देश ही नहीं दुनिया भर से एक ही आवाज सामने आई- फांसी।
आवाज अपनी
मंजिल तक पहुंची और फांसी का फैसला सामने आया।
जिस उम्मीद से न्यायपालिका की तरफ देखा जा रहा था, वह उम्मीद पूरी हुई।
मगर फिर भी न जाने क्यों मन को चैन नहीं मिला।
वजह यह कि कुछ ऐसी बातें फिर से देख ली, फिर से पढ़ ली और फिर से समझ लीं कि फांसी के फैसले से जो ठंडक दिल को मिली थी उससे भी कंपकंपी होने लगी।
जिस उम्मीद से न्यायपालिका की तरफ देखा जा रहा था, वह उम्मीद पूरी हुई।
मगर फिर भी न जाने क्यों मन को चैन नहीं मिला।
वजह यह कि कुछ ऐसी बातें फिर से देख ली, फिर से पढ़ ली और फिर से समझ लीं कि फांसी के फैसले से जो ठंडक दिल को मिली थी उससे भी कंपकंपी होने लगी।
पहला तो यह कि फांसी का फैसला सुनने भर पर इतना फोकस था कि ध्यान ही नहीं रहा,
यह फांसी पहले सिर्फ कागज पर होगी और उसे हकीकत बनता देखने के लिए लंबा इंतजार भी
करना पड़ सकता है।
हाईकोर्ट-सुप्रीमकोर्ट-मर्सी पिटीशन और इसके बाद जब हर स्तर पर यह मान लिया जाएगा कि सच में एक जघन्य अपराध के लिए दिया गया यह फैसला सही है तब जाकर फांसी की सजा मुकम्मल होगी।
बेशक यह एक कानूनी प्रक्रिया है, जिस पर अमल होना जरूरी है और न्यायपरक भी।
हाईकोर्ट-सुप्रीमकोर्ट-मर्सी पिटीशन और इसके बाद जब हर स्तर पर यह मान लिया जाएगा कि सच में एक जघन्य अपराध के लिए दिया गया यह फैसला सही है तब जाकर फांसी की सजा मुकम्मल होगी।
बेशक यह एक कानूनी प्रक्रिया है, जिस पर अमल होना जरूरी है और न्यायपरक भी।
चिंता, डर और परेशानी सिर्फ इसी बात को लेकर है कि कहीं इस एक मामले के
दोषियों को फांसी तक पहुंचते-पहुंचते इतना वक्त न लग जाए कि कई दामिनियों के दमन की
कहानी हमारे सामने हो और हम बेबस होकर सिर्फ इंतजार ही करते रह जाएं।
डर, बेवजह भी नहीं है।
पहले आसपास की घटनाएं डराती थी।
फिर खबरें पढ़कर डर लगने लगा
फिर लगातार बढ़ते हुए आंकड़े सामने लगे
और अब अध्ययन भी...
पहले आसपास की घटनाएं डराती थी।
फिर खबरें पढ़कर डर लगने लगा
फिर लगातार बढ़ते हुए आंकड़े सामने लगे
और अब अध्ययन भी...
''केवल झारखंड में ही पिछले एक महीने के दौरान बलात्कार के 818 मामले दर्ज दिए
गए हैं।'' (बीबीसी हिंदी)
''एशिया के कुछ हिस्सों में किए गए हाल के एक अध्ययन के मुताबिक 10 में से एक
व्यक्ति ने माना कि उसने एक महिला के साथ बलात्कार किया है।''
दूसरा मुद्दा मानवअधिकारों की रक्षा करने वाले लोगों का है। ये लोग आज भी न
जाने अपनी पेशेवर मजबूरी या फिर किसी और वजह से यही राग अलाप रहे हैं कि
बलात्कारियों के भी मानवाधिकार होते हैं।
जिस समाज में आज भी एक तबका औरत को इंसान जैसे अधिकार नहीं देता उसी समाज में एक औरत का बलात्कार करने वाले व्यक्ति के मानवाधिकार की बात करना......यह तर्क सुनने में ही इतना घटिया लगता है कि इसे विडंबना भी नहीं कहा जा सकता।
जिस समाज में आज भी एक तबका औरत को इंसान जैसे अधिकार नहीं देता उसी समाज में एक औरत का बलात्कार करने वाले व्यक्ति के मानवाधिकार की बात करना......यह तर्क सुनने में ही इतना घटिया लगता है कि इसे विडंबना भी नहीं कहा जा सकता।
तीसरी बात उन लोगों की है जिन्हें लगता है कि दोषियों को सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए लिहाजा उनकी सजा भी कम होनी चाहिए।
इस बात का जवाब एक दृश्य की कल्पना से देना ज्यादा बेहतर होगा-
मान लीजिए आपके हाथ में गर्म चाय का कप है, सामने से कोई अपनी मस्ती में आ रहा
है और उसका धक्का आपको लग गया।
गर्म चाय आपके हाथ पर गिर गई और हाथ जल गया।
आपको गुस्सा आएगा। आप चिल्ला भी सकते हैं।
सामने वाला माफी मांग सकता है।
आप थोड़ा बहुत चिल्ला कर लड़-झगड़कर माफ भी कर सकते हैं।
गर्म चाय आपके हाथ पर गिर गई और हाथ जल गया।
आपको गुस्सा आएगा। आप चिल्ला भी सकते हैं।
सामने वाला माफी मांग सकता है।
आप थोड़ा बहुत चिल्ला कर लड़-झगड़कर माफ भी कर सकते हैं।
अब मानिए कि आपके हाथ में गर्म चाय का कप है और सामने से आने वाला व्यक्ति यह
सोचकर ही आ रहा है कि वह आपको इस तरह धक्का देगा कि चाय आपके हाथ पर गिरे और हाथ जल
जाए।
वह आता है और अपनी योजना के मुताबिक आपका हाथ जलाकर भाग जाता है।
आप क्या करेंगे।
आप सिर्फ चिल्लाएंगे नहीं।
उसके पीछे दौड़ेंगे। आसपास के लोगों को आवाज लगाएंगे। उसे पकड़वाएंगे।
चाहेंगे कि उसे सजा हो। शायद ही आप वहां पश्चाताप की गुंजाइश तलाशने बैठें।
वह आता है और अपनी योजना के मुताबिक आपका हाथ जलाकर भाग जाता है।
आप क्या करेंगे।
आप सिर्फ चिल्लाएंगे नहीं।
उसके पीछे दौड़ेंगे। आसपास के लोगों को आवाज लगाएंगे। उसे पकड़वाएंगे।
चाहेंगे कि उसे सजा हो। शायद ही आप वहां पश्चाताप की गुंजाइश तलाशने बैठें।
जिन लोगों की बात हम यहां कर रहे हैं वह दूसरे दृश्य से संबंधित
हैं।
उन्होंने गलती नहीं की है गुनाह किया है।
उन्होंने गलती नहीं की है गुनाह किया है।
स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है और उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में भी यह
स्पष्टता सार्थक होगी
और इंसाफ रास्ते में ही दम नहीं तोड़ देगा।
और इंसाफ रास्ते में ही दम नहीं तोड़ देगा।