बागों से निकलकर गुलाब सब
बाजार में आ गए है
प्यार कि दुकानों में
मोहब्बत के सामान
फिर एक बार
छा गए है
गलती से कोई
कोई ग़लतफहमी में
दिल तो हर कोई
लगाये बैठा है
मगर वो अहसास
जो आँखों से ब्यान
हो न सके
वो अल्फाज जो
न पहुचे ही जुबान तक
अब तलक
उन्हें कहने के दिन
आ गए है
यूँ तो तुझसे मिलने
कि हर तारीख
तोहफा है
मेरी जिंदगी का मुझे
मगर इश्क के इस उत्सव पर
प्रेम कि रसम
कुछ इस तरह अदा कर
कि मेरी हर तन्हाई में
तसव्वुर हो तेरा
और तक़दीर की हर तारीख
तेरे आने की तदबीर हो जाये
बुधवार, 10 फ़रवरी 2010
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12 टिप्पणियां:
अच्छे शब्द और रचना
बहुत ही मुलायम से शब्द हैं...
कि मेरी हर तन्हाई में
तसव्वुर हो तेरा
और तक़दीर की हर तारीख
तेरे आने की तदबीर हो जाये
बहुत नाज़ुक सी मनुहार है.
सुन्दर रचना
सुन्दर रचना
मगर वो अहसास
जो आँखों से ब्यान
हो न सके
वो अल्फाज जो
न पहुचे ही जुबान तक
अब तलक
उन्हें कहने के दिन
आ गए है
सुन्दर रचना, बधाई!
EK DIL KE LIYE KITNE DOSRE DIL TODTI
EK DIL KE LIYE APNE SIR SE PTATHR TODTI
PR YDI TOOTE YHI DIL SOCH KR DEKHO JRA
CHHODTI FIR JINDGI KYA SARE NATE TODTI
DR.VEDVYATHI@GMAIL.COM
Bahut umda...bahut accha likhati hai aap !!Badhai swikar kare..
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
वाह .. बहुत सुंदर !!
कि मेरी हर तन्हाई में
तसव्वुर हो तेरा
और तक़दीर की हर तारीख
तेरे आने की तदबीर हो जाये
kya baat hai. bahut badhiya.
बहुत सुन्दर रचना ...
कि मेरी हर तन्हाई में
तसव्वुर हो तेरा
और तक़दीर की हर तारीख
तेरे आने की तदबीर हो जाये
फूलों जैसे एहसास लिए नाज़ुक सी रचना .....बहुत लाजवाब रचना
महा-शिवरात्रि की बहुत बहुत बधाई .....
बागों से निकलकर गुलाब सब
बाजार में आ गए है
प्यार कि दुकानों में
मोहब्बत के सामान
फिर एक बार
छा गए है
गलती से कोई
कोई ग़लतफहमी में
दिल तो हर कोई
लगाये बैठा है
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
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