शनिवार, 6 अप्रैल 2013

तुम्हारी अनुपस्थिति


तुम्हारी अनुपस्थिति ऐसे है
जैसे वो लकीर
जिस तक पहुंचकर
एक-दूसरे में सिमट जाते हैं
धरती और आसमान।

तुम्हारी अनुपस्थिति ऐसे है
जैसे वो अंधेरा
जिसमें गुम हो जाता है
हर चेहरा और
मैं बना सकती हूं अपनी
कल्पना के घेरे में उस
उस वक्त तुम्हारा अक्स।

तुम्हारी अनुपस्थिति ऐसे है
जैसे पानी का रंग
जो दिखता नहीं है
या होता नहीं है
यह अब तक तय होना बाकी है।

10 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... पाने के रंग स उन्खा भास् ... जो दिखता नहीं या होता नहीं ...
ख्यालात की बेलगाम उड़ान ...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

पानी का रंग तो होता नहीं या दिखता नहीं ... तुम्हारा अक्स भी तो ऐसा ही है ... अभी होता है पास अभी कहीं नहीं ... गहरे भाव ...

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

आपको नव संवत 2070 की हार्दिक शुभ कामनाएँ!

आज 11/04/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की गयी हैं. आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुन्दर.....
कोमल अभिव्यक्ति......

अनु

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

LATEST POSTसपना और तुम

बेनामी ने कहा…

Great article.

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Aditi Poonam ने कहा…

बहुत सुंदर भावभीनी अभिव्यक्ति....
नव-वर्ष मंगलमय हो....

Aditi Poonam ने कहा…

बहुत सुंदर भावभीनी अभिव्यक्ति....
नव-वर्ष मंगलमय हो....

बेनामी ने कहा…

अहसास को शब्दों का रूप ....अति भावपूर्ण..

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