शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

मैं एफर्टलेस हो जाना चाहती हूं


तुम्हें पाने की इतनी प्रार्थनाएं की हैं।
इतने मंद‌िरों की घंट‌ियां बजाई हैं।
इतने व्रत रखे हैं।
आधी-आधी रात में उठकर इतने-इतने ख्वाब बुने हैं
इतनी-इतनी कव‌िताएं ल‌िखी हैं, तुमसे मिले बिना क‌ि 
अब तुम्हारे मिल जाने पर
मैं बिलकुल एफर्टलेस हो जाना चाहती हूं।

मैं चाहती हूं क‌ि तुम्हें पुकारूं भी ना
और तुम आ जाओ।

मैं चाहती हूं क‌ि तुमसे कहूं भी ना 
और तुम समझ जाओ।

मैं चाहती हूं क‌ि तुम सुन भी न पाओ
और मी टू भी कह दो।

मैं चाहती हूं क‌ि मेरी जरूरत का अहसास 
मुझसे पहले तुम तक पहुंचे।

मैं चाहती हूं क‌ि हिचक‌ियां तुम्हें पानी की कमी से नहीं 
मेरे याद करने पर ही आएं।

मैं चाहती हूं क‌ि मेरे दिल में गहराते जा रहे सन्नाटों को पहचानो तुम
और उन्हें मिटाने के ल‌िए हर रोज गिटार की धुन पर एक नया गीत सुनाओ।

मैं चाहती हूं क‌ि तुम ये समझो क‌ि तुम्हारा मेरे पास होना
आसमान के जमीन से मिल जाने जैसा जादुई है मेरे ल‌िए
मैं चाहती हूं क‌ि तुम ये जादू मुझे हर रोज द‌िखाओ।

तुम कह सकते हो क‌ि तुम्हारे भी अपने एफर्ट्स रहे हैं 
मगर मैं फ‌िर भी यही कहूंगी क‌ि तुम हमेशा से एफर्टलेस थे
अब मैं 
तुम हो जाना 
चाहती हूं। 

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