक अभिशाप समाज के लिए
और बताऊं क्या ....??? वैसे आपने कुछ नहीं लिखा क्यों ..
अजय कुमार झा
maaf kijiye ajay ji maine likha to bahut kuch tha magar takniki gadbadi ki vajah se publish nahi hua ...ab aap ise padh kar apni rai de sakte hai
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
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