मधुर भंडारकर की फिल्म पेज थ्री कई दफा देखी थी। तब मालूम नहीं था कि पेज थ्री का मतलब क्या होता है। अगर मतलब जो होता है वो है भी तो फिल्म का नाम पेज थ्री क्यों रखा गया, ये समझने में भी वक्त लगा। बहरहाल अब कुछ एक साल बीतने के बाद पेज थ्री और मधुर की फिल्म के नाम दोनों की गुत्थी सुलझ चुकी थी। बाकी बचा था तो पेज थ्री पार्टी को लाइव देखने का अवसर। सो ये भी बीते दिनों मिला। मौका था जानी-मानी पत्रकार और लेखिका तवलीन सिंह की नई किताब दरबार की पब्लिशिंग के जश्न का। दोपहर भर हमने व्यापार मेले में दो मुल्कों के बीच के प्यार को ढूंढा और शाम को पहुंचे नई दिल्ली के जाकिर हुसैन मार्ग पर बने आलीशान फाइव स्टार होटल ओबरॉय में। दिन भर धूल मिट्टी में भाग-दौड़ के बाद खस्ता हालत को देखकर एक बार को मन ने धिक्कारा भी कि पांच सितारा होटल में इस हालत में जाना ठीक नहीं। फिर सेल्फ रेस्पेक्ट ओर सादा जीवन उच्च विचार का पाठ याद आया और जैसे हैं वैसे ही होटल में दाखिल होने की हिम्मत बंधी। गेट पर पहुंचे तो ये लंबी-लंबी गाड़ियों के बीच अपनी 11 नंबर( पैदल) की सवारी के साथ होटल में एंट्री लेते वक्त भी काफी लज्जा महसूस हुई, लेकिन स्वाभिमान ने उस लज्जा को हावी नहीं होने दिया और हम पैदल ही अंदर दाखिल हो गए। गार्ड से नीलगिरी जाने का रास्ता पूछा और आगे बढ़ चले। नीलगिरी, होटल ओबरॉय में एक पार्टी हॉल का नाम है। उस तक पहुंचने में रास्ते में लगे चमकते हुए बोर्ड्स ने भी मदद की। जैसे नीलगिरी में पहुंचे तो इस देसी नाम को सिर्फ खुद तवलीन सिंह ही निभाती दिखीं, जिन्होंने सिल्क की नीली साड़ी पहनी हुई थी और हाथ में शराब का गिलास पकड़े हुए भी बेहद शालीनता से आने वाले लोगों से बात कर रही थी। य़े मेरे लिए उनसे मिलने का पहला मौका था। इतने सारे अंग्रेजी लोग और विदेशी संस्कृति के माहौल के बीच भी अपने भारतीयपन को बचाए हुए वह देसी और विदेशी का एक बेहतरीन फ्यूजन प्रस्तुत कर रहीं थी। दाखिल होने के बाद पहले तो समझ ही नहीं आया कि क्या किया जाए। यहां आमतौर पर होने वाले किताबों के विमोचन से एकदम अलग माहौल था। तवलीन सिहं ने खुद भी बातचीत के दौरान बताया कि यहां किताब का रिलीज नहीं है बल्कि जश्न है। फिर जश्न का दूसरा नाम है जाम। तो नीलगिरी में हर तरफ लाल और पीले पानी वाले जाम खूब दिखाई भी दे रहे थे। कई अजीबो-गरीब चेहरों के बीच शशि थरूर और फारुख शेख जैसे कुछ राजनीतिज्ञ चेहरे भी नजर आए तो रजत शर्मा जैसे मीडिया के कुछ ब़ड़े नाम भी। इन बड़े लोगों और बड़ी-बड़ी हस्तियों के बीच अचानक पहुंचे हम ( मैं और मेरा सहकर्मी) बेहद अजीब लग रहे थे। ऐसा हमें खुद को भी लग रहा था और कोई शक नही ंकि दूसरे भी हमारे बारे में ऐसा ही सोच रहे थे। हमारे मन में चलने वाले इतने सारे विचारों और भावों के बीच सिर्फ एक ही बात अच्छी हो रही थी कि हमें तवलीन जी से उनकी किताब के बारे में बात करने का पूरा मौका मिल रहा था और इस तरह कम से कम हमारा वहां आने का मकसद पूरा हो रहा था। हां एक मकसद जरूर अधूरा रह गया था। इसके अधूरा रह जाने की वजह भी यही थी कि वह मकसद वास्तव में मकसद बन ही नहीं पाया था और वह था पेज थ्री पार्टियों के असल अहसास को महसूस करने का। हम वहां से बिना पानी की एक बूंद पीए वापस लौट आए। ..... टू भी कंटीन्यूड टिल द सेकेंड पेज थ्री पार्टी
रविवार, 25 नवंबर 2012
शुक्रवार, 2 नवंबर 2012
शिक्षा फॉर लाइफ या सिर्फ सबक जिंदगी भर के लिए
लस्ट फॉर लाइफ
महान चित्रकार विंसेंट वॉन गॉग के जीवन पर आधारित विश्व प्रसिद्ध उपन्यास
लेखक-इरविंग स्टोन
इस किताब के आखिरी पन्नों को पलटते हुए मैं मन ही मन में कुछ फैसले कर चुकी थी।
पहला और हास्यास्पद फैसला ये कि अब मैं किताबें नहीं पढ़ूंगी..।
दूसरा ये कि किसी भी बात की गहराई में जाने की कोशिश नहीं करुंगी।
तीसरा ये कि बार-बार अपने लिखे को सुधारने और एक अद्भुत, अकल्पनीय या उस उपमा वाला एक शब्द, जिसे अंग्रेजी में मास्टरपीस कहते हैं जैसी कोई कविता या कहानी लिखने की कोशिश भी नहीं करुंगी।
मुझे नहीं पता कि मैं इन फैसलों पर कितना अमल कर पाऊंगी। क्योंकि जो तीन बातें मैंने ऊपर लिखी हैं, मेरी 75 फीसद जिंदगी उन्हीं बातों के इर्द-गिर्द घूमती है। 463 पन्नों वाली इस किताब को मैंने घर से दफ्तर आने-जाने के रास्ते का इस्तेमाल करते हुए पढ़ा। लगभग एक महीने का समय लगा। एक दोस्त की सलाह मानकर मैंने ये किताब पढ़नी शुरू की थी। किताब पूरी पढ़ने के बाद समझ नहीं आ रहा कि ये सलाह मानना सही था या गलत। मेरे सामने दो विकल्प हैं एक है इस किताब से मिलने वाली शिक्षा और दूसरा इसे पढ़ने के बाद मेरे स्वार्थी और डरपोक मन को मिला एक सबक। किसे चुनूं ये दुविधा है। सुविधा ये है कि वक्त अपने विकल्प खुद चुन लेता है इसलिए फैसला उसी पर छोड़ दूं। बहरहाल एक नजर शिक्षा और सबक दोनों पर....
शिक्षा
एक सच्चे कलाकार को अपनी कला के लिए पूरी जिंदगी दांव पर लगा देनी होती है। जैसा कि विंसेंट वॉन गॉग ने अपनी पूरी जिंदगी अपने भीतर से उस अद्भुत, अकल्पनीय और असल कला को बाहर लाने के लिए देश-देश भटकते हुए बिता दी। ऐसे हालातों का सामना किया जब उनके पास भूखमरी से मर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। ऐसा वक्त भी जब उनके हर एक रिश्तेदार ने उन्हें सिवाय तानों के कुछ नहीं दिया। ऐसा वक्त जब हर देखने वाले ने उन्हें पागल कहकर मुंह मोड़ लिया।
सबक
अपनी कला के बारे में गंभीर होकर सोचना इंसान को पागल कर देता है और उसे पूरी जिंदगी कुछ नहीं मिलता। मरने के बाद अगर दुनिया किसी को महान बना दे तो फिर...।
इस किताब में लिखी कुछ बातें आपके लिए चुनकर यहां लिख रही हूं....“आप केवल साहस और शक्ति जुटा सकते हैं, वह करने के लिए, जो आप सही समझते हैं। यह गलत भी हो सकता है। लेकिन आप उसे कर चुके होंगे और यही महत्वपूर्ण है। हमें अपनी बुद्धि के श्रेष्ठ चुनाव के आधार पर काम करते हुए उसके अंतिम मूल्य का फैसला ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए।“
“प्रेम जीवन का नमक था। जीवन में स्वाद लाने के लिरए हर एक को उसकी जरूरत थी।““रोटी के लायक न बन पाना निस्संदेह एक अपराध है, क्योंकि हर ईमानदार आदमी अपनी रोटी के लायक होता है। लेकिन उसे न कमा पाना उसके लायक होने के बावजूद एक बड़ा अपराध होता है, बहुत बड़ा।“
“आदमी का व्यवहार काफी कुछ ड्राइंग की तरह होता है। आंख का कोण बदलते ही सारा दृश्य बदल जाता है। यह बदलाव विषय पर नहीं, बल्कि देखने वाले पर निर्भर करता है। “
“मृत्यु कितनी साधारण चीज होती है, शरद में गिरती हुई एक पत्ती जैसी।““जिंदगी एक अनंत खाली और हतोत्साहित कर देने वाली निगाह से हमें घूरती रहती है, जैसे यह कैनवस करता है। ““अक्सर यातना ही किसी भी कलाकार की रचना को सबसे मुखर बनाती है।“
“आदमी प्रकृति का पीछा करने की हताश मशक्कत से शुरू करता है और सब कुछ गलत होता जाता है। अंततः आदमी अपने रंग खोज लेता है और सहमत होकर प्रकृति उसके पीछे आने लगती है।“
“मानवीय दिमाग दो तरह की बातें सोचता है छाया और रोशनी, मीठा और खट्टा,अच्छा और बुरा, प्रकृति में इन दोनों चीजों का असितत्व नहीं होता। दुनिया में न अच्छाई है न बुराई केवल होना है और करना। जब एक क्रिया का हम वर्णन करते हैं तो हम जीवन का वर्णन कर रहे होते हैं। जब हम उस क्रिया को कोई नाम दे देते हैं जैसे अश्लीलता तो हम व्यक्तिगत द्वेष की तरफ बढ़ रहे होते हैं।“
“आदमी या तो पेंटिंग कर सकता है या पेंटिंग के बारे में बात। वह इकट्ठे
दोनों काम नहीं कर सकता।“
“साधारण होना कितना मुश्किल है।“
“मेरा काम...मैंने अपनी जिंदगी दांव पर लगाई उसके लिए...और मेरा दिमाग करीब-करीब भटक चुका है।“
“मैं किसानों के चित्र बनाता हूं। इन चित्रों को देखकर मुझे लग रहा है
जैसे ये भी किसान हैं। देह की खेती करने वाली, धरती और देह एक ही तत्व के दो अलग-अलग रूप हैं, है ना और ये औरते मानव देह पर काम करती हैं, जिस पर काम किया जाना चाहिए ताकि उससे जीवन पैदा हो सके।“
“चित्रकारों को सीखना चाहिए कि किसी चीज को नहीं बल्कि उसकी मूल प्रकृति को पकड़ने का प्रयास करें। यदि आप एक घोड़े का चित्र बना रहे हैं तो सड़क पर देखा गया कोई घोड़ा नहीं होना चाहिए उसमें। उसकी तसवीर तो कैमरे से भी खींची जा सकती है। हमें उससे आगे जाना चाहिए। घोड़े का चित्र बनाते समय मौश्ये हमें जो चीज पकड़ने की कोशिश करनी चाहिए वह है प्लेटो का घोड़ापन यानी घोड़े की बाहरी आत्मा। जब हम एक आदमी का चित्र बनाते हैं वह किसी आदमी का चित्र नहीं होना चाहिए जिसकी नाक पर मस्सा है। वह सारे आदमियों
की आत्मा और उनकी मूल प्रकृति का चित्र होना चाहिए।“
अश्लील नहीं होते केवल घटिया किताबें और चित्र हो सकते हैं।“
”किसी भी समीक्षक को कलाकार की निजी जिंदगी उघाड़ने का कोई अधिकार नहीं, अगर उसका काम उत्कृष्ट है। कलाकार का काम और उसकी निजी जिंदगी जन्म देती स्त्री और बच्चे की तरह होते हैं। आप बच्चे को देख सकते हैं, पर स्त्री की कमीज उघाड़कर यह तो नहीं देख सकते कि उसमें खून लगा है या नहीं। यह कितना असंवेदनशील होगा।“
“क्या यह मतलब होता है कलाकार होने का-बेचना? मैं समझता था इसका मतलब बिना कुछ पाए लगातार खोजने रहना होता है। मुझे पता है जब मैं कहता हूं मैं कलाकार हूं तो मैं कह रहा होता हूं किे मैं खोज रहा हूं। मैं पूरे दिल से मेहनत कर रहा हूं।“
“यह जरूरी है कि एक स्त्री आपके ऊपर बयार की तरह बहे ताकि आप पुरुष बन सकें। “
-मिशेले की एक लाइन
“ऐसा कैसे किया जा सकता है कित इस धरती पर कोई भी स्त्री अकेली रहती हो।“
- मिशेले का एक वाक्य
महान चित्रकार विंसेंट वॉन गॉग के जीवन पर आधारित विश्व प्रसिद्ध उपन्यास
लेखक-इरविंग स्टोन
इस किताब के आखिरी पन्नों को पलटते हुए मैं मन ही मन में कुछ फैसले कर चुकी थी।
पहला और हास्यास्पद फैसला ये कि अब मैं किताबें नहीं पढ़ूंगी..।
दूसरा ये कि किसी भी बात की गहराई में जाने की कोशिश नहीं करुंगी।
तीसरा ये कि बार-बार अपने लिखे को सुधारने और एक अद्भुत, अकल्पनीय या उस उपमा वाला एक शब्द, जिसे अंग्रेजी में मास्टरपीस कहते हैं जैसी कोई कविता या कहानी लिखने की कोशिश भी नहीं करुंगी।
मुझे नहीं पता कि मैं इन फैसलों पर कितना अमल कर पाऊंगी। क्योंकि जो तीन बातें मैंने ऊपर लिखी हैं, मेरी 75 फीसद जिंदगी उन्हीं बातों के इर्द-गिर्द घूमती है। 463 पन्नों वाली इस किताब को मैंने घर से दफ्तर आने-जाने के रास्ते का इस्तेमाल करते हुए पढ़ा। लगभग एक महीने का समय लगा। एक दोस्त की सलाह मानकर मैंने ये किताब पढ़नी शुरू की थी। किताब पूरी पढ़ने के बाद समझ नहीं आ रहा कि ये सलाह मानना सही था या गलत। मेरे सामने दो विकल्प हैं एक है इस किताब से मिलने वाली शिक्षा और दूसरा इसे पढ़ने के बाद मेरे स्वार्थी और डरपोक मन को मिला एक सबक। किसे चुनूं ये दुविधा है। सुविधा ये है कि वक्त अपने विकल्प खुद चुन लेता है इसलिए फैसला उसी पर छोड़ दूं। बहरहाल एक नजर शिक्षा और सबक दोनों पर....
शिक्षा
एक सच्चे कलाकार को अपनी कला के लिए पूरी जिंदगी दांव पर लगा देनी होती है। जैसा कि विंसेंट वॉन गॉग ने अपनी पूरी जिंदगी अपने भीतर से उस अद्भुत, अकल्पनीय और असल कला को बाहर लाने के लिए देश-देश भटकते हुए बिता दी। ऐसे हालातों का सामना किया जब उनके पास भूखमरी से मर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। ऐसा वक्त भी जब उनके हर एक रिश्तेदार ने उन्हें सिवाय तानों के कुछ नहीं दिया। ऐसा वक्त जब हर देखने वाले ने उन्हें पागल कहकर मुंह मोड़ लिया।
सबक
अपनी कला के बारे में गंभीर होकर सोचना इंसान को पागल कर देता है और उसे पूरी जिंदगी कुछ नहीं मिलता। मरने के बाद अगर दुनिया किसी को महान बना दे तो फिर...।
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इस किताब में लिखी कुछ बातें आपके लिए चुनकर यहां लिख रही हूं....“आप केवल साहस और शक्ति जुटा सकते हैं, वह करने के लिए, जो आप सही समझते हैं। यह गलत भी हो सकता है। लेकिन आप उसे कर चुके होंगे और यही महत्वपूर्ण है। हमें अपनी बुद्धि के श्रेष्ठ चुनाव के आधार पर काम करते हुए उसके अंतिम मूल्य का फैसला ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए।“
“प्रेम जीवन का नमक था। जीवन में स्वाद लाने के लिरए हर एक को उसकी जरूरत थी।““रोटी के लायक न बन पाना निस्संदेह एक अपराध है, क्योंकि हर ईमानदार आदमी अपनी रोटी के लायक होता है। लेकिन उसे न कमा पाना उसके लायक होने के बावजूद एक बड़ा अपराध होता है, बहुत बड़ा।“
“आदमी का व्यवहार काफी कुछ ड्राइंग की तरह होता है। आंख का कोण बदलते ही सारा दृश्य बदल जाता है। यह बदलाव विषय पर नहीं, बल्कि देखने वाले पर निर्भर करता है। “
“मृत्यु कितनी साधारण चीज होती है, शरद में गिरती हुई एक पत्ती जैसी।““जिंदगी एक अनंत खाली और हतोत्साहित कर देने वाली निगाह से हमें घूरती रहती है, जैसे यह कैनवस करता है। ““अक्सर यातना ही किसी भी कलाकार की रचना को सबसे मुखर बनाती है।“
“आदमी प्रकृति का पीछा करने की हताश मशक्कत से शुरू करता है और सब कुछ गलत होता जाता है। अंततः आदमी अपने रंग खोज लेता है और सहमत होकर प्रकृति उसके पीछे आने लगती है।“
“मानवीय दिमाग दो तरह की बातें सोचता है छाया और रोशनी, मीठा और खट्टा,अच्छा और बुरा, प्रकृति में इन दोनों चीजों का असितत्व नहीं होता। दुनिया में न अच्छाई है न बुराई केवल होना है और करना। जब एक क्रिया का हम वर्णन करते हैं तो हम जीवन का वर्णन कर रहे होते हैं। जब हम उस क्रिया को कोई नाम दे देते हैं जैसे अश्लीलता तो हम व्यक्तिगत द्वेष की तरफ बढ़ रहे होते हैं।“
“आदमी या तो पेंटिंग कर सकता है या पेंटिंग के बारे में बात। वह इकट्ठे
दोनों काम नहीं कर सकता।“
“साधारण होना कितना मुश्किल है।“
“मेरा काम...मैंने अपनी जिंदगी दांव पर लगाई उसके लिए...और मेरा दिमाग करीब-करीब भटक चुका है।“
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- ईश्ववर के बारे में
“मैं ईश्वर के बारे में बहुत सोचा करता हूं। वह जैसे बीतते सालों के साथ फीका पड़ता गया है। मुझे लगता है कि हमें इस दुनिया में ईश्वर के बारे में कोई फैसला नहीं करना चाहिए। यह ऐसा चित्र था, जिसे वह बना नहीं पाया। अगर आप कलाकार को पसंद करते हैं तो उसके खराब चित्र के लिए क्या कर सकते हैं। आप आलोचना नहीं करते, अपनी जुबान रोक लेते हैं। पर आपको बेहतर चीज की मांग करने का अधिकार है। हमें फैसला करने से पहले उसकी बनी बाकी चीजों को भी देखना चाहिए। दुनिया को शायद एक बुरे दिन बनाया गया। जब ईश्वर को सारी चीजें साफ नजर नहीं आ रही थी।“
-वेश्याओं के बारे में
“मैं किसानों के चित्र बनाता हूं। इन चित्रों को देखकर मुझे लग रहा है
जैसे ये भी किसान हैं। देह की खेती करने वाली, धरती और देह एक ही तत्व के दो अलग-अलग रूप हैं, है ना और ये औरते मानव देह पर काम करती हैं, जिस पर काम किया जाना चाहिए ताकि उससे जीवन पैदा हो सके।“
- चित्रकारों के लिए
“चित्रकारों को सीखना चाहिए कि किसी चीज को नहीं बल्कि उसकी मूल प्रकृति को पकड़ने का प्रयास करें। यदि आप एक घोड़े का चित्र बना रहे हैं तो सड़क पर देखा गया कोई घोड़ा नहीं होना चाहिए उसमें। उसकी तसवीर तो कैमरे से भी खींची जा सकती है। हमें उससे आगे जाना चाहिए। घोड़े का चित्र बनाते समय मौश्ये हमें जो चीज पकड़ने की कोशिश करनी चाहिए वह है प्लेटो का घोड़ापन यानी घोड़े की बाहरी आत्मा। जब हम एक आदमी का चित्र बनाते हैं वह किसी आदमी का चित्र नहीं होना चाहिए जिसकी नाक पर मस्सा है। वह सारे आदमियोंकी आत्मा और उनकी मूल प्रकृति का चित्र होना चाहिए।“
-कला के बारे में
“कला नैतिकता से परे है, जैसे जीवन। मेरे हिसाब से किताबें या चित्रअश्लील नहीं होते केवल घटिया किताबें और चित्र हो सकते हैं।“
-कलाकार की निजी जिंदगी के बारे में
”किसी भी समीक्षक को कलाकार की निजी जिंदगी उघाड़ने का कोई अधिकार नहीं, अगर उसका काम उत्कृष्ट है। कलाकार का काम और उसकी निजी जिंदगी जन्म देती स्त्री और बच्चे की तरह होते हैं। आप बच्चे को देख सकते हैं, पर स्त्री की कमीज उघाड़कर यह तो नहीं देख सकते कि उसमें खून लगा है या नहीं। यह कितना असंवेदनशील होगा।“- विंसेंट वॉन गॉग, अपनी पेंटिंग के बारे में
”मेरे चित्र का पेट आंतों से भरा हुआ है। इसे देखते ही आप समझ सकते हैं कि इसके भीतर से टनों खाना गुजर चुका है।“-विंसेंट वॉन गॉग कला की कीमत के बारे में
“क्या यह मतलब होता है कलाकार होने का-बेचना? मैं समझता था इसका मतलब बिना कुछ पाए लगातार खोजने रहना होता है। मुझे पता है जब मैं कहता हूं मैं कलाकार हूं तो मैं कह रहा होता हूं किे मैं खोज रहा हूं। मैं पूरे दिल से मेहनत कर रहा हूं।“
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“यह जरूरी है कि एक स्त्री आपके ऊपर बयार की तरह बहे ताकि आप पुरुष बन सकें। “
-मिशेले की एक लाइन
- मिशेले का एक वाक्य
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